जुकाम हमारा दोस्त है।

February 1945

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(डा. विट्ठलदास मोदी, आरोग्य मंदिर, गोरखपुर)

शीर्षक देखकर आप न चोंकिए। दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जो दोस्त को दुश्मन मान लेते हैं। उनकी गलतफहमी दूर की जाती है और गलतफहमी दूर होने पर उनका दृष्टिकोण बदल जाता है तथा वे कृतज्ञता का अनुभव करने लग जाते हैं। शायद अन्त में आप भी कुछ ऐसा ही अनुभव करें।

गर्मी से हैजे का, बरसात से जूड़ी ताप का, वैसा घनिष्ठ संबंध नहीं समझा जाता जैसा जाड़े का सर्दी-जुकाम से। यों तो सर्दी जुकाम सब ऋतुओं में ही होता है पर जाड़े में तो यह सारे दिन सर से पैर तक गरम कपड़े लादे रहने एवं सारी रात घर के किवाड़ बन्द कर सोने पर भी आए दिन मेहमानी करने आता ही रहता है और इसका कष्ट बड़ा कड़वा होता है। कड़वा इस मानी में कि ज्वर आने पर तो आदमी लेटा रहता है पर जुकाम होने पर शरीर काम लायक दिखने पर भी काम नहीं किया जाता तबियत नहीं लगती, सिर भारी रहता है, दिमाग तो खास तौर से साफ नहीं रहता, बदन टूटता रहता है गंध का अनुभव नहीं होता और भूख चली जाती है।

जुकाम क्यों होता है?

जो हमें न खाना वह हम खाते हैं, जो हमें न पीना चाहिए वह पीते हैं। गंदी हवा में हमें न रहना चाहिए, पर हम छोटे बंद कमरों में काम करते हैं और गन्दी गलियों में चलते हैं, जिससे शरीर में गंदगी इकट्ठी होती है। यदि हम ठीक खाएं पिएं तब भी तो पाचन के बाद में कुछ मल रह ही जाता है और इसी मल को निकालने के लिए शरीर में मल द्वारा बने हैं- नाक, त्वचा, मूत्र और मलद्वार ये हमेशा अपना कार्य करते रहते हैं, पर जब ये सारी गंदगी नहीं निकाल पाते तभी शरीर सफाई के हेतु विशेष प्रयास करता है। इस विशेष प्रयास का फल जुकाम भी है। तो फिर इसे दुःख क्यों मानें?

घर हम रोज झाड़ते बुहारते हैं पर दीवाली के अवसर पर उसकी विशेष सफाई कर हमें कितनी खुशी होती है। उसी तरह अपने शरीर के सफाई के इस प्रयास में हमें हमदर्द की तरह मदद करना चाहिए और उसके संकेतों पर अमल करना चाहिए। जब भूख नहीं लगती तो क्यों खायें? जब काम करने की इच्छा नहीं होती तब क्यों न आराम करें?

आँतों की सफाई

मल द्वारों को भी तेजी से काम करने में संलग्न कीजिए। सबसे पहले एक डेढ़ सेर गुनगुने पानी का एनीमा लेकर बड़ी आँतों को साफ कर डालिए और दो-दो घंटे पर एक-एक प्याला गरम पानी भी पीते रहिए। इससे आमाशय धुल जायेगा। जो एनीमा न ले सकें वे एक दूसरी तरकीब करें-

आध सेर पालक, पाव भर शलजम (पत्ती समेत), पाव भर गाजर, पाव भर टमाटर, एक छटाँक धनिये की पत्ती और तोला भर अदरक साफ करके और छोटा-छोटा काट कर एक बटली में डाल कर सेर भर पानी के साथ पकावें। इन में से कोई चीज न मिले तो उसके बदले मूली, प्याज वगैरह डाला जा सकता है या उसके बगैर भी काम चल सकता है पर पालक जरूर रहे या उसके बदले कोई पत्तीदार हरी भाजी। बटली के मुँह को पानी से भरी कटोरी से बंद कर दीजिए। इससे तरकारियों का पानी न जलेगा। पक जाने पर तरकारियों को एक साफ कपड़े से छान लीजिए। सेर डेढ़ सेर अर्क निकलेगा। इस में थोड़ा नमक, नीबू का रस, और भुना जीरा पीसकर मिलाकर या सादा ही तीन-तीन घण्टे पर आध-आध सेर की मात्रा में पीते रहिये। बच्चे थोड़ी मात्रा में लें दिन भर में पाँच बार पियें। पेट खूब साफ होगा और कुछ-कुछ पसीना भी आवेगा। इसके साथ-साथ अच्छी साफ अवस्था में रहिये। कमरे की खिड़कियाँ खोलकर सोइये, घबराइये नहीं। सबेरे आठ नौ बजे के बीच पन्द्रह बीस मिनट तक खुले बदन पर धूप भी लगने दीजिए।

बस यही जुकाम की दवा है, दोस्त जुकाम का स्वागत है। एक दो दिन में ही नाक साफ हो जायेगी, और आप अपने में एक नवीन चेतनता एवं सजीवता का अनुभव करेंगे। आप के लिए स्वास्थ्य का अर्थ दूसरा ही हो जायेगा। आप कहने लगेंगे कि चलते-फिरते नजर आना ही स्वास्थ्य नहीं है।

जुकाम बिगड़ कर निमोनिया, दमा, यक्ष्मा, उन्हीं को होता है जो शरीर से निकलते हुए इस मल को दवा के सहारे दबाते हैं। गंदगी अन्दर चली तो जाती है पर फिर नये रूप में बाहर आती है। जिसे नये नाम मिलते हैं, उसकी फिर चिकित्सा होती है और वह फिर अन्दर जाकर नया जामा पहन कर बाहर आती है, इसी तरह ताँता चलता रहता है।

पुराना जुकाम

कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें हमेशा जुकाम बना रहता है। इस तरह के रोगी भी ऊपर के सिद्धाँतों के अनुसार चलें। अपने भोजन में हरी तरकारियाँ और फलों की अधिक मात्रा रखें, इस से पेट साफ रहेगा। कुछ ऐसी भी कसरत करें जिससे पसीना बह चले। जो कमजोर हैं और कड़ी कसरत नहीं कर सकते, वे दिन में किसी भी समय या अच्छा हो कि रात को सोने के पहले एक कुर्सी या स्टूल पर बैठकर अपने पैरों को गरम पानी से भरी बाल्टी या किसी बर्तन में पन्द्रह बीस मिनट तक रखें। पानी घुटने के नीचे तक रहे। पानी जरा ज्यादा गरम हो पर इतना ही जितने से तकलीफ न हो। पानी के ठण्डा होने पर बीच-बीच में गरम पानी मिलाते रहिये। एक कम्बल भी ओढ़ लें। कुछ पसीना आयेगा। ज्यादा पसीना लाने के लिए एक गिलास गरम पानी भी पी लेना चाहिए। समय हो जाने पर पैरों को ठण्डे पानी से धोकर सूखी तौलिया से पोंछ लें और सो जायं या कुछ देर आराम करें। नाक उसी वक्त साफ हो जायेगी और पाँच सात दिन यह क्रिया करने से सर्दी जड़ से चली जायेगी। जिन्हें नई सर्दी भी हो वे भी इस प्रयोग से लाभ उठा सकते हैं।

=कोटेशन============================

पिता वह नहीं, जिसने तुम्हें केवल पैदा कर दिया बल्कि वास्तविक पिता वह है, जिसने तुम्हें सचमुच मनुष्य बनाने का तन-मन-धन से प्रयत्न किया।

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