(श्री सुखदेवप्रसाद जी खत्री, कानपुर)
आँवला आयुर्वेद यूनानी और डाक्टरी मत से बहुत ही स्वास्थ्यवर्धक और रोगनाशक फल साबित हुआ है। इसमें आयुष्य वर्धक विटामिन, तथा विष नाशक, रक्तशोधक, बुद्धिवर्धक, बलकारक, अग्नि दीपक तत्व इतने अधिक हैं कि आँवले का सेवन करके मनुष्य बहुत लाभ उठा सकता है। इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हमारे धर्म ग्रन्थों में आँवले का महात्म्य सविस्तार वर्णन किया गया है। पद्मपुराण सृष्टि खंड से उद्धृत करके आँवले का महत्व पाठकों के सामने इस आशा से उपस्थित कर रहा हूँ कि इस उपयोगी फल के गुणों से हम लोग अधिक लाभ उठावें।
कार्तिकेय जी ने पूछा- “हे भगवान्! सब लोगों के हित के लिए यह बतलाइये कि उत्तम फल कौन हैं?”
“भगवान से कहा- हे तात! आँवले का फल समस्त लोकों में प्रसिद्ध और परम पवित्र है। यह पवित्र फल विष्णु भगवान को प्रसन्न करने वाला एवं शुभ माना गया है। इसके सेवन करने से मनुष्य पापों से मुक्त हो जाते हैं। आँवला खाने से आयु बढ़ती है, उसका जल पीने और स्नान करने से दरिद्रता दूर होती है तथा सब प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त होते हैं। हे कार्तिकेय! जिस घर में आँवला सदा मौजूद रहता है, वहाँ दैत्य और राक्षस नहीं जाते। जो दोनों पक्षों में एकादशी को आँवले से स्नान करता है उसके सब पाप (रोग) नष्ट हो जाते हैं और वह श्री विष्णु लोक में सम्मानित होता है। हे षड़ानन! जो आँवले के रस से अपने केश साफ करता है वह पुनः माता के स्तन का दूध नहीं पीता। जहाँ आंवले का फल मौजूद होता है वहाँ भगवान विराजते हैं और ब्रह्माजी तथा सुस्थिर लक्ष्मीजी का भी वास होता है। इसलिये अपने घर में आँवला अवश्य रखना चाहिए। जो आँवले का मुरब्बा एवं नैवेद्य अर्पण करता है उससे भगवान संतुष्ट रहते हैं।”
“तीर्थों में निवास करने एवं तीर्थ यात्रा करने से तथा नाना प्रकार के व्रतों से जो फल प्राप्त होता है वही आँवले के फल का सेवन करने से मिल जाता है। रविवार सप्तमी, संक्राँति, शुक्रवार, षष्ठी, प्रतिपदा, नवमी और अमावस्या को आँवले का परित्याग कर देना चाहिए। जिस मृतक के मुख, नाक, कान अथवा बालों में आंवले का फल हो वह विष्णुलोक को जाता है। जो मनुष्य शरीर में आँवले का रस लगाकर स्नान करता है उसे यज्ञ का फल प्राप्त होता है। उसके दर्शन एवं स्पर्श से पापी जन्तु (रोग कीटाणु) भाग जाते हैं तथा कठोर एवं दुष्ट ग्रह भी पलायन कर जाते हैं।”
आँवला रोग नाशक, स्वास्थ सुधारक और बुद्धि वर्धक होने के कारण उसके सेवन से मनुष्यों की शारीरिक और मानसिक स्थिति सुधरती है। फलस्वरूप उसे लौकिक और पारलौकिक सम्पदायें प्राप्त होती हैं। सद्बुद्धि, स्वस्थ चित्त और शान्त जीवन रहने से धर्म का संचय होता है स्वर्ग एवं मुक्त मिलती है तथा भगवान प्रसन्न होते हैं।