अगले वर्ष के सम्मेलन समारोह

June 1982

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प्रज्ञा परिवार को उनकी विशिष्ट रुचि, परिस्थिति एवं योग्यता के आधार पर सात भागों में विभक्त किया गया है। जो नितान्त व्यक्तिगत पारिवारिक जीवन चर्या तक ही सीमित रहना चाहते हैं उनके लिए भी इस अंक में सप्तसूत्री योजना प्रस्तुत की गई है। पर जो एक कदम आगे बढ़कर सामान्य संपर्क के क्षेत्र में न्यूनतम पाँच व्यक्ति यों तक युगान्तरीय चेतना का आलोक पहुँचाने के लिए सहमत हैं, उन्हें उपरोक्त सात संसदों में से किसी एक का सदस्य बन जाना चाहिए। पूछे गये आठ प्रश्नों का उत्तर हरिद्वार भेजने का नियम नहीं रखा गया है। जवाबी पत्र आने पर पंजीकरण की सूचना भर दे दी जायगी।

जिनने घर से बाहर के पाँच व्यक्ति यों से संपर्क साधा है, उन्हें अपनी टीम का ‘टोली नायक’ माना जायगा। इन पाँच साथियों की संख्या क्रमशः बढ़ानी चाहिए और जहाँ तक सम्भव हो सके वहाँ तक उसके विस्तार का प्रयास चलना चाहिए। इस संपर्क समुदाय के सदस्यों को आवश्यकतानुसार बदला भी जा सकता है। यह कार्य टोली नायक को अपनाना होगा। टीम−मण्डली के सदस्यों की नामावली —उनके साथ संपर्क साधनों की कार्य पद्धति तो आरम्भ में ही लिखनी चाहिए। साथ ही बसन्त पंचमी—गुरु पूर्णिमा तथा शरद पूर्णिमा की—वर्ष में तीन बार इस संपर्क की प्रगति उपलब्धि का विवरण केन्द्र को भी भेजते रहना चाहिए।

साँसदों के सान सम्मेलन इस वर्ष अक्टूबर से जून 83 के मध्य शान्ति−कुञ्ज में होंगे। तिथियाँ बाद में घोषित की जायेंगी। सामूहिक रूप से मार्गदर्शन तथा व्यक्तिगत मनःस्थिति—परिस्थिति के अनुसार आवश्यक परामर्श, विचार विनिमय इन्हीं सम्मेलनों समारोहों में होगा। भविष्य में भी हर संसद के अखिल भारतीय एवं विश्व परिवार के सम्मिलन शान्ति−कुञ्ज में ही वार्षिकोत्सव के रूप में होते रहेंगे।

इसके अतिरिक्त सातों संसदों के सात सम्मेलन हर प्रान्त में भी होंगे। एक सम्मेलन एक स्थान में होगा तो दूसरा दूसरे में। इस प्रकार हर प्रान्त में सात समारोह सात स्थानों पर हुआ करेंगे। इसमें सहयोग तो स्थानीय लोगों का ही होगा और प्रयत्नरत भी वे ही रहेंगे। किन्तु आमन्त्रित करने से लेकर व्यवस्था बनाने तक की पूरी जिम्मेदारी केन्द्र वहन करेगा, ताकि स्थानीय लोगों की ढील−पोल असावधानीवश उपेक्षा के कारण अस्त−व्यस्तता अव्यवस्था न फैलने पावे, आपस की आपाधापी— नेतागिरी एवं खींचतान की स्थिति भी न बने। व्यवस्थापक मात्र केन्द्र के सहयोगी माने जायेंगे और अपनी मर्जी चलाने की अपेक्षा केन्द्र का अनुशासन भर मानेंगे। वर्तमान परिस्थितियों में इससे कम में कहीं भी सुव्यवस्था बन सकने की सम्भावना नहीं है। पिछले कटु अनुभवों ने यही सिखाया है। इसलिए वस्तुस्थिति एवं कठिनाई को ध्यान में रखते हुए तद्नुरूप कदम उठाने का निश्चय किया गया है।

केन्द्र में सात वार्षिक समारोह होंगे। हर प्रान्त के सात स्थानों पर सात संसदों के सात समारोह होंगे। इसमें पारस्परिक विचार विनिमय एवं भावी निर्धारण तो प्रमुख है ही। इसके अतिरिक्त सर्वसाधारण को उद्बोधन करने के लिए खुला अधिवेशन—प्रवचन समारोह भी होगा। जिससे मिशन की विचारधारा से सर्वसाधारण को भी अवगत होने एवं प्रस्तुत प्रतिपादनों को अपनाने का अवसर मिल सके।

इन सातों समारोहों को सात मेलों का रूप देने की बात सोची गई है, जिससे विचारशील ही नहीं सामान्य जन भी विनोद मनोरंजन की दृष्टि से पहुँच सकें और उस वातावरण से अभिनव प्रकाश उपलब्ध कर सकें।

सम्मेलन में उस प्रान्त भर के साँसद एकत्रित होंगे इसलिए उनके भोजन निवास की—परामर्श पाण्डाल एवं प्रवचन पाण्डालों की संख्या को दृष्टि में रखते हुए व्यवस्था बनानी होगी। यह साधारण सभा सम्मेलनों से भिन्न प्रकार की—अपेक्षाकृत अधिक भारी— और अधिक दौड़−धूप लगना सूझ−बूझ माँगने वाली व्यवस्था होगी। अतएव यह भार किसी भी अति भावुक या अति उत्साही को उसके आग्रह के आधार पर नहीं, वरन् समर्थता की जाँच पड़ताल करने के उपरान्त की कन्धों पर डाला और स्थान का चयन किया जाया करेगा।

यह साँसद समारोह मेलों का रूप धारण करें इसलिए यह प्रबन्ध किया जायगा कि जन साधारण के लिए मनोरंजन माध्यम भी उसमें रहें। जलपान गृह, खिलौने, दैनिक उपयोग की वस्तुएँ दुकानें तो लगेंगी ही। बच्चों के झूले, खेल तमाशे भी नियन्त्रित किये जायेंगे। केन्द्र से युग चेतना को हृदयंगम कराने वाली चित्र प्रदर्शनी हर जगह पहुँचा करेगी। कठपुतलियों के नाटक भी लक्ष्य की ओर दर्शकों को मोड़ने का प्रयत्न करेंगे। बन पड़ा तो नाटक मण्डली अन्यथा संगीत मण्डली तो अवश्य ही पहुँचेगी। सरकारी सहयोग मिल सका तो उनके समाज कल्याण जैसे विभागों की प्रदर्शनियाँ—फिल्में भी आमन्त्रित की जायेंगी। क्षेत्रीय संगीतज्ञों के मधुर गान सुनने का अवसर मिलेगा। कला संसदें यदि अपने क्षेत्र में नाटक, अभिनव का प्रबन्ध कर सकीं तो उनसे भी पहुँचने का आग्रह किया जायगा। उस क्षेत्र के युवा साँसद स्वयं सेवकों को सौंपी जाने वाली जिम्मेदारियाँ वहन करेंगे।

इन समारोहों को विवाह मेलों का रूप भी दिया जायगा। पूर्व निर्धारित आदर्श विवाह तो होंगे ही। साथ ही यह प्रयत्न भी किया जायगा कि विवाह योग्य लड़की−लड़कों को लेकर अभिभावक उस समारोह में सम्मिलित हों, अपने−अपने खाँचे बिठायें, किन्तु जो भी सम्बन्ध निश्चित हो, उनमें बिना दहेज बिना जेवर तथा बिना धूमधाम की शादी की शर्त अनिवार्य रूप से रहे। इस प्रकार प्रज्ञा परिवार की अपनी बिरादरी होगी और अपनी रीति−नीति तथा विधि व्यवस्था। यह प्रचलन चल पड़े तो इसकी बहुमुखी प्रतिक्रिया होगी। फिर अन्य कुरीतियों के धुर्रे उड़ा देने का रास्ता खुल जायगा। सर्वविदित है कि अपने समाज में सर्वोपरि संकट खर्चीले विवाहों की कुरीति का है। हमारा आर्थिक, सामाजिक और नैतिक ढांचा लड़खड़ा देने में जितना इस कुरीति ने विष वृक्ष की—विनाश संकट की भूमिका खड़ी की है वैसी अन्य किसी संकट के कारण उत्पन्न नहीं हुई। हर प्रान्त में हर वर्ष होने वाले यह सात−सात समारोह अगले दिनों कितनी महत्वपूर्ण भूमिका सम्पादित कर सकेंगे। इसकी कल्पना करने भर से आँखें चमकने लगती हैं।

अगले वर्ष प्रज्ञा पुराणों के आयोजन प्रत्येक समर्थ शाखा एवं जीवन्त प्रज्ञा पीठ को करने चाहिए। इन सभी के लिए इन्हीं पंक्ति यों द्वारा अनुरोध भेजा जा रहा है कि वे अपनी सहमति भेजकर अभी से अपनी तिथि निश्चित करा लें और उसे हर दृष्टि से महत्वपूर्ण शानदार बनाने के लिए समय रहते जुट पड़े। सभी प्रज्ञा आयोजनों में प्रातः प्रज्ञा पुराण की कथा, दोपहर को नव सृजन चित्र प्रदर्शनी, कठपुतली, संगीत समारोह चलेगा। रात्रि को खुला सभा सम्मेलन होगा। चार दिन के आयोजन होंगे। चौथे दिन दोपहर को नौ कुण्डी यज्ञ की पूर्णाहुति हो जाया करेगी। उसी अवसर पर देव दक्षिणा में दुर्गुण छोड़ने तथा सत्प्रवृत्तियाँ अपनाने का संकल्प श्रद्धाञ्जलियाँ अर्पित की जाया करेंगी।

अगले वर्ष दो−दो साइकिलों के हजार जत्थे तीर्थ यात्रा पर निकला करेंगे और अपने−अपने क्षेत्रों में योजनाबद्ध रूप से दिन में परिभ्रमण संपर्क एवं रात्रि का कथा संगीत का सार्वजनिक सत्संग किया करेंगे। इन परिव्राजकों को ढपली−मजीरे की शिक्षा विशेष रूप से दी जायगी ताकि युग गीतों के साथ मिशन की विचारधारा को मिलाकर उपस्थित समुदाय को उद्बोधन कर सकेंगे। युग गायक—सड़क गायक—स्टेट सिंगर—अलख जगाने वाले इसी प्रकार के गीत प्रचार का उपक्रम अपनाते हैं। तीर्थयात्री टोलियों का कार्यक्रम भी प्रायः ऐसा ही होगा। वे कहीं भी जन उपस्थिति के स्थान पर बैठकर सुविधा के समय प्रचार किया करेंगे। डडडड बजते ही सुनने वालों की भीड़ सहज ही जुट जाया करेगी। अगले वर्ष की प्रचार प्रक्रिया यही है।


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