क- ईश्वर उपासना के क्रम में विभिन्न मतावलम्बी युवाओं को उनके विश्वास के अनुरूप ही चलने को प्रेरित किया जाय। वे गायत्री मन्त्र को सार्वभौम मंत्र मानकर उसका प्रयोग करें तो अच्छी बात है, किन्तु मन में संकोच हो तो उन्हें इसके लिए बाध्य न किया जाय। वे अपनी श्रद्धानुसार मंत्रों, प्रार्थनाओं का प्रयोग करें, किन्तु उन्हें कुछ बातें स्पष्टता से समझा दी जानी चाहिए, जैसे - उपासना में कुछ कर्मकाण्ड होते जरूर हैं, किन्तु वह उन तक ही सीमित नहीं है। उपासना का अर्थ है- इष्ट के पास बैठना। उसके साथ अभिन्न सम्बन्ध अनुभव करना। कर्मकाण्ड इसमें मदद करते हैं, किन्तु उसमें साधक की भावनाओं, उसके विचारों और संकल्पों की मुख्य भूमिका होती है। किसी भी कर्मकाण्ड एवं मंत्र के साथ भाव यही रहे कि ‘हे परमात्मा ! हम सबको सद्बुद्धि दें, सबको उज्ज्वल भविष्य के मार्ग पर आगे बढ़ाएँ’।
ख- १. जीवन साधना के अंतर्गत अपने अन्दर बीज रूप में स्थित दिव्य क्षमताओं को जगाना और अन्दर पनपने वाले दोषों- विकारों को निर्मूल करते रहने के प्रयास किए जाते हैं। जो स्वयं को श्रेष्ठता के साँचे में ढालने, अनुशासित बनाने की जितनी साधना करता है, उसे उसी अनुपात में ईश्वरीय अनुदान मिलते हैं।
२. स्वाध्याय-
विचारों संकल्पों को सही दिशा और शक्ति मिलती है। इसी आधार पर साधक के प्रयास पुरुषार्थ होते हैं। आदर्शनिष्ठ व्यक्तियों, श्रेष्ठ विचारकों के विचारों का अध्ययन नियमित रूप से किया जाय। जो सूत्र प्रभावित करें, उन्हें जीवन साधना में शामिल किया जाय, तो व्यक्तित्व में चुम्बकीय प्रभाव पैदा होने लगते हैं।
३. संयम :-
के अंतर्गत अपने अन्दर संभावित शक्तियों के विकास के साथ उन्हें नियन्त्रित और सुनियोजित करने के प्रयास किए जाते हैं। अन्यथा जाग्रत् शक्तियाँ गलत दिशा में लगकर अनर्थ पैदा करने लगती हैं।
४. सेवा :-
किन्हीं का दुःख बँटा लेने या उन्हें सुख बाँट देने के कार्य सेवा कार्य कहलाते हैं। मनुष्य में सामर्थ्य या तो जागती ही नहीं अथवा जागने पर भी व्यसनों में लगकर समस्याएँ पैदा करने लगती है। उक्त कार्यों को भली प्रकार करते रहने के लिए दो बातें जरूरी हैं १. समयदान २. अंशदान। आत्म विकास में रुचि रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को उक्त नियमों के पालन के लिए प्रतिदिन कम से कम एक घण्टा समय और आधा कप चाय अथवा आधी रोटी की कीमत जितना अंशदान नियमित रूप से निकालना चाहिए।
संगठित युवाओं को क्रमशः युग निर्माण योजना के मुख्य सूत्रों के साथ जोड़ना चाहिए। आदर्श समाज की ओर बढ़ने के लिए व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण एवं समाज निर्माण में सब की भागीदारी हो। समग्र क्रांति के लिए विचार क्रांति, नैतिक क्रांति के आधार पर ही सामाजिक क्रांति संभव होगी। इसके लिए प्रचारात्मक, रचनात्मक तथा संघर्षात्मक गतिविधियों को अपने- अपने क्षेत्र की आवश्यकता तथा अपनी सामर्थ्य के अनुरूप चलाने के विवेक सम्मत प्रयास किए जाने चाहिए।