जब तक है विश्वास, लगन दृढ़—क्षमता की पतवार!
माँझी, भय क्या तुझे, भले हो आँधी या मँझधार!!
आज उदधि सीमा−बंधन से—
मुक्त हो रहा, ले अँगड़ाई!
लहरों के विद्रोही उर में—
जाग उठी सोई तरुणाई!!
जाने क्यों विक्षुब्ध हृदय में, उसके आया ज्वार!
झूम−झूमकर खेते जाना, मत होना लाचार!!
खेल खेलने ही आता है—
साहस से तूफान विचारा!
जहाँ चाह है, वहाँ राह है—
निकट इसी से सदा किनारा!!
मंजिल स्वयं चली आएगी, थककर तेरे द्वार!
झुका न देना भाल कहीं तू , इस जीवन से हार!!
थक जाएगी डगर एक दिन—
गति में यदि आए न शिथिलता!
मिल जाएगी शांति सुनिश्चित—
अधरों पर आए न विकलता!!
शूलों की नोकों पर खिलते, सुंदर सुमन अपार!
भूल न जाना पंथ, घिरा हो चहुँदिशि में अँधियार!!
— रामस्वरूप खरे