कोई मनुष्य मुँह से बढ़-बढ़ कर बातें करे और पेट में असत्यता छिपाये हुए हो तो वह बनावट अधिक देर तक ठहर नहीं सकती। आवाज में, शब्दों के उपयोग में, चेहरे में तथा शरीर के हलचल में सत्य और असत्य साफ देख पड़ते हैं। झूठे आदमी की वाणी में सिटपिटाहट, चेहरे पर निस्तेजता होती है, आँखें मिलाते हुए वह झिझकता है। आशंका और भय से उसका मन अस्थिर एवं चिन्तित सा दिखाई पड़ता है। असत्य बात कुछ ऐसी अस्वाभाविक होती है कि सुनने वाले के मन में अनायास ही अविश्वास के भाव उठने लगते हैं। इस बीसवीं सदी में झूठ का बड़ा प्रचार है, बड़े कलात्मक ढंग से झूठ बोला जाता है तो भी उसे ऐसा नहीं बनाया जाता कि पकड़ में न आये।
स्मरण रखिए, झूठ आखिर झूठ ही है। वह आज नहीं तो कल जरूर खुल जायेगा। असत्य का जब भंडाफोड़ होता है तो उस मनुष्य की सारी प्रतिष्ठा नष्ट हो जाती है, उसे अविश्वासी, टुच्चा और ओछा आदमी समझे जाने लगता है। झूठ बोलने में तात्कालिक थोड़ा लाभ दिखाई पड़े तो भी आप उसकी ओर ललचाइए मत क्योंकि उस थोड़े लाभ के बदले में अनेक गुनी हानि होने की सम्भावना है। आप अपने वचन और कार्यों द्वारा सचाई का परिचय कीजिए। सत्य उस बीज के समान है जो आज छोटा दिखता पर अन्त में फल फूल कर महान वृक्ष बन जाता है। ऊँचा और प्रतिष्ठा युक्त जीवन बिताने का दृढ़ निश्चय होना चाहिए कि हमारे वचन और कार्य सचाई से भरे हुए होंगे।