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June 1982

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नायमात्मा बलहीनेन लभ्यो न च प्रमादात्तपसो वापर्यनिंगात़। एतैरुपायैर्यतते यस्तु विद्वाँस्त −स्यैष आत्मा विशते ब्रह्मा धाम॥

अर्थात्− यह आत्मा निर्बलों द्वारा नहीं प्राप्त किया जा सकता है और न प्रमाद या निरुद्देश्य किये गये तप से ही प्राप्त किया जा सकता है। जो ज्ञानी साधक इनके विपरीत बल, अप्रमाद तथा सोद्देश्य किये गये तप के द्वारा यत्न करता है वही इस आत्मा का दर्शन कर पाता हैं।


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