अवरोधों पर पुरुषार्थ की विजय

August 1977

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शरीर का बौनापन उपहासास्पद माना जाता है। असाधारण कम ऊँचाई के मनुष्य बौने कहलाते हैं। अपनी शारीरिक कमी के कारण वे अन्य सामान्य लोगों की तरह पुरुषार्थ नहीं कर पाते फलतः उनकी प्रगति भी अवरुद्ध ही रह जाती है। दूसरे लोग अपनी तुलना में उन्हें छोटा पाते हैं तो कौतुक-कौतूहल की दृष्टि से देखते और उपहास करते हैं।

मन का बौनापन, शरीर की ऊँचाई कम होने से भी अधिक उपहासास्पद है। शरीर की वृद्धि रुक जाने में मनुष्य के अपने पुरुषार्थ का दोष नहीं होता। उसके कारण अविज्ञात होते हैं और उन्हें हटाने में व्यक्ति के प्रयत्न प्रायः कुछ अधिक काम नहीं आते। किन्तु कन के बौने पन के बारे में ऐसी बात नहीं। मनुष्य चाहे तो अपने चिन्तन की उत्कृष्टता ही नहीं मस्तिष्क की प्रखरता भी बढ़ा सकता है। मानसिक दृष्टि से पिछड़े हुए मनुष्य को बौने मन वाला और भी उपहासास्पद माना जाता है।

वंशानुक्रम में उत्पन्न हुई खामी एवं हारमोन ग्रन्थियों की विकृति शारीरिक बौनेपन के प्रमुख कारण यह दो माने जाते हैं। यो। कुपोषण आदि अन्य कारण भी होते हैं। सतर्कता रखी जाय और बालकों के विकास में काम करने वाले तथ्यों पर आरम्भ से ही ध्यान दिया जाय, तो वंशानुक्रम से चले आने वाले तथा शरीर क्रम में विकृति होने के दोनों ही कारणों को निरस्त किया जा सकता है। प्रगतिशीलता और सतर्कता बढ़ने के साथ साथ इस व्याधि में क्रमशः कमी भी आती जा रही है।

शरीर शास्त्र के अनुसार पुरुष की सामान्य ऊँचाई कम से कम चार फुट ग्यारह इंच होनी चाहिए। यदि इससे कम है तो उसे बौना कहा जायगा। आश्चर्यजनक मनुष्य तब माना जाता है जब चार फुट से भी कम ऊँचाई रह जाय।

यों तो औसत कद से किसी भी व्यक्ति को बौना कहा जा सकता है किन्तु वास्तव में चार फुट से नीचे वालों को ही कौतुक-कौतूहल की दृष्टि से देखा जाता है। आमतौर से तीन फुट से ऊँचे ही वे होते हैं। इससे कम ऊँचाई वाले मनुष्य भी पाये जाते हैं पर उन्हें अपवाद ही कहा जा सकता है।

संसार में कुछ बौनी जातियाँ भी थीं या हैं। इनका ठिगनापन वंश परम्परा से सम्बन्धित है, इसलिए उनके अंगों का अनुपात उतना बेडौल नहीं होता जितना कि हारमोन स्रावों की न्यूनता एवं विकृति के कारण छोटे रह जाने वाले लोगों का, उनका सिर बड़ा होता है। धड़ में भी अनुपात रहता है किन्तु पैर बहुत छोटे रह जाते हैं। पिंडलियाँ प्रायः टेड़ी भी होती है। यही हालत हाथों की होती है। कलाई से लेकर पंजों तक अनुपात एक तरह का होता है तो कंधे से लेकर कलाई तक का दूसरे प्रकार का। लगता है दो ऐसे व्यक्तियों के हाथ का आकार जोड़े गये है; जिनके आकार में समानता नहीं थी।

पुरातत्त्ववेत्ताओं का कथन है कि पिछली सहस्राब्दी में लंका, भारत, जापान, चीन, फ्राँस, जर्मनी, स्विट्जरलैंड आदि एशिया एवं योरोप के भी कई देशों में बौनी जातियाँ रहती थीं। वे या तो अविवाहित रहने के कारण अथवा बड़ी आयु के लोगों के साथ रक्त मिश्रण कर बैठने के कारण समाप्त होते चले गये।

इतिहास को देखने से पता चलता है कि संसार में पहले बौनापन अधिक था, अब वह क्रमशः घट रहा है। वंशानुक्रम की परतों तक जहाँ इस कमी ने प्रवेश कर लिया है वह अब भी पीढ़ी दर पीढ़ी यह कमी चलती रहती है और बौनी जातियाँ ही बन जाती हैं। अभी भी फिलीपाइन्स-मलेशिया, न्यू-गायना, मध्य एशिया अफ्रीका में कितने ही कबीले कद की दृष्टि से बौने ही बने हुए हैं।

अफ्रीका का कांगो देश बौने नागरिकों के लिए प्रसिद्ध है। वहाँ के वन्य प्रदेश में चार फुट से कम ऊंचाई के लोगों की बहुत बड़ी आबादी है। अँग्रेज नाविक एन्ड्रवैटल ने उस देश में अठारह वर्ष रहने के उपरान्त बौने लोगों के आकार-प्रकार और रहन-सहन पर अपनी विवरण पुस्तक छपाई थी। ऐसी ही एक पुस्तक पर्यटक ग्रागन ने भी प्रकाशित कराई थी जिसे पढ़ने से पता चलता है कि आकार के साथ मनुष्य के दृष्टिकोण तथा रीति-नीति में भी ओछापन घुस पड़ता है।

शरीर के छोटे होने से मन भी छोटा हो जाता है और सूझ-बूझ तथा परिस्थितियों का सामना कर सकने की कुशलता में भी कमी आ जाती है। इसका उदाहरण बौनों के द्वीप वाली एक प्रख्यात कथा पुस्तक में मिलता है।

बल कथा की पुस्तक ‘गुलीवर की यात्राएँ में एक लिलिपुट’ नामक क्षेत्र की कल्पना की गई है जिसमें अँगूठे की बराबर ऊँचाई के आदमी रहते थे। गुलीवर उस क्षेत्र में जाता है। वहाँ के लोग साड़े पाँच फुट ऊँचाई आदमी को दैत्य समझते हैं और डर जाते हैं। अपना बचाव करने की तरकीबें सोचते हैं। गुलीवर सो जाता है। बौने लोग अपने मकड़ी के जाले जैसे रस्सों से चुपचाप उसे जकड़ते हैं इस प्रकार वे अपने शत्रु को घसीट कर समुद्र में पटक दें और आतंक से छुटकारा पा लेंगे। गुलीवर आँख मूंदे चुपचाप पड़ा रहता है और मन ही मन इस कौतुक का रस लेता रहता है। वह जब अंगड़ाई लेकर उठता है तो सारे धागे टूट जाते हैं और बौने भाग खड़े होते हैं। वह कुछ बौनों को पकड़ कर हथेली पर रख लेता है और आश्चर्य की तरह उन्हें देखता और इतने उपहासास्पद छोटेपन पर हँसता है।

संसार में ऐसे लोग कम हैं जो पिछड़ों की सहायता करके उन्हें समर्थ बनाने के लिए प्रयत्न करते हैं। अधिकाँश तो पिछड़ों का उपहास करके अहंकार को पुष्ट करने का ही रिवाज पाया जाता है। पक्षियों की स्वाधीनता का अपहरण करके उन्हें पिंजड़े में बन्द रखना कितनों का ही मनोरंजन हैं। कई कुत्ते बिल्लियों का ब्याह रचाते देखे गये है। ऐसा ही मखौल कभी-कभी बौने लोगों के साथ भी हुआ है। अमीरों ने उन्हें अपने मनोरंजन का साधन बनाया है।

कितने ही राजा रानियों को बौने पालने का भी वैसा ही शौक था जैसे कइयों को कई तरह के चित्र विचित्र जानवर पालने का शौक होता है। रोमन सम्राट आस्तस की भतीजी ने ऐसे दो बौने पाले थे। उनकी ऊँचाई प्रौढ़ावस्था तक पहुँचने पर भी मात्र दो फुट चार इंच थी। राजा इस्वेला डी एस्टे ने तो अपने महल का एक भाग बौनों को पालने के लिए ही सुरक्षित कर दिया था। सम्राट पेपी के लिए गवर्नर हरकीफ बौने पकड़कर लाने के लिए सूडान गया था और वहाँ से कई बौने लाया था। राजा टालेमी को उस देश के बौने एक मण्डली बनाकर मनोरंजन करने और उपहार लेने जाया करते थे।

रूस में बौनों के विवाह राज दरबार की देख.-रेख में होते थे। एक बौने की शव यात्रा में तो रूस के राजा और मन्त्री सभी श्मशान घाट तक गये थे।

कद की ऊँचाई-निचाई समस्या में अमेरिकी शोधकर्ता एवं विशेषज्ञ डॉ. मैकोसिक ने अपने अध्ययन से बताया है कि बौनापन प्रकृति प्रदत्त लगते हुए भी वस्तुतः मनुष्य कृत है। उसे अन्य रोगों की तरह प्रयत्न पूर्ण हटाया जा सकता है। कोई भी कठिनाई ऐसी नहीं जो सरल न की सके। कोई भी समस्या ऐसी नहीं जिसका पूरा अधूरा हल न निकल सके। बौनापन भी इसका अपवाद नहीं है। विशेषज्ञों ने उसके कारण और निवारण खोजने का प्रयत्न किया है और उत्साहवर्धन सफलता भी पाई है। इस आधार पर यह आशा बँधती चली जाती है कि निकट भविष्य में इस व्याधि का भी अन्य बीमारियों एवं विकृतियों की तरह निराकरण सम्भव हो सकेगा।

शरीर शास्त्री वंश परम्परा के बौनों को छोड़ कर अकस्मात किसी के बौने रह जाने का कारण हारमोन ग्रन्थियों का स्रावों में असन्तुलन उत्पन्न होना बताते हैं। पिट्यूटरी ग्रन्थि से संचित होने वाले हारमोन कार्टिलेज कोशिकाओं को समर्थ बनाये रखने के लिए आवश्यक होते हैं। उनमें कमी पड़ जाय तो शिर भाग को छोड़ कर शेष सभी अवयवों का विकास क्रम रुक जाता है। थाइराइड ग्रन्थि के हारमोनों की भी शरीर के सन्तुलित विकास में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। इन स्रावों के स्तर एवं अनुपात में गड़बड़ी आ जाने से भी बौनापन तथा ऐसी ही दूसरी विनाश बाधाएँ उठ खड़ी होती हैं।

बौनेपन की चिकित्सा के संदर्भ में पिट्यूटरी ग्रन्थि का स्राव-रोगी के शरीर में प्रवेश कराने में से ही निकलता है; पर यह स्राव मानव शरीर में से ही निकलता है और वह भी स्वल्प मात्रा में होता है। शव परीक्षा के समय बहुधा यह ग्रन्थि निकाली जाती है और उतनी अवधि में यदि वह विकृत नहीं हो चुकी है तो उसका सत्व निकाल लिया जाता है; फिर भी मात्रा इतनी कम रहती है कि प्रायः 150 शरीरों का स्राव मिलने पर एक बौने का इलाज हो सके। बन्दर की ग्रन्थियों से अथवा कृत्रिम उत्पादन से इसे प्राप्त करने का प्रयत्न किया गया, पर उससे भी समस्या की विशालता को देखते हुए कोई आशाजनक हल निकलता दिखाई नहीं पड़ा है।

हारमोन स्रावों का असन्तुलन न केवल छोटा रह जाने की विपत्ति उत्पन्न करता है वरन् असामान्य ऊँचाई बढ़ाकर नये किस्म का संकट खड़ा कर देता है। संसार में बौने लोगों की तरह ऐसे भी कितने ही व्यक्ति हुए हैं जो असाधारण रूप से बढ़ते ही चले गये हैं। राबर्ट बाइलो जन्म के समय सामान्य बालकों की तरह मात्र आठ पौण्ड का था। इसके बाद वह बेहिसाब बढ़ता और फूलता चला गया। आठ साल का होते-होते वह छह फुट ऊँचा और 195 पौण्ड भारी हो गया तब भी वह एक अजूबा था और दैत्य बालक कहा जाता था। पर प्रगति रुकी नहीं। अठारह साल का होते-होते वह सवा सवा आठ फुट ऊँचा और 400 पौण्ड भारी हो गया तभी उसे संसार का सबसे बड़ा दैत्याकार मानव घोषित कर दिया गया था। बाईस वर्ष की आयु पाकर स्वर्गवासी हो गया। मरने के दिनों उसकी ऊँचाई पूरे नौ फुट की हो गई थी और वजन 491 पौण्ड हो गया था। उसका शरीर जाँचने वाले कहते थे कि यदि मृत्यु न होती तो बाइलो का कद और वजन बढ़ता ही रहने वाला था।

मोटी मान्यताएँ बहुत लोगों की प्रतिक्रिया को देख कर बनती हैं। शरीर से छोटे लोग मन से भी छोटे होते है, यह मान्यता किसी हद तक ठीक हो सकती हैं। पर उसे निर्विवाद एवं सुनिश्चित नहीं कहा जा सकता। चेतन सत्ता पा कोई सीमा बन्धन नहीं लग सकते। वह इच्छा और संकल्प लेकर खड़ी हो जाय तो अद्भुत एवं असाधारण प्रगति हर परिस्थिति में करके दिख सकती हैं। अष्टावक्र ऋषि आठ जगह से टेड़े-मेड़े अपंग कुबड़े होते हुए भी प्रतिभा का चमत्कार दिखाते रहे हैं। अन्धी, बहरी, गूँगी हेलर, प्रमुख ज्ञानेन्द्रियों से वंचित होने पर भी अपनी विद्या एवं प्रतिभा का अद्भुत कीर्तिमान स्थापित कर सकी है। बौनों में भी कभी-कभी ऐसी विशेषताएँ जाती हैं जिनसे भाग्य पर पुरुषार्थ की विजय का प्रत्यक्ष प्रमाण मिलता है। फ्राँस का प्रसिद्ध चित्रकार और फिल्म अभिनेता तुलूज लात्रे अपनी प्रतिभा के कारण ही प्रख्यात हुआ था, पर उसके बौनेपन ने इस प्रसिद्ध में और भी चार चाँद लगा दिये थे।

होमर, हैराडोटस् प्लिनी, पोम्योनियम, अरस्तू आदि मनीषियों का शारीरिक दृष्टि से बौने के रूप में उल्लेख हुआ है।

इतिहास में अनेक बौने व्यक्तियों की प्रतिभा का उल्लेख मिलता है। हिन्दू धर्म की अवतार शृंखला में एक ‘वामन’ भी थे। यह नाम इसलिए दिया गया कि वे 52 अंगुल के थे। शब्द शास्त्र की दृष्टि से वामन और बोना लगभग एक ही अर्थ का बोधक है। अष्ट वक्र ऋषि के हाथ-पैर मुड़े-तुड़े थे; पीठ कूबड़ वाली इस प्रकार वे ऊँचाई की दृष्टि से बोने जितने ही रह गये थे।

ग्रीक कवि फिलेटास की गणना बहुत छोटे कद के लोगों में ही होती है। वे बहुत भारी जूते इस डर से पहनते थे कि हलके होने के कारण कहीं हवा में उड़ न जायँ। वे मिश्र के राजगुरु भी थे।

इंग्लैंड के एक बोने जेफरो हडसन ने हँसाने की कला में भारी ख्याति और प्रवीणता प्राप्त की थी वे इसी आधार पर अच्छी आजीविका भी उपार्जित कर सके। ड्यूक आफ बर्मिघम की रानी बहुत कृपा पात्र थीं एक बार चोरों ने उनका अपहरण कर लिया तो रानी ने एक बड़ी राशि की ‘फिरौती’ देकर किसी प्रकार उनके पंजे से छुटकारा पाया।

अमेरिका में गत शताब्दी में जनरल टाम थम्ब अपनी प्रतिभा के लिए प्रख्यात थे। वे मात्र इकत्तीस इंच के थे। इनके समान या छोटे कद की पत्नी न मिली तो उन्हें अपने से दो इंच ऊँची लेविनिया वारेन नामक बौनी से विवाह स्वीकार करना पड़ा।

फ्राँस में एक तेईस इंच ऊँचा बौना रिचीवर्ग युद्ध काल में जासूसी की अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा। उसे बालक समझा जाता और वह युद्ध मोर्चे तक बहुत काम के कागज पहुँचाने और लाने का काम सफलतापूर्वक करता। उसने 90 वर्ष की आयु पाई।

फ्रांसीसी नृतत्व वेत्ता व्रेसचिन ने अपनी पुस्तक में बौनों में कई गुणा अधिकता रहने की बात लिखी उनके अनुसार बौने अपने आकार की तुलना में अधिक फुर्तीले, हिम्मत वाले होते हैं। वे मिल जुलकर रहने और प्यार मुहब्बत का परिचय देने में किसी से कम नहीं होते। वफोन ने मैडागास्कर में पाई जाने वाली कीमोस नामक एक बौने कबीले को कई दृष्टियों से विवेचन किया है और स्वीकार किया है कि शरीर छोटे होने के साथ-साथ मनुष्य की अनेक क्षमताएँ घट जाती है फिर भी भावनात्मक स्तर में बहुत कमी नहीं आती।

अमेरिका में बौने लोगों का संगठन दी ‘लिटिल पीपुल्स आर्गनाइजेशन’ विलीवार्टी नामक एक प्रतिभा वान व्यक्ति ने की थी जो माना हुआ विद्वान और प्रतिभा शाली होने के साथ-साथ बौना भी था।

वाल्टी मोर में एक बौना सम्मेलन हुआ था। जिसमें इस विकृति के कारणों को खोजने और निवारण उपायों की शोध करने का निश्चय किया गया था। शारीरिक कमी के कारण उन्हें अर्थोपार्जन एवं नागरिक सम्मान पाने में जो कठिनाई पड़ती है उसके निवारण में सहयोग देने की अपील भी सरकार तथा जनता से की गई थी। बौने आपस में मिलजुल कर रहें और एक-दूसरों की कठिनाई समझने तथा सहयोग देने का प्रयत्न करें। ऐसे और भी कई प्रस्ताव उस बौने सम्मेलन में पारित किये गये थे। यह संस्था बौने नर-नारियों के जोड़े ढूंढ़ने और उन्हें सुविधा का अवसर दिलाने को भी काम करती है।

इस बौना सम्मेलन में एक बहुत छोटे कद के इंजीनियर अपने निजी विमान को स्वयं चलाते हुए भाग लेने पहुँचे तो उपस्थित सदस्यों का साहस बढ़ा और उनने समझा कि शरीर की ऊँचाई कम होने से भी अन्य विशेषताओं को ऊँचा उठाने में कोई विशेष अड़चन उत्पन्न नहीं होती है।

पिछड़ेपन के अनेकों अभिशाप विभिन्न कारणों से मनुष्य पर बरसते रहते हैं। वे व्यक्तित्व को दबाने का प्रयत्न करते हैं और सामान्य मनः स्थिति के लोभ उनके दबाव से भिच भी जाते हैं किन्तु इतने पर भी मनुष्य का संकल्प और पुरुषार्थ सर्वोपरि है। वह हर कठिनाई से लड़ने और हर स्थिति में सफल हो सकता है। शारीरिक एवं मानसिक बौनेपन के कारण उत्पन्न पिछड़ेपन को निरस्त कर सकना भी मानवी पुरुषार्थ के लिए नितान्त सम्भव है।


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