सच्चा मनुष्य एक शूरवीर सिपाही की भाँति निर्भीक रहता है। वह आदर्श और सिद्धांतों का पालन करने के लिए अपने शरीर के टुकड़े-टुकड़े करा देेने पर भी पथ से विचलित नहीं होता। दूसरों के प्राणों की रक्षा करने के लिए जिसने अपने प्राणों की बाजी लगा डाली है, उस उदारचित्त सैनिक का जीवन किसी संत से कम नहीं है। तीर-तलवारों की वर्षा जिसके विश्वास को डगमगाती नहीं, जो अपने प्राण से बढ़कर राष्ट्र के गौरव और सम्मान को समझता है, वही शूरवीर इस धरती पर धन्य होता है।
जिसने अपने शरीर को तिनके के समान माना और सोने को पत्थर की तरह देखा, विषय-सुखों को जिसने दुत्कार कर भगा दिया, वह गृहस्थ हो या विरक्त, सच्चा संत ही कहा जाएगा। मरना सभी को है, पर जो आदर्श के लिए मरता है, मरना उसी का सफल है। जीते तो सभी हैं, पर जो सिद्धांत के लिए जीवित हैं, जीना उन्हीं का सार्थक है। यह जीवन चारों ओर पाप और कुमार्गों के शत्रुओं से घिरा है। जो कभी हताश नहीं होता, जो शत्रुओं के सामने आत्मसमर्पण नहीं करता, वही शूरवीर है। कष्ट उठाते हुए भी जिसने धर्म नहीं छोड़ा, उसी का जन्म सार्थक हुआ कहा जाएगा।
− संत तुकाराम
वर्ष-23 संपादक−श्रीराम शर्मा आचार्य अंक-11