दुख का आशीर्वाद :-
श्रीराम वन जाने लगे। जाने से पूर्व उन्होंने गुरु वशिष्ठ से आज्ञा ली- ‘‘गुरुदेव मुझे आशीर्वाद दें, ताकि अपना व्रत सम्पन्न करने में दुर्बलता न आये?” वशिष्ठ ने सहज स्नेह से पूछा- “राम! निःसंकोच कहना- जाने की इच्छा न हो तो राजाज्ञा रद्द करा दूँ।”
राम की आंखें भर आईं। सिर झुका कर उन्होंने कहा- ‘‘देव! मुझे सुख नहीं चाहिए। राम का जन्म दुःख पीने के लिए हुआ है मुझे दुःख का आशीर्वाद दीजिए।”
“दुःख किस लिए तात्!” वशिष्ठ ने साश्चर्य पूछा।
भगवन्! श्रीराम ने विनीत भाव से उत्तर दिया- ‘‘सुख का देश केवल अयोध्या तक सीमित है पर दुःख का देश तो आकाश और पृथ्वी की तरह निस्सीम है। मुझे योजन भर देश का राज्य नहीं, निःसीम देश का राज्य चाहिये।” वशिष्ठ राम के उत्तर से आत्म-विभोर हो उठे और उन्हें हृदय से लगा कर आशीर्वाद दिया।