युग निर्माण में युवा शक्ति का सुनियोजन

आन्दोलन समूह

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गायत्री परिवार सहित सभी संगठनों को चाहिए कि वे अपने संगठन में सृजनशील युवा संगठन की इकाइयाँ विकसित करें। उनका संचालन अपने- अपने संगठनों के अनुशासन एवं नियमों के अनुसार किया जाना उचित है। समाज में सृजनात्मक या संघर्षात्मक आन्दोलन चलाने के लिए विभिन्न संगठनों या क्षेत्रों के युवा मण्डल एक जुट होकर कार्य करें, तो सफलता का स्तर निश्चित बढ़ेगा। इसके लिए उन्हें परस्पर तालमेल पूर्वक आगे बढ़ने का अभ्यास करना होगा। इसमें व्यक्ति और संगठित इकाइयों की रुचि तथा क्षमता का ध्यान रखते हुए कार्य योजना बनानी होती है।

रुचि व क्षमता के अनुरूप कार्य किसी भी आन्दोलन को सफल बनाने के लिए जरूरी है कि कार्य के अनुरूप व्यक्ति तथा व्यक्ति के अनुरूप कार्य की संगति बिठा ली जाय। युवाओं के संदर्भ में भी इसी के अनुरूप कार्य योजनाएँ बनाई जानी चाहिए।

युवा जैसे होंगे, वैसा ही राष्ट्र और समाज बनेगा। इसलिए युवाओं को स्वस्थ, सुशिक्षित, सुसंस्कारी, स्वावलम्बी, सेवाभावी एवं सहयोगी वृत्ति का होना चाहिए। कहा गया है स्वस्थ युवा- सबल राष्ट्र, शिक्षित युवा- प्रगतिशील राष्ट्र, सुसंस्कारी युवा- श्रेष्ठ राष्ट्र, स्वावलम्बी युवा- सम्पन्न राष्ट्र, सेवाभावी युवा- सुखी राष्ट्र, सहयोगी युवा- समर्थ राष्ट्र।

युवा आन्दोलन से जुड़े युवाओं को यह तथ्य समझना चाहिए कि सफल जीवन तभी बनता है, जब उसमें सभी धाराओं का संतुलन हो। ऊँचे कैरियर के नाम पर अधिक से अधिक कमाई के सम्मोहन में युवक- युवतियों का जीवन एकांगी हो जाता है। यदि समाज को, राष्ट्र को, विश्व को उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जाना है, तो युवाओं को उक्त सभी प्रवृत्तियाँ अपने अन्दर जाग्रत् करनी ही होंगी।

युवा संगठन सेवा- साधना के क्रम में सातों आंदोलनों (साधना, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलम्बन, पर्यावरण, व्यसन एवं कुरीति उन्मूलन तथा नारी जागरण) में से किसी में भी भागीदार बन सकते हैं। चूँकि युवाओं में जोश और श्रम- सामर्थ्य की अधिकता होती है, इसलिए उन्हें जोशीले तथा श्रमपरक दो आन्दोलनों को प्रधानता देनी चाहिए।

१. व्यसन- कुरीतियों से मुक्ति- इस दिशा में अपना नारा है- ‘व्यसन से बचाओ- सृजन में लगाओ।’ कहने की जरूरत नहीं कि नशा, व्यसन तथा सामाजिक कुरीतियों में लगने वाले समय, प्रभाव, ज्ञान, पुरुषार्थ एवं धन को बचाकर उसका कुछ अंश भी सृजन में लगाया जा सके, तो सृजन के लिए संसाधनों की कमी न पड़े।

२. आदर्श परिवार- आज परिवार टूट रहे हैं। उसका सबसे बड़ा खामियाजा नई पीढ़ी को भुगतना पड़ रहा है। पूज्य गुरुदेव ने कहा है- ‘बच्चों का पालन ही नहीं निर्माण भी करें’ पर जहाँ परिवार भाव ही टूट रहा हो, वहाँ निर्माण की जहमत कौन उठाए? अस्तु, युवकों को पारिवारिक सम्बन्धों- आदर्शों के प्रति भी जागरूक बनाया जाना है। परिवार संगठन की शुरुआत विवाह से ही होती है। इसलिए आदर्श विवाह भी इसी आन्दोलन के अंग बनेंगे। इसी आधार पर बेटे- बेटी तथा बेटी- बहू के बीच का भेद मिटेगा और नारी के प्रति होने वाले अत्याचार समाप्त हो जायेंगे। इसी आधार पर भाव- संवेदनाओं को पोषण मिलेगा तथा तमाम टेंशन- डिप्रेशनों से मुक्ति मिलेगी।

अस्तु, हर क्षेत्र में युवाओं के प्रौढ़ मित्र- बुजुर्ग दोस्त उभरें तथा उक्त सूत्रों के आधार पर सृजनशील युवा संगठन खड़े करें।

कुछ युवा परिजन, युवा मंडल, जी.पी.वाई.जी. (गायत्री परिवार यूथ ग्रुप) तथा दिया (डिवाइन इण्डिया यूथ ऐसोसिएशन) के बीच भेद और परस्पर सम्बन्धों के बारे में पूछा करते हैं।

इस सन्दर्भ में देवसंस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार में हुई युवा प्रतिनिधियों की कार्यशालाओं तथा विभिन्न क्षेत्रीय युवा सम्मेलनों में स्पष्टीकरण दिए जाते रहे हैं। उन निर्धारणों का सार संक्षेप इस प्रकार है-

* प्रज्ञा मण्डल, युग निर्माण परिवार- गायत्री परिवार या प्रज्ञा परिवार के संगठन की रूपरेखा एक ही है। प्रज्ञा मण्डल, महिला मण्डल, युवा मण्डल, संस्कृति मण्डल आदि उसी संगठन के घटक हैं।

* जी.वी.वाई.जी. (गायत्री परिवार यूथ ग्रुप) युवा मण्डलों का ही अंग्रेजी अनुवाद है। कुछ बड़े नगरों में परिस्थितियों के अनुरूप इस नाम का प्रयोग किया गया, जिसमें किसी भेद या विरोधाभास की कल्पना नहीं की जानी चाहिए।

* ‘दिया’ (DIYA डिवाइन इण्डिया यूथ एसोसिएशन) युवा प्रज्ञा मण्डलों के माध्यम से चलाया जाने वाला एक युग निर्माणी आन्दोलन है। भारत में युवा शक्ति की जनसंख्या ५४ प्रतिशत से अधिक है। इस युवा शक्ति से सभी को बहुत उम्मीदें हैं, जो कि होनी भी चाहिए। भारत को पुनः दिव्य सांस्कृतिक गौरव दिलाने में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका निश्चित है। इसके लिए जरूरी है कि युवाओं को जाति, सम्प्रदाय एवं अन्य वर्ग भेदों से परे, अपने अन्दर की दिव्य क्षमताओं को विकसित एवं अनुशासित ढंग से प्रयुक्त करने के लिए तैयार किया जाय।

पश्चिम की एक उक्ति है कि हर व्यक्ति के अन्दर देवत्व बीज रूप में स्थित है। (एव्री इण्डिविजुअल इज़ पोटैंशियली डिवाइन) जब स्वभाव में दिव्यता का विकास होगा, तभी व्यक्ति मनुष्योचित आदर्शों पर चलने- चलाने में समर्थ सिद्ध हो सकेगा। यह विकास केवल कामना करने से संभव नहीं है। उसके लिए तो नियमित साधना चाहिए। भारत देश को तथा विश्व मानवता को दिव्यता का लाभ दिलाना है, तो युवाओं को इस दिशा में पूरे जोश-खरोश के साथ अनुशासित ढंग से सक्रिय करना होगा।

बढ़ती संकीर्ण स्वार्थपरता और मानवीय मूल्यों की उपेक्षा ही हमारी दुर्गति का कारण है। लोगों के विचारों में आमूलचूल परिवर्तन कर, प्रत्येक युवा को आत्म परिष्कार व समाज कल्याण के मार्ग पर बढ़ाने के उद्देश्य से देवसंस्कृति विश्वविद्यालय ने युवा आन्दोलन (दिया) की शुरुआत की।

हम जिस भी धर्म, जाति या सम्प्रदाय या संगठन में जुड़े हों, अपनी ही परिधि में रहकर युग को बदलने के लिए संकल्पित हो जाएँ।

हम सभी मूलतः दिव्य क्षमता सम्पन्न हैं, (We all are potentially divine) इस सूत्र को जीवन्त रूप देने का नाम है दिया।

मनुष्य के पास शक्ति की तीन मुख्य धाराएँ हैं। शारीरिक, आर्थिक व वैचारिक शक्ति। इन शक्तियों पर चेतना शक्ति का नियन्त्रण होना अनिवार्य है। इसके अभाव में शारीरिक शक्ति उद्दण्डता में, आर्थिक शक्ति व्यसन की ओर व बौद्धिक शक्ति विनाश के क्रिया कलापों की ओर भटक जाती है। जाग्रत् शक्तियों के दुरुपयोग को रोककर सदुपयोग के मार्ग पर लाना ही सभी समस्याओं का समाधान है।

समस्त युवाओं को आत्म निर्माण से राष्ट्र निर्माण की राह पर चलाने के प्रयास का नाम ही दिया है। यदि अब भी हमने कोई कदम नहीं उठाया, तो शायद हमारी गिनती समाज को पतन की ओर ले जाने वाली आसुरी शक्तियों के सहयोगियों में की जाने लगे। समय आ गया है कि हम एकजुट होकर आने वाले युग की जिम्मेदारी अपने कन्धों पर ले लें।

क्या करें, कैसे करें? :- दिया आन्दोलन के द्वारा चलाई जाने वाली गतिविधियाँ को अपनाकर अपने देवत्व के दीपक में ज्योति जाग्रत करें।

ज्योति Flame-

F - Fitness Program (फिटनेस प्रोग्राम)

L - Learning Spirit (लर्निंग स्पिरिट)

A - Awareness Drive (एवेयरनैस ड्राइव)

M - Motivational Spirit (मोटीवेशनल स्पिरिट)

E - Entrepreneurial Qualities (इन्टप्रन्यूरियल क्वालिटीज)

अर्थात- दिया के सदस्यों में- 1. समग्र स्वास्थ्य कार्यक्रम,

2.अध्ययन की प्रवृत्ति,

3. जागरूकता अभियान तथा

4.उद्यमिता विकास की क्षमता बढ़ाने के गुण होने चाहिए।

इस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए देव संस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति द्वारा विश्वविद्यालय के छात्र- छात्राओं को पहल करने के लिए प्रेरित किया गया, जिसके अच्छे परिणाम सामने आये। जैसे भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा के प्राथमिक सीमित प्रयोग की सफलता ने परिजनों को उस दिशा में कार्य करने के लिए उत्साहित किया, वैसे ही दिया के प्राथमिक प्रयोगों के शुभ प्रभावों ने प्रज्ञा परिवार को प्रेरित किया कि इस अभियान को व्यापक रूप दिया जाय। यह क्रम चल पड़ा है तथा पूरी संभावना है कि यह आन्दोलन भी भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा की तरह विभिन्न प्रतिभाशालियों के सहयोग से देशव्यापी- विश्वव्यापी रूप शीघ्र ले लेगा।

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