मैं विकसित हो रहा हूँ।

February 1945

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(ले. श्रीयुत महेश वर्मा)

हमारा शारीरिक विकास प्रायः हमारे मानसिक दृष्टिकोणों पर निर्भर रहता है। मनोवैज्ञानिकों का कथन है कि मन को एकाग्र किए बिना किसी प्रकार का अभ्यास उत्तम रीति से नहीं हो सकता और सचमुच यह कथन है भी सत्य। अधिक गहन पथ पर अग्रसर होने से प्रथम दैनिक जीवन पर ही दृष्टि डालिए। परमात्मा का स्मरण करते समय यदि मन एकाग्र नहीं तो ढोंग से क्या लाभ? निज शारीरिक उन्नति के प्रति जैसी हमारी भावना होगी वैसा ही मधुर अथवा कटु उसका परिणाम होगा। यदि हम प्रतिदिन व्यायाम करते समय इस विचार को हृदय में स्थान दे सकें कि हमारे शरीर के प्रत्येक अंग प्रत्यंग का भली प्रकार विकास हो रहा है तो निश्चय जानिये आप का यह विचार निर्मूल सिद्ध न होगा तथा आप को शीघ्र ही इस कथन की यथार्थता पर विश्वास हो जायेगा। अस्तु, यदि व्यायाम कर उचित लाभ उठाना चाहते हो तो आपके अंग प्रत्यंग उत्तरोत्तर विकसित हो रहे हैं, ऐसी धारणा बना लीजिए।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: