मुक्तकः-
नर- तन के चोले को पाना बच्चों का कोई खेल नहीं।
जन्म- जन्म से शुभकर्मों का, होता जब तक मेल नहीं॥
प्राणी आजा शरण गुरु की
प्राणी आ जा शरण गुरु की, तब ही मुक्ति पायेगा।
निकल गया जो समय हाथ से, रोयेगा पछतायेगा॥
मायाजाल में फँस के तूने, हरि भजन नहीं गाया है।
किसकी खातिर तूने प्राणी, इतना माल कमाया है॥
क्या लेकर आया जग में तू, क्या लेकर तू जायेगा॥
मतलब के सारे रिश्ते हैं, मतलब हर कोई साधे है।
दीपक संग पतंगा जब तक, जली हुई ये बाती है॥
बुझ जायेगी बाती जब वो, पास न कोई आयेगा॥
बीत जाये तेरी उमरिया, क्यों खोता नादानी में।
ये भी सोचो तेरी नैया, पड़ी हुई है पानी में॥
जीवन है कागज की नैया, कब तक उसे चलायेगा॥
झूठा जग का ये मेला है, क्यों दिल यहाँ लगाता है।
झूठे जगत की रीत पुरानी, कोई आता कोई जाता है॥
तू ही समझ ले कोई किसी का, कब तक साथ निभायेगा॥
सामान्यतः संगीत के मूल उद्देश्य सौन्दर्यानुभूति हृदय में नैतिकता की अभिवृद्धि तथा आनन्द की प्राप्ति है।