युग निर्माण में युवा शक्ति का सुनियोजन

संगठन और उसकी मर्यादाएँ

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युवा शक्ति को भटकावों से बचाकर उन्हें सृजनशील बनाने हेतु उन्हें जगह- जगह छोटी- छोटी इकाइयों के रूप में संगठित करना होगा। इस क्षेत्र के युवाओं और उनके हितैषी प्रौढ़ों को प्रयास करने होंगे।

आदर्शनिष्ठ व्यक्तियों को आकर्षित करना, उन्हें प्रेम और अनुशासन के सूत्रों से बाँधकर रखना, आवश्यकता के अनुरूप उन्हें प्रेरणा, प्रोत्साहन, प्रशिक्षण एवं सहयोग देते रहने की व्यवस्था बनाना भी जरूरी है। जिन्होंने अपने भावों, विचारों और कौशल को तदनुरूप बनाया, निखारा, वे ही कुछ उल्लेखनीय करने में सफल हो सके हैं। युवा संगठन और आन्दोलन में लगे युवाओं और प्रौढ़ों को इस दिशा में जागरूक रहना आवश्यक है।

एक बात और ध्यान में रखने की है कि युगऋषि ने अपने संगठन को संस्थागत नहीं, परिवारगत प्रारूप के अनुसार बनाने- बढ़ाने के निर्देश दिए हैं। ‘सृजन शिल्पियों के संगठन की रीति- नीति’ नामक पुस्तिका में इस संदर्भ में पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। उसी को आधार मानकर संगठन का क्रम चलाया जाना उचित है। सामान्य रूप से लोग संगठन की विशालता को सफलता का मुख्य प्रमाण मानकर उसकी गुणवत्ता को भूलने लगते हैं। हमारा नारा है- ‘युग निर्माण कैसे होगा? व्यक्ति के निर्माण से।’ इसी तरह निर्माण के तीन चरण(व्यक्ति, परिवार एवं समाज) में पहला चरण व्यक्ति निर्माण है।

युवाओं में जोश खूब होता है। एक बार लहर चल पड़े, तो वे उस दिशा में बड़ी संख्या में साथ चल पड़ते हैं। अतः प्रत्यक्ष कार्यक्रमों में उन्हें लगाना आसान होता है। इसी बिन्दु पर सावधानी बरतना भी जरूरी हो जाता है।

पूज्य गुरुदेव कहते रहे हैं कि युग परिवर्तन की दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान उन्हीं का हो सकता है जो पहले स्वयं के चिंतन, चरित्र एवं व्यवहार में परिवर्तन ला सकते हों। प्रत्यक्ष कार्यक्रम तो हमारे लिए व्यायाम जैसे माध्यम हैं। जैसे व्यायाम का मुख्य उद्देश्य स्वास्थ्य सुधार- शक्ति संवर्धन है, वैसे युग निर्माणी कार्यक्रमों का उद्देश्य आत्म परिष्कार तथा आत्मशक्ति का जागरण है। युवा पीढ़ी में कार्यक्रमों के प्रति तो आकर्षण होता है, किन्तु आज के विचार प्रदूषण भरे माहौल में आत्म परिष्कार जैसे मूल आधारों की ओर उनका ध्यान ही नहीं जाता। जबकि युग निर्माण आन्दोलन के अन्तर्गत युवा संगठन का उद्देश्य मुख्य रूप से यही है कि युवा शक्ति उत्कृष्ट व्यक्तित्व सम्पन्न और आदर्श, चरित्र निष्ठ युग सृजेताओं के रूप में उभरे और युग परिवर्तन के लिए मजबूत नींव या स्तंभों की भूमिका निभाये।

इसीलिए अपने युवा- संगठन की रीति- नीति प्रचलित ढर्रे से भिन्न रहनी चाहिए। युवाओं की सहज प्रवृत्ति और मिशन की आवश्यकता को ध्यान में रखकर ही युवाओं के लिए कार्य नीति बनाई गई है। इस दिशा में लगे युवा एवं प्रौढ़ परिजनों को अपने उद्देश्य और रीति- नीति को बड़ी सूझ- बूझ तथा तत्परता पूर्वक लागू करना होगा।

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