इन परिस्थितियों में ही आगे बढ़िये।

March 1945

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‘अगर मुझे अमुक सुविधायें मिलती तो मैं ऐसा करता’ इस प्रकार की बातें करने वाले एक झूठी प्रवंचना किया करते हैं। अपनी नालायकी को भाग्य के ऊपर ईश्वर के ऊपर, थोप कर खुद निर्दोष बनना चाहते हैं। यह एक असंभव माँग है कि मुझे अमुक परिस्थिति मिलती तो ऐसा करता, जैसी परिस्थिति की कल्पना की जा रही है यदि वैसी मिला जाय तो वे भी अपूर्ण मालूम पड़ेगी और फिर उससे अच्छी स्थिति का अभाव प्रतीत होगा। जिन लोगों के पास धन, विद्या, मित्र, पद आदि पर्याप्त मात्रा में मिले हुए हैं हम देखते हैं कि उनमें से भी अनेकों का जीवन बहुत अस्त-व्यस्त और असंतोष जनक स्थिति में पड़ा हुआ है। धन आदि का होना उनके आनन्द की वृद्धि न कर सका वरन् जी का जंजाल बन गया। जो सर्प विद्या नहीं जानता, उसके पास बहुत साँप होना भी खतरनाक है। जिसे जीवन कला का ज्ञान नहीं, उसे गरीबी में अभावग्रस्त अवस्था में थोड़ा बहुत आनन्द जब भी है, यदि वह सम्पन्न होता तो उन सम्पत्तियों का दुरुपयोग करके अपने को और भी अधिक विपत्ति ग्रस्त बना लेता।

यदि आपके पास आज मनचाही वस्तुएं नहीं हैं तो निराश होने की कुछ आवश्यकता नहीं हैं। टूटी-फूटी चीजें हैं उन्हीं की सहायता से अपनी कला को प्रदर्शित करना आरम्भ कर दीजिए। जब चारों ओर घोर घना अंधकार छाया हुआ होता है तो वह दीपक जिसमें छदाम का दिया, आधे पैसे का तेल और दमड़ी की बत्ती है- कुल मिलाकर एक पैसे की भी पूँजी नहीं है- चमकता है और अपने प्रकाश से लोगों के रुके हुए कामों को चालू कर देता है। जब कि हजारों पैसे के मूल्य वाली वस्तुएं चुपचाप पड़ी होती हैं। यह एक पैसे की पूँजी वाला दीपक प्रकाशवान होता है, अपनी महत्ता प्रकट करता है, लोगों का प्यारा बनता है, प्रशंसित होता है और अपने अस्तित्व को धन्य बनाता है। क्या दीपक ने कभी ऐसा रोना रोया कि मेरे पास इतने मन तेल होता, इतनी रुई होती, इतना बड़ा मेरा आकार होता तो ऐसा बड़ा प्रकाश करता? दीपक को कर्महीन नालायकों की भाँति बेकार शेखचिल्लियों के से मनसूबे बाँधने की फुरसत नहीं है, वह अपनी आज की परिस्थिति हैसियत, औकात को देखता है उसका आदर करता है और अपनी केवल मात्रा एक पैसे की पूँजी से कार्य आरम्भ कर देता है। उसका कार्य छोटा है बेशक, पर उस छोटेपन में भी सफलता का उतना ही अंश है जितना कि सूर्य और चन्द्र के चमकने की सफलता है। यदि आन्तरिक संतोष धर्म और परोपकार की दृष्टि से तुलना की जाय तो अपनी-अपनी मर्यादा के अनुसार दोनों का ही कार्य एक सा है। दोनों का ही महत्व समान है, दोनों की सफलता एक सी है।

सच बात तो यह है कि अभाव ग्रस्त कठिनाईयों में पले हुए, साधन हीन व्यक्ति ही भविष्य के नेता महात्मा, महापुरुष, सफल जीवन मुक्ति पथगामी हुए हैं। कारण यह है कि विपरीत परिस्थितियों से टकराने पर मनुष्य की अन्तः प्रतिभा जागृत होती है। सुप्त शक्तियों का विकास होता है। पत्थर पर रगड़ खाने वाला चाकू तेज होता है और वह अपने काम में अधिक कारगर साबित होता है। उस का स्वभाव, अनुभव और दिमाग मंज कर साफ हो जाता है, जिससे आगे बढ़ने में उसे बहुत सफलता मिलती है। इसके विपरीत जो लोग अमीर और साधन सम्पन्न घरों में पैदा होते हैं, उन्हें जीवन की आवश्यक सामग्रियाँ प्राप्त करने के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ता, लाड़ दुलार ऐश आराम के कारण उनकी प्रतिभा निखरती नहीं वरन् बंद पानी की तरह सड़ जाती है या निष्क्रिय चाकू की तरह जंग लगकर निकम्मी हो जाती है। आमतौर पर आजकल ऐसा देखा जाता है कि अमीरों के लड़के अपने जीवन में असफल रहते हैं और गरीबों के लड़के आगे चलकर चमक जाते हैं। पुराने जमाने में राजा रईस लोग अपने लड़कों को ऋषियों के आश्रम में इसलिए भेज देते थे कि वहाँ रहकर अभावग्रस्त जीवन व्यतीत करे और अपनी प्रतिभा को तीव्र बनावे।

हमारा उद्देश्य यह कहने का नहीं है कि अमीरी कोई बुरी चीज है और अमीरों के घर में पैदा होने वाले उन्नत जीवन नहीं बिता सकते। जहाँ साधन हैं वहाँ तो और भी जल्दी उन्नति होनी चाहिए। बढ़ई के पास बढ़िया लकड़ी और अच्छे औजार हों तब तो वह बहुत ही सुन्दर फर्नीचर तैयार करेगा यह तो निश्चित है हमारा तात्पर्य केवल यह कहने का है कि यदि जिन्दगी जीने की कला आती हो तो अभाव, कठिनाई या विपरीत परिस्थिति भी कुछ बाधा नहीं डाल सकती, गरीबी या कठिनाई में साधनों की कमी का दोष है तो प्रतिभा को चमकाने का गुण भी है। अमीरी में साधनों की बाहुल्यता है तो लाड़ दुलार और ऐश आराम के कारण प्रतिभा के खराब हो जाने का दोष भी है। दोनों ही गुण दोष युक्त हैं किन्तु जो जीवन जीना जानता है वह चाहे अमीर हो या गरीब अच्छी परिस्थितियों में है या कठिनाइयों में पड़ा हो, कुछ भी क्यों न हो हर एक स्थिति में अनुकूलता पैदा कर सकता है, हर अवस्था में उन्नति सफलता और आनन्द प्राप्त कर सकता है।

आनन्दमय जीवन बिताने के लिए धन विद्या, अच्छा सहयोग, स्वास्थ्य आदि की आवश्यकता है परन्तु ऐसा न समझना चाहिए कि इन वस्तुओं के होने से ही जीवन आनन्दमय बन सकता है। एक अच्छी पुस्तक लिखने के लिए कागज दवात कलम की आवश्यकता है परन्तु इन तीनों के इकट्ठे हो जाने से ही पुस्तक तैयार नहीं हो सकती। मान लेखक ही उत्तम पुस्तक के निर्माण में प्रमुख है। दवात कलम कागज तो एक गौण और छोटी वस्तु हैं। जिसे पुस्तक लिखने की योग्यता है उसका काम रुका न रहेगा, इन वस्तुओं को वह बहुत ही आसानी से इकट्ठी कर लेगा। आज तक एक भी घटना किसी ने ऐसी न सुनी होगी कि अमुक लेखक इसलिए रचनाएं न कर सका कि उसकी दवात में स्याही न थी। अगर कोई लेखक यों कहे कि “क्या करूं साहब मेरे पास कलम ही न थी, यदि कलम होती तो बहुत बढ़िया ग्रन्थ लिख देता।” तो उसकी इस बात पर कोई विश्वास न करेगा। भला कलम भी कोई ऐसी दुष्प्राप्य वस्तु है जिसे लेखक प्राप्त न कर सके। एक कहावत है कि ‘नाच न जाने आँगन टेढ़ा।’ जिसे नाचना नहीं आता वह अपनी अयोग्यता को यह कह कर छिपाता है कि क्या करूं आँगन टेढ़ा है। टेढ़ा ही सही, जिसे नाचना आता है उसके लिए टेढ़ेपन के कारण कुछ विशेष अड़चन पड़ने की कोई बात नहीं है। इसी प्रकार जो जीवन की विद्या जानता है, उसे साधनों का अभाव और विपरीत परिस्थितियों की शिकायत करने की कोई बात नहीं है। साधनों की आवश्यकता है बेशक, परन्तु इतनी नहीं कि उनके बिना प्रगति ही न हो सके।

चतुर पुरुष विपरीतता में अनुकूलता पैदा कर सकता है। विष को अमृत बना लेते हैं। सखिया, धतूरा, पारा, सींगिया, हरताल आदि प्राणघातक विषों से लोग रोगनाशक, आयुवर्धक रसायनें बनाते हैं। बालू में से चाँदी, कोयले में से हीरा निकालते हैं। सर्पों की विष थैली में से मणि प्राप्त करते हैं, धरती की शुष्क और कठोर तह को खोदकर शीतल जल निकालते हैं, गरजते समुद्र के पेट में घुसकर मोती लाते हैं। दृष्टि पसार कर देखिए आपके चारों और ऐसे कलाकार बिखरे हुए दिखाई पड़ेंगे, जो तुच्छ चीजों की सहायता से बड़े महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। ऐसे वीर पुरुषों की कमी नहीं है जो वज्र जैसी निष्ठुर परिस्थिति में प्रवेश करके विजय लक्ष्मी का वरण करते हैं। यदि आपकी इच्छा शक्ति जरा वजनदार हो तो आप भी इन्हीं कलाकारों और वीर पुरुषों की श्रेणी में सम्मिलित हो कर अपनी आज की सारी विपरीत परिस्थितियों को अनुकूल बना सकते हैं। अपनी सारी शिकायतें, चिंतां, विवशताएं आसानी के साथ संतोष, आशा और समर्थता में बदल सकते हैं।

=कोटेशन============================

परिवर्तन संसार का नियम है और स्वतंत्रता संसार के सुखों का आदि श्रोत। इनकी प्राप्ति के लिए सत्य और अहिंसा ही सर्वश्रेष्ठ साधन हैं।

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जब रोना होता है तब मैं एकान्त की खोज करता हूँ और हंसना होता है तब मित्रों की।

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अगर हमें मर जाने के बाद भी दुनिया की स्मृति में ताजे रहने की आकाँक्षा है तो हमें या तो ऐसी चीज लिखनी चाहिए जो सब के पढ़ने के योग्य हो अथवा ऐसे काम करना चाहिए जो लिपिबद्ध किये जाने योग्य हों।

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