(श्रीयुत महेश वर्मा, हर्बर्ट कॉलेज, कोटा)
ऋण लेते समय तुम्हारी आत्मा पर बोझ पड़ता है। फिर ज्यों-ज्यों ऋण की वृद्धि होती है तुम्हारी आत्मा का भार भी क्रमशः बढ़ता जाता है। ऋणी व्यक्ति अपनी इच्छानुसार शक्तियों का विकास नहीं कर पता। एक गुप-चुप वेदना प्रत्येक समय उसकी आत्मा को चूसा करती है। आत्म संस्कार अभिलाषी साधक को ऋण का भार सहन करना किसी भाँति भी उचित नहीं। यदि वह ऋणी रहेगा तो मानसिक क्षेत्र में एक भयानक आन्दोलन मचा रहेगा। उसे एकाग्रता कभी भी प्राप्त न हो सकेगी और दिव्य गुण दूर-दूर भागते रहेंगे। कर्ज का तार जीवन भर न टूटेगा तथा वह उत्तरोत्तर बढ़ते हुए भार से दबकर निरन्तर छटपटाया करेगा।
प्रसिद्ध कवि गोल्डस्मिथ ऋण की भूल भुलैया में बुरी तरह फंस गया तथा अपनी मूर्खता पर अन्त तक पछताता रहा। एक बार अपने भ्राता को अति मर्म स्पर्शी शब्दों में निर्देश करते हुए उसने लिखा अपने पुत्र को मितव्ययिता सिखाओ। उसके समक्ष इधर-उधर मारे-2 फिरने वाले दरिद्र चर्चा का दृष्टान्त रखो। साधारण स्थिति का व्यक्ति होकर मैंने कभी दान में अथवा मदिरा में कमी न की। मैं न्याय की रीति को भूल गया और मैंने अपनी दशा भी उन्हीं अभागों जैसी कर ली जिन्होंने मेरा कुछ उपकार न माना।
निर्धनता तुम्हारी उन्नति के मार्ग में बाधक नहीं हैं। उन्नति के साधन इतने सस्ते हैं कि यदि तुम शुद्ध संकल्प करो तो परिश्रम द्वारा मोटे वस्त्र तथा सूखी रोटी खाकर काट डालो किन्तु परमेश्वर के लिए भविष्य के भरोसे ऋण का साँप गले में न डालो।