धर्म और धार्मिकता की कसौटी

August 1966

Read Scan Version
<<   |   <  | |   >   |   >>

धर्म का ध्येय है प्राणीमात्र को सुख-शाँति देना, उनके शोक सन्तापों को अधिक से अधिक कम करना। उन्हें सच्ची राह बतलाना। ऐसी राह बतलाना जिस पर चलकर वे निरापद भाव से सुख-शाँति के लक्ष्य पर पहुँच सकें। यह कार्य सेवा से भी हो सकता है, सान्त्वना से भी और उपदेश देकर भी।

जो व्यक्ति इस मार्ग को अपनाता है वही धर्मात्मा कहा जायेगा। फिर चाहे वह कोई अनहोना काम दिखा पाता है या नहीं! किन्तु संसार ऐसा विचित्र है कि वह धर्मात्मा की कसौटी चमत्कार अथवा किसी आश्चर्य चकित कर देने वाले काम को ही मानता है। संसार सुख-शाँति का कोई सीधा-सरल मार्ग नहीं चाहता बल्कि कुछ विलक्षण, अद्भुत और चमत्कार को ही मान्यता देना चाहता है। वह धर्मात्मा की परीक्षा किसी चमत्कार से करना चाहता है।

खेद है ऐसी दुनिया पर कि जो कुछ ऐसा कर दिखाने वाले पर श्रद्धा करती है जो उसकी समझ में न आया और वह स्वयं न कर सके, फिर चाहे वह ठग ही क्यों न हो, पापी ही क्यों न हो।

—भगवान बुद्ध


<<   |   <  | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: