विनम्र दृढ़ता ही व्यक्तित्व की शोभा

August 1977

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

विनम्रता और शालीनता सुसंस्कृत व्यक्तित्व के अनिवार्य अंग हैं। अहंकारी कठोरता का स्पर्श किसी को प्रिय नहीं होता, जबकि विनम्रता के शीतल स्पर्श की सभी में सुखद प्रतिक्रिया ही होती है और मन प्रसन्नता से भर उठता है।

जीवन को सुखी और सन्तुष्ट बनाने के लिये जो आवश्यक वस्तुएँ मानी गई, उनमें स्वास्थ्य और शक्ति के साथ शील का भी समावेश है। अहंताजन्य आकांक्षाएं आंतरिक असन्तोष का कारण तो भी बनती है, व्यवहार में कर्कशता के रूप में भी अभिव्यक्त होती है। इसकी प्रतिक्रिया में अपने परिचितों सामीप्यों की उपेक्षा तिरस्कार, उपहास एवं विरोध ही प्राप्त होता है। सहज विनम्र व्यक्ति परिचितों के सम्मान का भाजन बनता है।

विनम्रता का अर्थ है- दूसरों का भी अपने जैसा ही सम्मान। सबके मस्तिष्क भिन्न-भिन्न हैं, सोचने-विचारने के तरीके अलग-अलग हैं। उनके दृष्टिकोण के प्रति असहिष्णुता अनुचित है। जो हमारे लिए अनपेक्षित है, वह गलत ही है, यह नहीं माना जा सकता। अतः उनके दृष्टिकोण को भी समझने की सन्नद्धता सदैव बनी रहनी चाहिए। फिर, समस्याओं का समाधान भी विनम्र तथा प्रशान्त मनः स्थिति में ही प्राप्त होता है। कलह कटुता से तो समस्याएँ और अधिक उलझती जाती है। विनम्रता इन उलझनों के बीच पथप्रदर्शक प्रकाश का काम करती है। अहं का औद्धत्य क्रोध के रूप में व्यक्त होता है। क्रोध वीरता का नहीं, दुर्बलता का लक्षण है। वीरता सदैव प्रसन्नता प्रदान नहीं करती है, जबकि क्रोध खिन्नता के ही अवसर उपस्थित कराता रहता है।

विनम्रता विशाल अन्तः करण की भावाभिव्यक्ति है। वह व्यक्तित्व की वास्तविक शोभा है। जिनकी भावनाएँ स्नेहसिक्त, मधुर है, वे ही विनम्र शालीन व्यवहार कर सकते हैं। रूखे, नीरस और स्वार्थी व्यक्ति दूसरों से सत्कार सहयोग नहीं प्राप्त कर सकते। विनम्रता ही औरों का सहयोग-सदा अर्जित-आकर्षित करती है।

किन्तु विनम्रता तभी सच्ची कही जा सकती है, जब वह एक नैतिक चेतना से सम्पन्न हो। ‘गंगा गए गंगा दास, जमुना गये जमुनादास’ की वृत्ति को विनम्रता नहीं कहा जा सकता। चापलूस और विनम्रता परस्पर एक दूसरे के विरोधी है। उन्हें एक मानने का भ्रम नहीं होना चाहिए। विनम्रता यदि आत्मबल से पुष्ट न होकर अहंकार का ही छद्म रूप हो, तो वह अधिक दिन टिकती नहीं और छिपी भी नहीं रह पाती।

विनम्रता यदि अपने सिद्धान्तों के प्रति समझौते के रूप में होगी, तो वह तिरस्करणीय ही कही जाएगी। विनम्रता का यह अर्थ कदापि नहीं कि हम अपनी कर्त्तव्य बुद्धि लोगों के हाथों बेच दें। यह तो पूरी पराधीनता हो गई।

सच्ची विनम्रता में दृढ़ता मिली रहती है भौतिक सुख-सुविधाओं की असीमित तृष्णा से उद्विग्न व्यक्ति कभी विनम्र नहीं हो सकते। सच्ची विनम्रता को अर्थ है अन्तः करण में प्रवाहित अमृत-निर्झर से उपजी शीतलता। उस विनम्रता में कर्तव्यनिष्ठा की दृढ़ता सदा ही विद्यमान रहती है। दूसरों को प्रभावित, आकर्षित या आकर्षित या आतंकित कर, उनका उपयोग अपनी संकीर्ण कामनाओं की सिद्धि के लिये करना, उसे अभीष्ट नहीं होता। आन्तरिक उल्लास ही उसके पथ का पाथेय होता है। औरों की प्रशंसा-निन्दा उसे पथ से विचलित नहीं कर सकती। उसे अपने श्रम एवं अध्यवसाय के ऊपर विश्वास रहता है। वह ईश्वरीय आस्था की परिचायक है। सच्ची विनम्रता को प्रतिकूल परिस्थितियाँ कभी उत्तम-उद्विग्न नहीं कर पातीं, अतः उसमें दृढ़ता सन्निहित ही होती है। अन्याय अत्याचार के समक्ष मूक या शिथिल रह जाना विनम्रता नहीं, कायरता है। दूसरों का मन रखने के लिए उनकी अनुचित बाते भी स्वीकार कर लेना तथा अशुभ प्रवृत्तियों की भी प्रशंसा करना विनम्रता नहीं, चापलूसी है। कायरों चापलूसों को विनम्र नहीं माना जा सकता।

विनम्रता की शीतलता में वास्तविक और उपयोगी डडडडड सदा ही विद्यमान रहती है दाहक उत्ताप अन्ततः शिथिलता के लिए बाधित ऊष्मा तो विनम्र शीतलता में ही भरपूर होती है।

शीत की शक्ति के उपयोग पर आज अधिकाधिक ध्यान दिया जा रहा है। क्र्रियोजेनिक्स का विकास शीत के सार्थक उपयोग की ही खोज हैं। अंतरिक्ष की यात्रा हेतु जाने वाले यान वर्तमान कल्पना के अधिकतम वेग से चलने पर भी दूरस्थ नक्षत्र पिंडों तक सैकड़ों वर्षों में पहुंचेंगे। एक सामान्य व्यक्ति उतने वर्षों तक कदापि जीवित नहीं रह सकता। फिर उतने वर्षों के लिए खाद्य पदार्थ तथा दैनिक उपयोग की वस्तुएं यान में संचित करने पर वे यान से भी अधिक वजन की ही जाएगी। अतः क्रियोजेनिक्स के अधीन ऐसी विधि विकसित की जा रही है, जिससे मनुष्य को शीत में जमा दिया जाय। जमा हुआ प्राणी हजारों वर्षों तक शून्य स्थिति में पड़ा रह सकता है। फिर आवश्यकता होने पर यान में जमे पड़े अन्तरिक्ष यात्री को स्वसंचालित यान अभीष्ट तापमान उत्पन्न कर जीवित कर लिया करेगा। नक्षत्र पिंड पर निर्दिष्ट कार्य संपन्न कर पृथ्वी की ओर लौटते समय यही प्रक्रिया पुनः अपनाई जाएगी।

शीत की शक्ति का उपयोग कर वस्तुएं दीर्घकाल तक सुरक्षित रखी जाती है। तरल नाइट्रोजन को फ्रीजीग्र प्वाइंट दे सकने में सफलता मिलने ही वाली है। तब चलता दौड़ता रक्त भी बिना विकार के जम जाएगा और अनिश्चित काल तक अपनी प्राण शक्ति सुरक्षित रखेगा, वांछित समय पर पुनः वैसा ही चलन दौड़ने लगेगा। शरीर के कोई भी अंग भविष्य में शीत विज्ञान की विकसित विधियों के द्वारा चिरकाल तक सुरक्षित रखे जा सकेंगे और प्रत्येक विश्राम के बाद नई शक्ति के साथ पुनः सक्रिय हो सकेंगे।

शीत के ये लाभ ही विनम्रता के लाभों का संकेत करते हैं। उत्तप्त स्वभाव से उद्विग्नता, खीझ और झुझलाहट ही पल्ले पड़ती है। स्वयं का सन्तुलन बिगड़ने से शरीर मस्तिष्क में जीवनी शक्ति का अपव्यय होता है और दूसरों को अपमानित, उत्तेजित , खिन्न कर देने भी स्वयं की ही क्षति होती है॥विनम्र व्यक्ति प्रतिक्रियाओं से बचा रहता है। पर यह सम्भव तभी है, जब विनम्रता वास्तविक हो ओर कर्तव्यनिष्ठा की दृढ़ता से जुड़ी हुई हो।

सामाजिक व्यवहार में इन दिनों तो विनम्रता की आवश्यकता और अधिक बढ़ गई है। लोगों का मत वैसे भी उद्विग्न उत्तप्त बना रहता है। हमारा आवेश उन्हें और भड़काता है। विनम्रता की शीतल फुहार उन्हें शान्ति प्रदान करती है और विनम्र व्यक्ति के प्रति उनमें आकर्षण पैदा करती है।

किन्तु विनम्रता यदि चारित्रिक दृढ़ता पर आधारित न रही तो वह क्षणिक ओर सतही ही होगी। नकली विनम्रता के नीचे भय छिपा रहता है। ऐसे लोगों को विनम्र नहीं, दब्बू ही कहा जाता है। विनम्रता तभी सार्थक है, जब उसके पीछे सशक्त दृढ़ता हो। दब्बू को सभी दबाने सताने का प्रयत्न करते और सदा उपहास ही करते रहते हैं। अन्तरात्मा को कुचलकर अन्याय अनीति को सहते जाने और उसे विनम्रता का नाम दे देने पर सुख शान्ति मिल पाना तो असम्भव है, अंधकार और पतन ही पल्ले पड़ेगा।

वस्तुतः विनम्रता का अर्थ हर स्थिति में मानसिक सन्तुलन बनाये रखना तथा मानवीय शील को न छोड़ना ही है। ऐसा तभी सम्भव है, जब मानसिक प्रखरता हाँ। उत्कृष्ट चिन्तन और आदर्श कर्तव्य ही ऐसी मानसिक प्रखरता दे सकता है। इस प्रखरता में लक्ष्य के प्रति समर्पण की दृढ़ता सदैव ही बनी रहती है। नैतिक दृढ़ता के बिना सच्ची विनम्रता की कल्पना भी असम्भव है। वह ओढ़ी हुई विनम्रता होगी और अधिक समय तक टिकेगी नहीं।

विनम्रता पुरुषार्थी को ही शोभा देती है। बड़े से बड़े संकटों से जूझ पाने की दृढ़ता ही विनम्रता को गरिमा प्रदान करती है। प्रखर दृढ़ता के बिना विनम्रता व्यर्थ है।

दृढ़ता से रहित विनम्रता नैतिक अंतर्द्वंद्व का कारण बनती है। सही, खरी, उचित और सामान्य बात भी किसी से इस भय से न कही जाय कि कही उसके अहं को चोट न पहुंच जाए, कही वह भड़क न उठे या कि रुष्ट न हो जाए, तो यह विनम्रता नहीं। भले ही इस विनम्रता के पीछे दब्बूपन न हो, पर सामाजिक नैतिकता की उपेक्षा तो है ही। अनौचित्य के विरुद्ध दृढ़ता आवश्यक है। वहाँ विनम्रता का प्रदर्शन या तो कायरता होती है, या फिर धूर्तता। कायरतापूर्ण विनम्रता का तात्पर्य है दब्बूपन और धूर्ततापूर्ण विनम्रता का अर्थ है अनैतिक जीवन। अनैतिकता का समर्थन कहीं न कहीं अनैतिक आचरण से भी जुड़ा ही रहता है।

भीतर सच्ची विनम्रता होते हुए भी कई बार ऊपर से कठोर दृढ़ता अपनानी पड़ती है। महाप्राण निराला के व्यवहार में कभी कभी अधिक उभर आने वाली तीक्ष्णता को जब कई लोगों ने कठोरता की संज्ञा दी, तब उनके मित्र महाकवि जयशकंर प्रसाद ने कहा था कि निराला के भीतर तो मातृ हृदय की मधुरता कोमलता का ही आधिपत्य है, पर वे यह भी जानते हैं कि धूर्त चापलूस लोग उनकी इस अतिशय कोमलता का अनुचित लाभ उठाने को प्रयत्नशील रहते हैं। तथा इस तरह उन्हें क्षति पहुंचाते हैं, इसलिए उन्होंने उग्रता कठोरता का कवच धारण कर रखा है।

जब चारों ओर परिस्थितियाँ प्रतिकूल और दाहक हो, मरुभूमि सी, विकट विपरीत, स्नेहशून्य, रेतीली, रूखी और पथरीली हो, तब कैक्टस जैसी दृढ़ता आवश्यक होती है। इस दुनिया में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो दूसरों का उन्मूलन करके ही अपना प्रयोजन पूरा करते हैं। वे सज्जनता को मूर्खता मानते हैं और उससे अनुचित लाभ उठाने की जुगाड़ में लगे रहते हैं। उनके सामने सरल विनम्र रहने बात बनती नहीं। ऐसों के सामने अपने वाह्य आवरण को कैक्टस जैसा ही मोटा मजबूत बनाए रखना होता है। अधिक कुशल व्यक्ति तो ऐसों का ही उपयोग कर लेते हैं और उनके दुष्ट मनोरथों को विफल भी कर देते हैं। वैसे ही जैसे कि कैक्टस पौधों के मोटे तनों के एकमार्गी छेद सूर्य से प्रकाश तो ग्रहण कर लेते हैं, पर अपनी स्निग्धता आर्द्रता को भी भीतर ही संचित रखते हैं। बाहर मरुभूमि की शुष्कता में उसे बिखर कर विलीन हो जाने के लिए नहीं निकाल देते। संकीर्ण स्वार्थ की दुष्ट प्रवृत्तियों को दलित करने के लिए वांछित दृढ़ता के साथ ही विनम्रता अधूरी है, वह गुण नहीं, दोष बनकर रह जाती है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118