तथागत युद्ध राजगृह के वेलुवनाराम में बिहार कर रहे थे। उनका एक शिष्य गृहपति सिंगाल नित्य प्रातः उठकर स्नानादि कर भीगे वस्त्रों के साथ उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम, ऊपर तथा नीचे इन छः दिशाओं को हाथ जोड़कर नमस्कार करता था।
तथागत ने पूछा-सिंगाल तुम ऐसा क्यों करते हो?” गृहपति ने उत्तर दिया-भन्ते ! मृत्युशय्या पर पड़े पिता, प्रतिदिन सभी दिशाओं को नमस्कार करने का निर्देश जो दे गये थे, उसी से ऐसा करता हूँ।”
तथागत ने कहा-सिंगाल आर्य धर्म में दिशाओं को नमस्कार इस प्रकार नहीं किया जाता।”
सिंगाल ने प्रश्न किया-तब तथागत ने समझाया-पूर्व दिशा को नमस्कार का अर्थ है-पूर्वजों एवं माता-पिता के प्रति कर्तव्य का समुचित निर्वाह उनकी गरिमा की रक्षा। पश्चिम दिशा को नमस्कार का अर्थ है अपनी पृष्ठभूमि पत्नी के प्रति निष्ठा एवं कर्तव्य का निर्वाह। दक्षिण दिशा को नमस्कार का अर्थ है आचार्य के निर्देश-पालन को सदा उद्यत रहना, उन्हें सदा दाहिने रखना यानी उनके अनुकूल आचरण करना, उनसे मनोयोग-पूर्वक विद्या ग्रहण करना तथा उन्हें अपना उत्कृष्ट कर्त्तव्य समर्पित कर देना। उत्तर दिशा को नमस्कार का अर्थ है, मित्रों-साथियों से सहयोग-सद्व्यवहार नीचे की दिशा को नमस्कार का अर्थ है-भूत्यों-अनुचरों का समुचित ध्यान रखना, उनके दुःख-दर्द में हाथ बँटाना ऊपर की दिशा को नमस्कार का अर्थ है-श्रवणों-ब्राह्मणों का सत्कार, उनके प्रति श्रद्धा व उनकी सांसारिक आवश्यकताओं का ध्यान रखना।