पत्नी का सम्मान गृहस्थ का उत्थान

नारी की गरिमा समझें और सम्मान दें

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>
आज नारी को हमने घर की बन्दिनी, परदे की प्रतिमा और पैर की जूती बनाकर रख छोड़ा है और फिर भी जो मूक पशु की तरह सारा कष्ट, सारा क्लेश विष के घूंट की तरह पीकर स्नेह का अमृत ही देती है, उस नारी के सही स्वरूप तथा महत्व पर निष्पक्ष होकर विचार किया जाए तो अपनी ही आत्मा अपने धिक्कार को अब और अधिक नहीं सुनना चाहती। मानवता के नाते, सहधर्मिणी होने के नाते, राष्ट्र व समाज की उन्नति के नाते उसे उसका उचित स्थान दिया ही जाना चाहिए। अधिक दिनों उसके अस्तित्व, व्यक्तित्व तथा अधिकारों का शोषण राष्ट्र को ऐसे गर्त में गिरा सकता है जिससे निकल सकना कठिन हो जाएगा। अतः कल्याण तथा बुद्धिमत्ता इसी में है कि समय रहते चेत उठा जाए और अपनी इस भूल को सुधार ही लिया जाए।
नारी का सबसे बड़ा महत्व उसके जननी पद में निहित है। यदि जननी न होती तो कहां से सृष्टि का संपादन होता और कहां से समाज तथा राष्ट्रों की रचना होती। यदि मां न हो तो वह कौन-सी शक्ति होती जो संसार से अनीति एवं अत्याचार मिटाने के लिए शूरमाओं को धरती पर उतारती। यदि माता न होती तो यह बड़े-बड़े वैज्ञानिक, प्रकांड पंडित, अप्रतिम साहित्यकार, दार्शनिक, मनीषी, महात्मा एवं महापुरुष किसकी गोद में खेल-खेलकर धरती पर पदार्पण करते। नारी व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र की जननी ही नहीं, वह जगज्जननी है। उसका समुचित सम्मान न करना अपराध है, पाप तथा अमनुष्यता है।
नारी गर्भ धारण करती, उसे पालती, शिशु को जन्म देती और तब तक, जब तक कि वह अपने पैरों पर नहीं चल पाता और अपने हाथों से नहीं खा पाता, उसे छाती से लगाए अपना जीवन रस पिलाती रहती है। अपने से अधिक सन्तान की रक्षा एवं सुख-सुविधा में निरत रहती है। खुद गीले में सोती और शिशु को सूखे में सुलाती है। उसका मल-मूत्र साफ करती है। उसको साफ-सुथरा रखने में अपनी सुध-बुध भूली रहती है। इस सम्बन्ध में हर मनुष्य किसी न किसी नारी का ऋणी है। ऐसी दयामयी नारी का उपकार यदि तिरस्कार तथा उपेक्षा से चुकाया जाता है तो इससे बड़ी शर्म की बात और क्या हो सकती है?
पत्नी के रूप में उसका महत्व कुछ कम नहीं है। नारी पुरुष की अर्धांगिनी है। पत्नी के बिना पति का व्यक्तित्व पूरा नहीं होता। उसी की महिमा के कारण पुरुष गृही होने का गौरव पाता है और पत्नी ही वह माध्यम है जिसके द्वारा किसी की वंश परम्परा चलती है। यह पत्नी की ही तो उदारता है कि वह पुरुष के पशुत्व को पुत्र में बदलकर उसका सहारा निर्मित कर देती है। पुरुष के प्यार, स्नेह तथा उन्मुक्त आवेगों की अभिव्यक्ति करने में पत्नी का कितना हाथ है इसे सभी जानते हैं। परेशानी, निराशा, आपत्ति अथवा जीवन के निविड़ अन्धकार में वह पत्नी के सिवाय कौन है जो अपनी मुस्कानों से उजाला कर दिया करे-अपने प्यार तथा स्नेह से हृदय में नव जीवन जगाकर आश्वासन प्रदान करता रहे। पत्नी का सहयोग पुरुष के सुख में चार चांद लगा देता है और दुःख में उसकी साझीदार बनकर हाथ बंटाया करती है। दिन भर बाहर काम करके और तरह-तरह के संघर्षों से थककर आने पर भोजन, स्नान तथा आराम-विश्राम की व्यवस्था पत्नी के सिवाय और कौन करेगा?
पुरुष एक उद्योगी तथा उच्छृंखल इकाई है, परिवार बसाकर रहना उसका सहज स्वभाव नहीं है। यह नारी की ही कोमल कुशलता है जो उसे पारिवारिक बनाकर प्रसन्नता की परिधि में परिभ्रमण करने के लिए लालायित बनाए रखती है। पत्नी ही पुरुष को उद्योग-उपलब्धियों की व्यवस्था एवं उपयोगिता प्रदान करती है। पुरुष पत्नी के कारण ही गृहस्थ तथा प्रसन्न चेता बनकर सामाजिक भद्र जीवन बिताया करता है। पत्नी रहित पुरुष का समाज में अपेक्षाकृत कम आदर होता है। परिवारों में सामाजिकता का आदान-प्रदान उन्हीं के बीच होता है जो पारिवारिक तथा पत्नीवन्त होते हैं। पत्नी की परिधि पुरुष को अनेक प्रकार की दुष्प्रवृत्तियों से बचाये रहती है। पत्नी के रूप में नारी का यह महत्व कुछ कम नहीं है। यदि आज संसार से नारी का सर्वथा अभाव हो जाए तो कल से ही पुरुष पशु हो उठे, सारी समाज व्यवस्था उच्छृंखल हो उठे और सृष्टि का यह व्यवस्थित स्वरूप अस्त-व्यस्त हो जाए।
नारी को अर्धांगिनी ही नहीं सहधर्मिणी भी कहा गया है। पुरुष का कोई भी धर्मानुष्ठान पत्नी के बिना पूरा नहीं होता। बड़े-बड़े राजसूय तथा अश्वमेध यज्ञों में भी यजमानों को अपनी पत्नी के साथ ही बैठना पड़ता था और आज भी षोडश-संस्कारों से लेकर तीर्थ स्नान तक का महत्व तभी पूरा होता है जब गृहस्थ पत्नी को साथ लेकर पूरा करता है। किसी भी गृहस्थ को सामान्य दशा में अकेले धर्मानुष्ठान करने का निषेध है। इतना ही नहीं भारतीय धर्म में तो नारी को और भी अधिक महत्व दिया गया है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश जैसे देवताओं का क्रिया कलाप भी उनकी सह-धर्मिणियों-सरस्वती, लक्ष्मी तथा पार्वती के बिना पूरा नहीं होता। कहीं किसी स्थान पर भी यह अपनी शक्तियों रहित नहीं पाये जाते। विद्या, वैभव तथा वीरता की अधिष्ठात्री देवियों के रूप में भी नारी की ही प्रतिष्ठा व्यक्त की गई है और उसे शारदा, श्री तथा शक्ति के नामों से पुकारा गया है।
नारियों की धार्मिक, सामाजिक तथा राष्ट्रीय सेवाओं के लिए इतिहास साक्षी है जिससे पता चल सकता है कि नारी पुरुष से किसी क्षेत्र में भी पीछे नहीं है। अनुसूया, गार्गी, मैत्रेयी, शतरूपा, अहिल्या, मदालसा आदि धार्मिक, सीता, सावित्री, द्रौपदी, दमयन्ती आदि पौराणिक तथा पद्मावती, वीरबाला, वीरमती, लक्ष्मीबाई, निवेदिता, कस्तूरबा प्रभृति नारियां राष्ट्रीय व सामाजिक क्षेत्र की प्रकाशवती तारिकाएं हैं। वेद तथा इतिहास के ग्रन्थों का अनुशीलन करने से पता चलता है कि प्रारम्भिक समय में जब साधनों की कमी होने से पुरुषों को प्रायः जंगलों से आहार सामग्री प्राप्त करने तथा आत्म रक्षा के कामों में अधिक ध्यान देना पड़ता था तब व्यवस्था, ज्ञान-विज्ञान तथा सभ्यता-संस्कृति सम्बन्धी विषयों में अधिकांश काम नारियां ही किया करती थीं। इसलिए अनेक तत्ववेत्ता अन्वेषक मनुष्यों की आदिम सभ्यता की जन्मदात्री नारी को ही मानते हैं। ऐसी महत्वपूर्ण तथा जीवनदायिनी नारी की उपेक्षा करना कहां तक ठीक है यह एक विचारणीय विषय है।
नारी अपने विभिन्न रूपों में सदैव मानव जाति के लिए त्याग, बलिदान, स्नेह, श्रद्धा, धैर्य, सहिष्णुता का जीवन बिताती रही है। नारी धरा पर स्वर्गीय ज्योति की साकार प्रतिमा मानी गई है। उसकी वाणी जीवन के लिए अमृत स्रोत है। उसके नेत्रों में करुणा, सरलता और आनन्द के दर्शन होते हैं। उसके हास में संसार की समस्त निराशा और कटुता मिटाने की अपूर्व क्षमता है। नारी संतप्त हृदय के लिए शीतल छाया और स्नेह सौजन्य की साकार प्रतिमा है। नारी पुरुष की पूरक सत्ता है। वह मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति है, उसके बिना पुरुष का जीवन अपूर्ण है। नारी ही उसे पूर्ण बनाती है। जब पुरुष का जीवन अंधकार युक्त हो जाता है तो नारी की संवेदना पूर्ण मुस्कान उसमें उजाला बिखेर देती है। पुरुष के कर्तव्य शुष्क जीवन की वह सरसता तथा उजड़ी जिन्दगी की हरियाली मानी गई है। नारी के वास्तविक स्वरूप पर विचार करने से विदित होता है कि वह पुरुष के लिए पूरक सत्ता ही नहीं वरन् उर्वरक भूमि के रूप में भी उसकी उन्नति, प्रगति तथा कल्याण का साधन बनती है। स्वयं प्रकृति ही नारी के रूप में सृष्टि के निर्माण, पालन-पोषण और संवर्धन का कार्य कर रही है।

<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118