बीज के अन्तराल में विशालकाय वृक्ष की सभी विशेषताएँ सन्निहित रहती हैं। शुक्राणु से वंश परम्परा की अनेकानेक विशेषताएं सँजोये हुए एक परिपूर्ण मनुष्य छिपा बैठा होता है। इस प्रसुप्ति को जागृति में बदल देने की कुशलता का नाम ही विज्ञान है। भौतिक विज्ञान और आत्म−विज्ञान में यही मौलिक विशेषताएँ समान रूप से विद्यमान हैं कि वे अप्रकट को प्रकट करते हैं−अनपढ़ को सुगढ़ बनाते हैं और रहस्य को प्रत्यक्ष में बदल देते हैं। भौतिकी के प्रयोक्ताओं यही सब करते रहते हैं। आत्मिकी भी अपने वैभव काल में इस विशिष्टता का परिचय देती रहती हैं। उसके अनुभवी अभ्यासी सामान्य लोगों की तुलना में अनेक दृष्टियों से विभूतिवान रहे हैं।