कठिनाई का सामना करने को तैयार रहो।

December 1952

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(श्री मोतीलाल जैन, एम. ए.)

टारपीडो नामक नाव से जो गोला छोड़ा जाता है उसमें इतनी शक्ति होती है कि वह लड़ाई के बड़े-बड़े जहाजों के टुकड़े-2 कर देता है। परन्तु यह महाशक्ति ऐसी गुप्त रहती है कि इसको प्रकट करने के लिए बहुत बड़े धक्के की आवश्यकता होती है।

चाहे बच्चे उस गोले से वर्षों तक खेलते रहें, उसको कूटते पीटते रहें, उसको लुढ़काते फिरें, अथवा उसके साथ कुछ भी करें, परन्तु वह फटता नहीं। किसी साधारण मकान की दीवारों पर वह गोला फेंका जाय तब भी वह नहीं फट सकता। जब वह गोला किसी बड़ी तोप में भर कर बड़े जोर से छोड़ा जाता है और वह लोहे की एक फुट मोटी चद्दर में जो लड़ाकू जहाजों के पेंदे में लगी होती है, जाकर लगता है तब कहीं उसे धक्का पहुँचता है और वह फट जाता है तथा अपनी प्रबल शक्ति से जहाज के पेंदे के टुकड़े कर डालता है।

इसी प्रकार प्रत्येक मनुष्य के भीतर ऐसी महाशक्ति छिपी हुई है कि जब तक उस मनुष्य के ऊपर कोई जिम्मेदारी नहीं आती उसे कोई धक्का नहीं लगता अथवा उसके जीवन में कोई विकट प्रसंग नहीं आता तब तक उस शक्ति का प्रादुर्भाव नहीं होता, और आश्चर्य की बात तो यह है कि तब तक वह मनुष्य स्वयं यह जान भी नहीं पाता कि उसमें ऐसी महाशक्ति छिपी है।

इतिहास में ऐसे अनेकों प्रसिद्ध नाम पाये जाते हैं जिन्होंने उस समय तक अपनी महाशक्ति को नहीं पहिचाना जब तक कि वे साहस और उत्साह के सिवा सब कुछ न खो बैठे अथवा जब तक उनके ऊपर कोई इतनी बड़ी आपत्ति न आई कि उनको संसार में अपना मार्ग स्वयं खोजना पड़ा।

महात्माओं की उत्पत्ति आवश्यकताओं की पाठशाला में होती है। बड़े-बड़े शक्तिशाली और विद्वान् मनुष्य, जिन्होंने सभ्यता की उन्नति की है, स्वावलम्बन के द्वारा ही सब कुछ कर सके हैं। वे दूसरों के सहारे से नहीं बढ़े हैं, किन्तु उन्होंने हर एक बात में अपनी उन्नति आप ही की है।

वे लोग महात्मा इसलिए कहलाते हैं कि उन्होंने कठिनाइयों पर विजय प्राप्त की है और अनेक आपत्तियों का सामना किया है। उनमें उन कठिनाइयों की शक्ति आ गई है जिन पर उन्होंने विजय प्राप्त की है।

उत्तरदायित्व से शक्ति बहुत बढ़ती है। जहाँ कहीं उत्तरदायित्व होता है वहाँ पर वृद्धि भी होती है। जिन मनुष्यों को जिम्मेदारी के काम नहीं करने पड़ते उनकी वास्तविक शक्ति का कभी विकास नहीं होता। इसी कारण जिन लोगों के जीवन चाकरी में व्यतीत होते हैं वहाँ उनको अपनी बुद्धि से काम नहीं लेना पड़ता उनमें जोरदार मनुष्य बहुत कम होते हैं। वे जन्म भर शक्तिहीन ही बने रहते हैं। क्योंकि किसी बड़ी जिम्मेदारी के न रहने से उनकी शक्तियों का विकास नहीं होने पाता। उनको स्वयं विचार करने की आवश्यकता नहीं पड़ती, क्योंकि उनको दूसरों के विचारों के अनुसार चलना पड़ता है। उन्होंने अपने पैरों पर आप खड़े होना स्वयं विचार करना और स्वतन्त्र होकर काम करना कभी नहीं सीखा। इसका कारण यह है कि उन्हें अपने आप कभी किसी प्रकार की व्यवस्था नहीं करनी पड़ी और उन्होंने अपने बल पर कोई मौलिक अथवा स्वतन्त्र कार्य नहीं किया। जिस शक्ति से मनुष्य नई-नई बातें निकालता है, आविष्कार करता है और विकट प्रसंगों का सामना करता है, जो आपत्तियों और कठिनाइयों का बार-बार सामना करने और अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिये साधन इकट्ठा करने से प्राप्त होती है और जो मनुष्य को राष्ट्रीय आपत्तियों का सामना करने के योग्य बनाती है उस शक्ति का विकास किसी बड़ी जिम्मेदारी के काम को वह वर्षों तक करने से होता है।

कोई मनुष्य अपनी गुप्त शक्ति के परिणाम को उस समय तक नहीं जान सकता जब तक कि किसी कठिन प्रसंग के समय या भारी आपत्ति में उसकी परीक्षा न हो जाय। मनुष्य बहुधा अधेड़ हो जाने पर भी अपनी संपूर्ण शक्ति को नहीं जान पाते। जब तक कि किसी बड़ी आपत्ति, हानि अथवा शोक में उनकी परीक्षा नहीं हो जाती तब तक वे यह नहीं बता सकते कि वे कितनी बड़ी कठिनाई का सामना कर सकते हैं। मनुष्यों की अवस्था चाहे कितनी ही हो जाय, परन्तु जब तक किसी कठिन प्रसंग के समय उनकी गुप्त शक्ति की परीक्षा नहीं हो लेती तब तक वे यह नहीं जान सकते कि किसी बड़ी आपत्ति के आ जाने पर वे कितनी वीरता दिखा सकेंगे।

हम अनेक स्त्रियों को जानते हैं, जिनके दिन बड़े सुख से कटते थे, परन्तु उनके पति और माता-पिता की अकस्मात मृत्यु हो गई और वे निर्धन भी हो गई। उन्होंने कभी अपने हाथों से काम करना न सीखा था, क्योंकि उनके घर में नौकरों की कमी न थी। वे यह जानती थीं कि धन कमाना कैसा होता है। परन्तु उन्हीं स्त्रियों ने आपत्ति का बड़ी वीरता से सामना किया और काम करने में आश्चर्यजनक योग्यता दिखाई। यह यह योग्यता उनमें पहले भी विद्यमान थी, परन्तु गुप्त थी, उनके ऊपर पहले किसी उत्तरदायित्व का भार नहीं पड़ा था।

यदि तुम अपने ऊपर जिम्मेदारी लेना ही नहीं चाहते और यदि तुम आराम की जिन्दगी पसन्द करते हो और स्वतन्त्र व्यापार की कठिनाइयों और झंझटों को किसी दूसरे के ही ऊपर डालना चाहते हो तो तुम भले ही गुलामी करते रहो। परन्तु यदि तुम अपनी शक्ति से यथासम्भव अधिक काम लेना चाहते हो और तुम्हारा उद्देश्य अपनी योग्यता की अधिक से अधिक वृद्धि करना है तो तुम उस समय तक अपने उद्देश्य की अच्छी तरह पूर्ति नहीं कर सकते जब तक कि तुम केवल किसी दूसरे के बताये हुये मार्ग पर चलते रहोगे और सब काम उसी के विचारों के अनुसार करते रहोगे।

प्रत्येक मनुष्य जो अपनी अनेक शक्तियों को अपने भीतर छिपाये रहता है और उनसे कुछ काम नहीं लेता स्वयं पाप का भागी होता है और सभ्यता की उन्नति में बहुत बड़ी रुकावट डालता है।

अपने ऊपर भरोसा करने से डरो मत। प्रत्येक मनुष्य में नये कामों के करने की कुछ न कुछ योग्यता होती है और आत्मविश्वास से इस योग्यता का विकास होता है।


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