जीवितों की जिन्दगी जिओ।

February 1945

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(प्रिन्स क्रोपाटिकन)

यदि तुम अनुभव करते हो कि मैं जीवित हूँ, जवान हूँ और क्रियाशील हूँ तो उठो जीवित मनुष्यों की जिन्दगी जीने का प्रयत्न करो। निर्दोष, सर्वांगपूर्ण, आनन्दमय और उन्नतिशील जीवन पसन्द करो। जीवित प्राणियों की स्वाभाविक इच्छा मजबूत बनने की, महान बनने की और सुखी बनने की होती है, तुम्हें भी ऐसी ही आकाँक्षाओं से भरा पूरा होना चाहिए।

उठो, अपने चारों ओर नव जीवन के बीज बोओ। पवित्रता का वातावरण निर्माण करो। यदि तुम दूसरों को धोखा दोगे, झूठ बोलोगे, षड़यंत्र रचोगे, तो इससे अपने आप को ही पतित बनाओगे, अपने को ही छोटा, तुच्छ और कमीना साबित करोगे। किसी दूसरे का अपनी सारी शक्तियाँ लगाकर भी तुम अधिक अनिष्ट नहीं कर सकते परन्तु इन हरकतों से अपना सर्वनाश जरूर कर सकते हो।

ईमानदारी पर कायम रहो और उचित साधनों से अपनी उन्नति के लिए प्रयत्न करो। अपनी ताकत को संसार के सामने प्रकट करो क्योंकि बलवानों को ही सुखी और उन्नतिशील जीवन जीने का अधिकार है। यदि अपनी शक्ति का कोई सबूत पेश नहीं कर सकोगे तो दुनिया तुम्हें एक असहाय, अनाथ, दुर्बल और अभागा समझेगी और तुम्हारे नाम के साथ ‘बेचारा’ की उपाधि जोड़ देगी।

इसलिए मैं कहता हूँ कि-संघर्ष करो! जीवित रहने के लिए संघर्ष करो!! अपने अधिकारों को प्राप्त करने और उनकी रक्षा के लिए संघर्ष करो!!! विश्वास रखो इस आत्मोन्नति के धर्मयुद्ध में तुम्हें वह आनंद मिलेगा, जो दुनिया की और किसी चीज से नहीं मिल सकता। जीवितों की भाँति जीवित रहने के चन्द घंटे, मुर्दा जिन्दगी के हजार वर्षों से बेहतर है।


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