VigyapanSuchana

December 1952

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(1) इस अंक के साथ अधिकाँश पाठकों का चन्दा समाप्त हो जाता है। आगामी वर्ष का चन्दा 2.50 रु. मनीआर्डर से भेजने की प्रार्थना है। वी. पी. मँगाने में व्यर्थ ही कुछ पैसे अधिक देने पड़ते हैं।

(2) जिन सज्जनों का चन्दा बीच के किसी मास में समाप्त होता है। उनसे प्रार्थना है कि सन् 53 के शेष महीनों का भी चन्दा भेज कर हिसाब पूरा कर लें। अधूरे वर्ष का हिसाब रखने में हमें बड़ी कठिनाई होती है।

(3) अगला जनवरी का अंक ‘मनुष्यता अंक’ होगा। यह आदि से अन्त तक प्रो. रामचरण महेन्द्र एम. ए. की लेखनी से लिखा हुआ होगा। इसी से पाठक अनुमान लगा सकते हैं कि इसकी उपयोगिता कितनी अधिक होगी।

(4) अखण्ड-ज्योति उतनी ही छपती है जितने उसके ग्राहक होते हैं। देर से चन्दा भेजने वालों को पिछले अंकों से वंचित रहना पड़ता है। आप अपना चन्दा यथा सम्भव शीघ्र ही भेजने का प्रयत्न करें ताकि मनुष्यता अंक समाप्त हो जाने पर उससे वंचित न रहना पड़े।

(5) जहाँ हर साल अखण्ड-ज्योति संस्था को अपने प्रति ग्राहक से एक वर्ष में करीब एक आना लाभ होता था वहाँ इस वर्ष एक चित्र बढ़ा देने के कारण करीब तीन आना हर ग्राहक पर घाटा पड़ा है। अगले वर्ष से टाइटिल पृष्ठ आर्ट पेपर पर तिरंगा छपने की व्यवस्था भी की गई है। इससे घटा और भी बढ़ेगा। अखण्ड-ज्योति का प्रचार अधिक हो और उसे अधिक से अधिक सस्ती एवं सर्व सुलभ रखता जाय इस दृष्टि से मूल्य नहीं बढ़ाया गया है। घाटे की पूर्ति का एक ही उपाय है कि प्रेमी सज्जन एक एक दो दो ग्राहक बढ़ाने का प्रयत्न करें। यदि ग्राहक संख्या दूनी हो जाय तो यह घटा सहज ही पूरा हो सकता है।

(6) अगले वर्ष सभी ग्राहकों के पते नये सिरे से छापे जायेंगे। इसलिए अपना पूरा पता साफ अक्षरों में मनीआर्डर कूपन पर लिखने की कृपा अवश्य करें। ताकि गलत पता छप जाने की गड़बड़ी न हो।

(7) पुराने ग्राहक अपना ग्राहक नम्बर लिखने की अवश्य कृपा करें। यदि नम्बर न याद हो तो कम से कम “पुराने ग्राहक” शब्द मनीआर्डर में लिख दें। इसी प्रकार “नये ग्राहक” भी अपना उल्लेख कर दें।

(8) यहाँ से हर महीने ठीक समय पर दो बार जाँच कर सभी ग्राहकों के लिये “अखण्ड-ज्योति” भेजी जाती है। यदि कोई अंक न मिले तो अपने पोस्ट आफिस में तलाश करने के बाद उसी महीने हमें सूचना दे देनी चाहिए ताकि अंक बचा हो तो दुबारा भेजा जा सके। कई महीने बाद शिकायत भेजने पर पिछले अंक समाप्त हो जाने के कारण उन्हें दुबारा भेजना सम्भव नहीं होता।

(9) जिन्हें ग्राहक न रहना हो वे अपने निश्चय की सूचना एक कार्ड द्वारा भेज देने की कृपा कर सकें तो विशेष अनुग्रह होगा।

(10) रुपया मनीआर्डर द्वारा ही भेजना चाहिए। सादे लिफाफे में रखकर भेजे हुए नोट अक्सर गुम हो जाते हैं। इस प्रकार भेजना कानूनी जुर्म भी है।

(11) पिछले 13 वर्षों के अंकों में से कुल मिलाकर 24 अंक बचे हैं। किसी भी वर्ष की पूरी फाइल नहीं है। जो सज्जन मँगाना चाहें 3 रु. मनीआर्डर से भेजकर प्राप्त कर सकते हैं। रजिस्ट्री पार्सल से अखण्ड-ज्योति के 24 अंक भेज दिये जावेंगे।

विनीत-

व्यवस्थापक- “अखण्ड-ज्योति” प्रेस, मथुरा।

वर्ष-13 सम्पादक - श्रीराम शर्मा आचार्य अंक -12


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