समय के सदुपयोग की महत्ता समझिये

August 1966

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समय संसार की सबसे मूल्यवान सम्पदा है। विद्वानों एवं महापुरुषों ने समय को ही सारी विभूतियों का कारणभूत हेतु माना है। समय का सदुपयोग करने वाले व्यक्ति कभी भी निर्धन अथवा दुःखी नहीं रह सकते। कहने को कहा जा सकता है कि श्रम से ही सम्पत्ति की उपलब्धि होती है। किन्तु श्रम का अर्थ भी समय का सदुपयोग ही है। असमय का श्रम पारिश्रमिक से अधिक थकान लाया करता है।

मनुष्य कितना ही परिश्रमी क्यों न हो यदि वह अपने परिश्रम के साथ ठीक समय का सामंजस्य नहीं करेगा तो निश्चय ही उसका श्रम या तो निष्फल चला जाएगा अथवा अपेक्षित फल न ला सकेगा। किसान परिश्रमी है, किन्तु यदि वह अपने श्रम को समय पर काम में नहीं लाता तो वह अपने परिश्रम का पूरा लाभ नहीं उठा सकता। समय पर न जोतकर असमय जोता खेत अपनी उर्वरता को प्रकट नहीं कर पाता। असमय बोया हुआ बीज बेकार चला जाता है। समय पर न काटी गई फसल नष्ट हो जाती है। संसार में प्रत्येक काम के लिए निश्चित समय पर न किया हुआ काम कितना भी परिश्रम करने पर भी सफल नहीं होता।

प्रकृति का प्रत्येक कार्य एक निश्चित समय पर होता है। समय पर ग्रीष्म तपता है, समय पर ही पानी बरसता है, समय पर ही शीत आती है। समय पर ही शिशिर होता और समय पर ही बसंत आकर वनस्पतियों को फूलों से सजा देता है। प्रकृति के इस ऋतु क्रम में जरा-सा भी व्यवधान पड़ जाने से न जाने कितने प्रकार के रोगों एवं इति भीति प्रकोप हो जाता है। चाँद-सूरज, ग्रह नक्षत्र सब समय पर ही उदय अस्त होते, समय के अनुसार ही अपनी परिधि एवं कक्षा में परिभ्रमण किया करते हैं। इनकी सामयिकता में जरा-सा व्यवधान पड़ने से सृष्टि में अनेक उपद्रव खड़े हो जाते हैं और प्रलय के दृश्य दीखने लगते हैं। समय पालन ईश्वरीय नियमों में सबसे महत्वपूर्ण एवं प्रमुख नियम है।

समय की बरबादी का अर्थ है अपने जीवन को बरबाद करना। जीवन के जो क्षण मनुष्य यों ही आलस्य अथवा उन्माद में खो देता है वे फिर कभी लौटकर वापस नहीं आते। जीवन-प्याले से क्षणों के जितने बूँद गिर जाते हैं प्याला उतना ही खाली हो जाता है। प्याले की वह रिक्तता फिर किसी भी प्रकार भी भरी नहीं जा सकती। मनुष्य जीवन के जितने क्षणों को बरबाद कर देता है उतने क्षणों में वह जितना काम कर सकता था उसकी कमी फिर वह किसी प्रकार भी पूरी नहीं कर सकता।

जीवन का हर क्षण एक उज्ज्वल भविष्य की सम्भावना लेकर आता है। हर एक घड़ी महान मोड़ का समय हो सकती है। मनुष्य यह निश्चयपूर्वक नहीं कह सकता कि जिस समय, जिस क्षण और जिस पल को वह यों ही व्यर्थ में खो रहा है वह ही क्षण—वह ही समय—उसके भाग्योदय का समय नहीं है? क्या पता जिस क्षण को हम व्यर्थ समझकर बरबाद कर रहे हैं वह ही हमारे लिये अपनी झोली में सुन्दर सौभाग्य की सफलता लाया हो।

सब के जीवन में एक परिवर्तनकारी समय आया करता है। किन्तु मनुष्य उसके आगमन से अनभिज्ञ रहा करता है। इसीलिये हर बुद्धिमान मनुष्य, हर क्षण को बहुमूल्य समझकर व्यर्थ नहीं जाने देता। कोई भी क्षण व्यर्थ न जाने देने से निश्चय ही वह क्षण हाथ से छूटकर नहीं जा सकता जो जीवन में वाँछित परिवर्तन का संदेशवाहक होगा। सिद्धि की अनिश्चित घड़ी से अनभिज्ञ साधक जिस प्रकार हर समय लौ लगाये रहने से उसको पकड़ लेता है ठीक उसी प्रकार हर क्षण को सौभाग्य के द्वार खोल देने वाला समझकर महत्वाकाँक्षी कर्मवीर जीवन के एक छोटे से भी क्षण की उपेक्षा नहीं करता और निश्चय ही सौभाग्य का अधिकारी बनता है।

कोई भी दीर्घ-सूत्री व्यक्ति संसार में आज तक सफल होते देखा सुना नहीं गया है। जीवन में उन्नति करने और सफलता पाने वाले व्यक्तियों की जीवन गाथा का निरीक्षण करने पर निश्चय ही उनके उन गुणों में समय के पालन एवं सदुपयोग को प्रमुख स्थान मिलेगा जो जीवन की उन्नति के लिये अपेक्षित होते हैं। दीर्घ-सूत्री व्यक्ति जिस समय को बरबाद कर चुका है, कर रहा है अथवा करने का इरादा कर रहा है निश्चय ही वही समय उसके भाग्योदय का था, है, और होगा। जो व्यक्ति आये हुये समय का समादर नहीं करता उसके लिये आने वाला समय कोई भी उपहार लेकर नहीं आता। क्योंकि वह जानता है कि जब इस आलसी ने आये हुये समय का ही आदर नहीं किया, उठ कर श्रम-जल से उसको अर्घ्य नहीं दिया तब वह मेरा भी क्या स्वागत करेगा? ऐसे दुर्भाग्य दोषी के लिये कोई भी पुरस्कार ले चलना व्यर्थ है।

आलसी अथवा दीर्घ सूत्री व्यक्ति बहुधा किसी उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा करते-करते ही सारी जिंदगी खो देते हैं और उन्हें कभी भी उपयुक्त अवसर नहीं मिल पाता। प्रमाद के मद में वे यह नहीं सोच पाते कि जीवन का प्रत्येक क्षण एक स्वर्ण-अवसर है। अवसर यों ही चुपचाप आते और चले जाते हैं। किसी भी सुअवसर के आगे चारण अथवा परिचायक नहीं चलता जो प्रमादियों को यह बतलाये कि —’सावधान हो जाइये आपके जीवन का स्वर्ण अवसर आ गया है।’ और नाहीं समय के सिर पर अवसर अथवा अनवसर का साइनबोर्ड ही लगा रहता है। उसकी परख एवं प्राप्ति तो हर क्षण को कर्मण्यता की कसौटी पर कसकर ही की जाती है। जब तक जिस क्षण का सदुपयोग करके परखा नहीं जायेगा तब तक निश्चयपूर्वक यह कैसे कहा जा सकता है कि अमुक समय उपयुक्त अवसर नहीं है। कर्म वादियों का हर क्षण उपयुक्तता के विशेषण से विभूषित होकर आता है जब कि अकर्मण्य, आलसी एवं दीर्घसूत्री की सारी जिन्दगी एक अनुपयुक्त अवसर की भाँति निकल जाती है। जीवन का प्रत्येक क्षण एक सुअवसर ही है यदि उसका ठीक ठीक उपयोग किया जाये। नहीं तो गा-बजा कर आये हुये स्वर्ण अवसर भी उपयोगी सिद्ध नहीं होते।

हर मनुष्य को समय के छोटे से छोटे क्षण का मूल्य एवं महत्व समझना चाहिये। जीवन का समय सीमित है और काम बहुत है। अपने से लेकर परिवार,समाज एवं राष्ट्र के दायित्व-पूर्ण कर्तव्यों के साथ मुक्ति की साधना तक कामों की एक लम्बी शृंखला चली गई है। कर्तव्यों की इस अनिवार्य परम्परा को पूरा किये बिना मनुष्य का कल्याण नहीं। इस कर्म-क्रम को इसी एक जीवन के सीमित समय में ही पूरा कर डालना है क्योंकि आत्मा की मुक्ति मानव जीवन के अतिरिक्त अन्य किसी जीवन में नहीं हो सकती और मुक्ति का प्रयास तभी सफल हो सकता है जब वह उसके सहायक पूर्व प्रयासों को पूरा करता है। अस्तु जीवन के चरम लक्ष्य मुक्ति को पाने के लिये उसकी साधना के अतिरिक्त सारे कर्तव्य क्रम को इसी जीवन के सीमित समय में ही पूरा करना होगा।

इतने विशाल कर्तव्य क्रम को मनुष्य पूरा तब ही कर सकता है जब वह जीवन के एक-एक क्षण एक पल और एक-एक निमेष को सावधानी के साथ उपयोगी एवं उपयुक्त दिशा में प्रयुक्त करे। नहीं तो किसने देखा है कि उसके जीवन का अन्तिम छोर कितनी दूरी पर ठहरा हुआ है। जीवन की अवधि सीमित होने के साथ अनिश्चित एवं अज्ञान भी है। जो क्षण हमारे पास है हृदय के जिस स्पन्दन में गति है, वही हमारा है श्वास का एक आगमन ही हमारा है बाकी सब पराये हैं, न जाने दूसरे क्षण हमारे बन पायेंगे या नहीं। अतएव हर बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिये कि जो क्षण, जो श्वास, उसके अधिकार में है उसे भगवान की महती कृपा और जीवन का उच्चतम अंतिम अवसर समझकर इस सावधानी एवं संलग्नता से उपयोग करे कि मानों इसी एक क्षण में सब कुछ कर डालना है। अपने वर्तमान, क्षण को छोड़कर भविष्य की युगीन अवधि पर विश्वास करना विवेक का बहुत बड़ा अपमान है। जिस भविष्य पर आप अपने जीवन विकास के कार्यों, अपने महान कर्तव्यों को स्थगित करने की सोच रहे हैं वह आ ही जायेगा, यह जीवन की निश्चित अनिश्चितता के बीच निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता।

कर्तव्यों के विषय में आने वाले कल की कल्पना एक अंधविश्वास है। उसकी प्रतीक्षा करने वाले नासमझ इस (page no. 21 to 26 missing from master copy)


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