Quotation

June 1982

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

सौर ऊर्जा स्वभावतः सर्वत्र बरसती रहती है। उससे कौन, कितना लाभ, किस प्रकार उठाये? यह प्रयोक्ता की अपनी रुचि एवं कुशलता पर निर्भर है। धूप सेंकने,कपड़ा सुखाने से लेकर सूर्य शक्ति ही प्रचण्ड ऊर्जा उपलब्ध करने वाले यन्त्रों का प्रयोग करने तक की अनेक विधि−व्यवस्थाएँ मनुष्य स्वयं ही बनाते हैं। सूर्य को इससे न तो प्रसन्नता है न अप्रसन्नता। वह इन प्रयोक्ताओं पर प्रसन्न होता हो या महल कन्दराओं में रहकर धूप से बचे रहने वालों पर अप्रसन्न होता हो ऐसी कोई बात नहीं है। दोनों प्रकार के लोगों के साथ उसका कोई सहयोग असहयोग भी नहीं है। भगवान् सूर्य का अनुग्रह पाना न पाना जिस प्रकार प्रयोक्ता की अपनी चेष्टा एवं तैयारी पर निर्भर है, उसी प्रकार अध्यात्मिक पुरुषार्थ के बलबूते पर ब्रह्मा का विशेष अनुग्रह किस प्रकार प्राप्त सकता है। आत्मिकी की इस परम्परा का इन दिनों न तो प्रतिपादन होता है न प्रचलन ही रह गया है,फलतः आत्मिकी असफल उपहासास्पद बनकर रह रही है, उल्टे को उलटकर सीधा करना यही है आत्मिकी का पुनर्जीवन।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118