प्रचार- हमारा मुख्य उद्देश्य युग निर्माण है। निर्माण के लिए अधिक संख्या में व्यक्तियों को खोजने के लिए प्रचारात्मक कार्यक्रम हैं। हर प्रचारात्मक, प्रदर्शनात्मक कार्य का मूल्यांकन इसी आधार पर किया जाना चाहिए कि कितने नये व्यक्तियों को नवसृजन की धारा से जोड़ा जा सका ? सृजन के काम में, निर्माण के काम में सबसे बड़ा निर्माण है- सृजनशील व्यक्तियों का निर्माण। सबसे कुशल सृजेताओं को इसी कार्य को प्रधान मानकर चलना चाहिए। अन्य सृजनशील युवाओं को उनकी रुचि एवं क्षमता के अनुरूप विभिन्न रचनात्मक आन्दोलनों में लगा देना चाहिए।
संघर्ष भी हमारा रचनात्मक है। हमारे अंदर जो कमजोरियाँ हैं, जो हमें सृजनशील नहीं बनने देतीं, उनके साथ संघर्ष जरूरी है। हर युवक में अपने दोष- दुर्गुण को संघर्षपूर्वक दूर करने की बहादुरी तो होनी चाहिये। इसी प्रकार सृजन के मार्ग में बाधक जो कुरीतियाँ, प्रवृत्तियाँ समाज में फैली हैं, उन्हें समाज से दूर करने लिए भी संघर्षशील होना जरूरी है। नशा, व्यसन, सामाजिक अंध विश्वासों- कुरीतियों को घुन एवं दीमक की तरह समाज को खोखला बनाने वाले शत्रु मानकर उनके साथ संघर्ष के मोर्चे खड़े करने जरूरी हैं। बिना सृजनात्मक उद्देश्यों के मात्र अपनी ताकत और बहादुरी दिखाने के प्रयास समाज के लिए घातक होते हैं। अतः अपने संघर्ष को भी सृजनशील बनाये रखने के साथ सावधानी बरतना जरूरी है।