सत्-संकल्प (कविता)

May 1962

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जीवन जन्म सुधार करुंगा।
धर्म-कर्म-रत रहूँ सदा मैं, प्यारे प्रभु से प्यार करुँगा॥1॥

तन को राखूँ स्वस्थ नियम से, मन को साध आत्म-संयम से,
स्वाध्याय-सत्संग न त्यागूँ, कभी नहीं कुविचार करुँगा॥2॥

बन विशुद्ध सेवा-व्रत-धारी, करुँ काम सब के हितकारी,
जनहित अपना स्वार्थ समझलूँ, जनता का उपकार करुँगा॥3॥

निज कर्तव्यों पर बलि जाऊँ, सद्गुण की संपत्ति बढ़ाऊँ,
तज आलस्य-प्रमाद सर्वथा, सज्जनता संचार करुँगा॥4॥

मानवता से प्रीति न तोडूँ, दुख के भय से नीति न छोडूँ,
अनौचित्य से मिले सिद्धि भी, उसे नहीं स्वीकार करुँगा॥5॥

अपने को उत्कृष्ट बनाऊँ, सभी बन्धुओं को अपनाऊँ,
परम पुनीत कार्य हित अपना, ज्ञान-प्रभाव निसार करुँगा॥6॥

दुर्व्यवहार समाप्त करुं मैं,श्रम की पूँजी प्राप्त करुँ मैं,
सादा जीवन अपनाऊँगा, अपना उच्च विचार करुँगा॥7॥

मैं हूँ अपना भाग्य-विधाता, बन जाऊँ युग का निर्माता,
‘अम्ब’ यही अभिलाषा मेरी, जगती का उद्धार करुँगा॥8॥

—पं. अम्बादत शर्मा ‘अम्ब’


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