मन का भ्रम (Kavita)

December 1952

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तू रो देता तो कह देता है-सावन है।

तू हँस देता तो मधु ऋतु का आमंत्रण है॥

तेरे ही अनुरूप प्रकृति का सारा क्रम है!

यह सारा सुख-दुख तेरे ही मन का भ्रम है!!

श्वेत-पत्र है नियति कर्म ही लिखता अक्षर।

मौन भविष्यत् किंतु भाव ही भरते हैं स्वर॥

शान्ति, एक तेरा ही तो सुखमय संयम है!

यह सारा सुख-दुख तेरे ही मन का भ्रम है!!

तेरे ही तो चरण स्वयं हैं पथ बनाते।

फिर उसको ही इष्ट समझ हैं बढ़ते जाते॥

तू साधन है, तू प्रतिफल है, यही नियम है!

यह सारा सुख-दुख तेरे ही मन का भ्रम है!!

(श्रीमती विद्यावती मिश्र)


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