मत निश्चित करने में सावधानी

March 1945

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(श्रीयुत सेठ अचल सिंह जी M.L.A. आगरा)

किसी भी व्यक्ति की परीक्षा कई प्रकार से हो सकती है- जैसे उसके साथ रहने से, बातचीत करने से, साथ में सफर करने से, उसके बारे में कुछ पढ़ने से या किसी आदमी से बातचीत करने से, जो उसके साथ रहता हो इत्यादि।

किसी व्यक्ति से सिर्फ एक मौके पर बात-चीत करने से या बरतने से उसके बारे में फौरन राय कायम नहीं कर लेनी चाहिए।

मान लो कि कोई मनुष्य किसी चिन्ता या दुख में बैठा हुआ है और कोई व्यक्ति उसके पास जाकर अपनी इच्छा जाहिर करता है। उसके उत्तर में उस समय वह यह कह देता है कि इस समय मुझे माफ कीजिए। इससे अगर इच्छा जाहिर करने वाला यह ख्याल करे कि वे बड़े आदमी हैं और घमंड के मारे बात नहीं करना चाहते और इस प्रकार वह अपनी राय कायम कर ले, तो क्या यह उचित है? इसलिए प्रत्येक विचारशील मनुष्य को सोच-समझ कर राय निश्चित करनी चाहिये।

किसी आदमी के गुण या अवगुण उसके जीवन के केवल एक अंग को लेकर नहीं जाने जा सकते। मनुष्य की परीक्षा प्रायः उसके घरेलू और सार्वजनिक जीवन दोनों को दृष्टिगोचर रखने से हो सकती है। संभव है कि उसके नौकर-चाकर, घर के दूसरे सदस्य या स्त्री इत्यादि जो राय उसके बारे में रखते हों, उसमें और-और लोगों की राय में, जो उसके साथ व्यापार आदि में सम्बन्ध रखते हैं, अन्तर हो। मनुष्य की मनोवृत्ति को जानना बड़ी जटिल समस्या है। उसका स्वभाव किस समय किस बात से प्रेरित होकर कैसा करेगा साधारणतः यह बतलाना कठिन है।

लार्ड राबर्ट थे तो बड़े बहादुर सेनापति पर बिल्ली से डरते थे। उन्हें बिल्ली से डरते देखकर कौन कह सकता था कि वे एक बड़े साम्राज्य के सेनाध्यक्ष हैं? परंतु थे वे ऐसे प्रबल सैनिक कि जिनका लोहा उनके बहुत से प्रतिद्वंद्वी लोगों को मानना पड़ा था। इसलिए किसी की एक कमजोरी देखकर उसके सारे जीवन पर लाँछन न लगाना चाहिए।

एक दिन सभा में एक सज्जन का एक मित्र से बाद-विवाद हो गया। पाँच-छः दिन बाद वे सड़क पर मिले और सामना बचाते हुए बगल से निकल गये। उन्होंने सोचा कि वे उस दिन की बहस से अप्रसन्न हो गये हैं, इसीलिए उन से नहीं बोले परंतु दो ही दिन बाद मालूम हुआ कि उस दिन उनकी बहिन का देहाँत हो गया था, इसलिए परेशानी की हालत में वे बगल से बिना बातचीत किये ही निकल गये थे। इसके बाद जब वे मिले, तो उन्होंने पूर्ववत् स्नेह प्रकट किया। इसलिये अगर कोई इस प्रकार की घटना हो जाय, तो हमें उसे उदारता की दृष्टि से देखना चाहिये। आज-कल प्रायः ऐसा देखा जाता है कि जो मनुष्य फिजूल-खर्ची नहीं करता अर्थात् मितव्ययी होता है, उसे कंजूस कहते हैं।

एक समय का जिक्र है कि एक समाज विशेष का डेप्यूटेशन एक फैय्याज-दिल अमीर के पास गया और कालेज के वास्ते चन्दा माँगा। इस पर उन्होंने फरमाया कि मेरे पास इस कदर खर्च है कि मैं कोई माकूल रकम नहीं दे सकता। बाद में डेप्यूटेशन एक मितव्ययी पुरुष के पास गया और चन्दा माँगा। उस समय वे सज्जन सिगरेट सुलगा रहे थे। उन्होंने सिगरेट सुलगा कर जो दियासलाई की आधी लकड़ी बची, उसे दिया-सलाई के बक्स में रख दिया। डेप्यूटेशन के लोगों ने इससे अंदाज लगाया कि जब ये इतने लोभी हैं तो हमको क्या दान देंगे? लेकिन जब डेप्यूटेशन के लोगों ने उनसे दान के वास्ते प्रार्थना की, तो उन्होंने चेक उठा कर सामने रख दी और कहाँ कि आप जितनी रकम कहें, भर दी जाय। डेप्यूटेशन ने इसको महज मजाक समझा और ने ख्याल से एक बहुत बड़ी रकम 3000 की माँगी। मितव्ययी सज्जन ने फौरन चेक काट कर दे दिया। इस पर उन लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ और अपनी गलतफहमी दूर करने के वास्ते अपना संदेह उन्हें बताया। तब उन्होंने कहा कि मैं फिजूल एक पैसा खर्च करना बुरा समझता हूँ क्योंकि इस प्रकार थोड़ा-थोड़ा बचाने से बहुत इकट्ठा हो जाता है, जिसको सत्कार्य में लगाना, मैं अपना कर्त्तव्य समझता हूँ।

आज-कल प्रायः ऐसा देखा जाता है कि यदि किसी ने किसी के बारे में कोई बात देखी या सूनी तो फौरन अपनी राय कायम कर लेता है। ऐसा करना अनुचित है। उचित तो यह है कि पहले इसके कि हम किसी निश्चय पर आवें, हमको काफी विचार कर लेना चाहिए। प्रायः ऐसा देखा जाता है कि बहुत से स्वार्थी लोग अपने मन्तव्यों को पूरा करने के अर्थ या किसी को बदनाम करने के लिए मजाक करने के विचार से ऐसी-ऐसी बातें बनाकर उड़ा देते हैं कि जिससे मित्रों में तथा जनता समाज या जाति में उसकी बदनामी हो जाती है। इसलिए प्रायः सखी समझदार मनुष्यों के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि अगर कोई ऐसी बात सुनें तो किसी निश्चय पर आने से पहले उसकी जाँच कर लें। अगर मुनासिब हो तो किसी के जरिये बातचीत कराकर मामले को साफ कर लें। किसी बात को सोचे समझे बिना ही मान बैठने से बड़े-बड़े नुकसान और झगड़े हो जाया करते हैं।


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