मुक्तक-
माँ तुम्हारे प्यार ने जीवन दिया है,
प्राण ने पीयूष जैसा रस पिया है।
माँ न होती तो धरा फिर नर्क होती,
आपने ही स्वर्ग का सर्जन किया है॥
प्रभो अब दो ऐसा वरदान
प्रभो अब दो ऐसा वरदान।
सत्य प्रेममय जन जीवन हो, हो नवयुग का निर्माण॥
द्वेष, कपट, छल, छद्म छोड़ दें, द्रोह, दम्भ का व्यूह तोड़ दें।
सदाचार, संयम, सेवा का, रहे सभी को ध्यान॥
मन का मैल मिटे अब सारा, बहे प्रेम की पावन धारा।
उस मानवता की गंगा में, कर लें सब स्नान॥
स्वार्थ भाव अब तो मिट जाये, लोभ, मोह का तम छुट जाये।
बन्धु भाव हो भरा सभी में, सबमें हो सद्ज्ञान॥
दुःख, दारिद्रय निकट नहीं आवे, सुख सद्गुण नर नारी पावे।
सुख, संतोष भरा हो सबमें, जग हो स्वर्ग समान॥
धन वैभव की चाह नहीं है, यश की भी परवाह नहीं है।
केवल यही चाह है मन में, नेक बने इन्सान॥
भूतल की शोभा हों हम सब, भूलें कभी न अपना गौरव।
मानवता के बने पुजारी, सच्ची प्रभु सन्तान॥