मिट्टी समस्त रोगों की रामबाण औषधि है

August 1962

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सर्वाधारे सर्व बीजे सर्व शक्ति समन्विते। सर्व कामप्रदे देवि सर्वेष्टं दोहिमे धरे॥ (ब्रह्मवैवर्त पुराण)

“हे पृथ्वी देवी तू सबकी आधार, सबकी बीजरूप, सब प्रकार की शक्ति से युक्त तथा समस्त इच्छाओं को पूर्ण करने वाली है, मेरा कल्याण कर।”

मिट्टी एक अत्यन्त साधारण वस्तु समझी जाती है और इसी कारण उसे विशेष महत्व नहीं दिया जाता। इस दृष्टि से तो उसे बहुत घटिया, निकृष्ट दर्जे की चीज माना गया है और जो आदमी बिल्कुल निकम्मा होता है उसे मिट्टी की उपमा दी जाती है। पर इसी रद्दी और निकम्मी समझी जाने वाली मिट्टी में बड़े−बड़े अनमोल गुण भरे हुए हैं। यह मिट्टी संसार की कारणभूत तो है ही और मनुष्य−जीवन का आधार भी है। साथ ही यह मानव स्वास्थ्य की रक्षक और समस्त रोगों की निवारक भी है। इसमें सर्दी और गर्मी दोनों को रोक सकने की अद्भुत शक्ति होती है। किसी भी प्रकार की चोट लगने, तेज हथियार से कट जाने, आग से जल जाने, बन्दूक की गोली लगने, फोड़े−फुन्सियाँ होने, दाद−खाज, खारिश (एक्जिमा) होने, रोग विष के कारण किसी स्थान के सूज जाने, बिच्छू, ततैया, साँप के काट लेने, हड्डी के टूट जाने आदि बीसियों रोगों तथा दुर्घटनाओं में तत्काल गीली मिट्टी लगा लेने से जादू का सा प्रभाव दिखाई देता है।

मिट्टी की सोखने की शक्ति

मिट्टी की इस आश्चर्यजनक शक्ति का कारण उसकी विजातीय विषों तथा कीटाणु जनित विकारों को सोख लेने की शक्ति होती है। पीड़ा के स्थान पर लगाते ही मिट्टी अपना काम करने लगती है और कभी−कभी जब कि रोग का विकार तीव्र होता है दस−पाँच मिनट में ही गर्म हो जाती है जिससे उसे हटाकर दूसरी मिट्टी रखना आवश्यक होता है। मिट्टी की पट्टी प्रायः हर बीमारी में फायदा पहुँचाती है। अन्दरूनी गहरे विकार जहाँ तक दवाओं का असर ठीक तरह नहीं पहुँचता मिट्टी के प्रभाव से आराम हो जाते हैं। गुर्दे की खराबी, मूत्राशय के रोग, पेट के भीतरी फोड़े, गर्भाशय के विकार, दिल की धड़कन, जिगर की सूजन आदि प्राणघातक रोग भी निरन्तर मिट्टी की पट्टी का प्रयोग करते रहने से अच्छे हो जाते हैं। पेट का दर्द, कब्ज, आँतों का दाह, संग्रहणी, पेचिश, पाण्डुरोग आदि में भी पेट पर मिट्टी की पट्टी बाँधने से बहुत लाभ होता है।

मिट्टी के अनेक प्रयोग

महात्मा गाँधी मिट्टी के उपचार में बहुत अधिक विश्वास रखते थे और उन्होंने बड़े−बड़े रोगों को मिट्टी के प्रयोग से ठीक किया था। एक स्थान पर उन्होंने लिखा है कि “पेट, सिर और आँख के दर्द एवं चोट की सूजन मिट्टी की पुल्टिस से दो−तीन दिन में आराम हो जाता है। मैं पहले पेट की खराबी के कारण ‘एनोज फ्रूट साल्ट’ के बिना कभी निरोग नहीं रह सकता था, लेकिन सन् 1904 में जब मुझे मिट्टी की उपयोगिता मालूम हुई तब मैंने उसका आश्रय लिया और तब से आज तक कोई ऐसा अवसर नहीं आया जब कि मुझे ‘फ्रूट साल्ट’ का प्रयोग करना पड़ा हो। कड़े से कड़े ज्वर में इसकी पट्टी सिर पर और पेडू पर बाँधने से एक−दो घण्टे में ज्वर कम हो जाता है। चर्म रोग जैसे खुजली, दाह और फोड़े इसके उपचार से शीघ्र आराम होते हैं। जले हुए स्थान पर इसका लेप करने से जलन कम हो जाती है और वहाँ फफोला नहीं पड़ता। गर्मी का रोग भी इससे अच्छा हो सकता है। पाले से जब हाथ पैर लाल पड़ जाते हैं और सूज जाते हैं तब इसका प्रयोग बहुत लाभ पहुँचाता है। हड्डियों के जोड़ का दर्द भी इससे ठीक होता है। इन अनुभवों से मैं इसी परिणाम पर पहुँचा हूँ कि इसका उपचार घरेलू ढंग पर बहुत लाभदायक सिद्ध होता है।”

महात्मा जी मिट्टी−चिकित्सा के कितने अधिक भक्त थे और किस प्रकार उसे एक ईश्वरीय चमत्कार मानते थे इसका वर्णन करते हुए श्री प्रभुदयाल विद्यार्थी ने अपने एक लेख में बताया है कि “योरोप के लोग जब गाँधी जी को सिर या पेट पर मिट्टी की पट्टी रखे हुये देखकर आश्चर्य करने लगते तो वे हँसते हुये कहते—‟मुझे डाक्टरी इलाज में उतना विश्वास नहीं जितना इस मिट्टी में है।” शरीर में कोई भी गड़बड़ी होने पर बापू मिट्टी का ही प्रयोग करते थे। पेट में कुछ खराबी है तो मिट्टी का प्रयोग, सिर में दर्द है तो मिट्टी का प्रयोग, चेचक है तो मिट्टी और ज्वर है तो भी मिट्टी। खून का दबाव (ब्लड प्रेशर) बढ़ता तो भी मिट्टी का ही प्रयोग करते थे। अधिक गर्मी पड़ती तो भी बापू मिट्टी की गीली पट्टी का प्रयोग करके खस की टट्टी की तरह उसके असर को मिटा देते थे। बरसाती रोगों से बचने के लिये भी मिट्टी की पट्टी से ही कुनैन का काम लेते थे।”

इंग्लैण्ड के एक प्रसिद्ध प्राकृतिक चिकित्सक डा. पिट कैरन नोल्स ने अपने एक लेख में मिट्टी के गुणों पर पूर्णतः प्रकाश डाला है। उनका कथन है कि “रासायनिक प्रभाव के अतिरिक्त गीली मिट्टी की पट्टी लगाने पर जो आद्र उष्णता उत्पन्न होती है तथा जो मिट्टी के शरीर से चिपकने की क्रिया होती है, इन क्रियाओं के प्रभाव रोगों को उखाड़ने में बड़े काम के सिद्ध होते हैं।

“मिट्टी मिले हुये गाढ़े जल से स्नान करने से ‘साइटिका’ रोग अच्छा हो जाता है और पैर को कीचड़ स्नान कराने से पैर के सारे रोग दूर हो जाते हैं। हाथ के जलने पर या उँगली के कुचल जाने पर फौरन तमाम बाँह पर मिट्टी का लेप बारम्बार करना जादू का सा असर करता है।”

“बहुत से लोग कब्ज दूर करने के लिये भोजन के ऊपर थोड़ी−सी बलुआ मिट्टी खा लेते हैं जिससे पाचन में मदद मिलती है और आँतें आसानी से शुद्ध और साफ हो जाती हैं। इससे और भी अनेक भीतरी रोगों को लाभ पहुँचता है और कोष्ठबद्धता तो निश्चय रूप से दूर हो जाती है।”

विभिन्न रोगों का इलाज

इतना ही नहीं मिट्टी द्वारा विधिपूर्वक चिकित्सा करने से सभी रोग स्थायी रूप से आराम होते हैं, क्योंकि इससे उनका विकार बाहर निकल जाता है और बाद में अपना आहार−विहार प्रकृति के अनुकूल रखने से दुबारा उस रोग के प्रकट होने की कोई सम्भावना नहीं रहती। विभिन्न रोगों में मिट्टी का प्रयोग किस विधि से किया जाता है इस विषय को एक अनुभवी चिकित्सक के शब्दों में यहाँ देते हैं—

कब्ज—कब्ज सब रोगों की जड़ है और इसकी अचूक चिकित्सा मिट्टी की पट्टी लगाना है। आरम्भ में ठंडी के बजाय गर्म मिट्टी की पट्टी अधिक लाभ करती  है। जब कब्ज सख्त हो तो पट्टी के बाद एनीमा भी लेना चाहिये और अन्नाहार को त्याग कर फल और शाक का ही सेवन करना चाहिये।

चाहे जिस प्रकार का ज्वर हो, यदि उसमें सब प्रकार का भोजन त्याग कर मिट्टी की पट्टी तथा एनीमा का प्रयोग करके पेट को साफ कर दिया जायेगा तो वह शीघ्र ही अच्छा हो जायेगा। दिन में दो बार, सुबह और शाम मिट्टी की पट्टी बाँधना और उसके बाद एनीमा देना चाहिये। अगर बुखार तेज हो तो दिन रात में 5−6 बार भी मिट्टी की पट्टी लगाई जा सकती है, पर एनीमा दो बार से अधिक देने की आवश्यकता नहीं। जब ज्वर की अधिकता से रोगी की तबियत घबड़ाने लगती है तो 5−5 मिनट पर मिट्टी की पट्टी बदली जाती है और सिर पर भी मिट्टी की पट्टी लगानी पड़ती है। इससे ज्वर की गर्मी और घबराहट कम हो जाती है।

सब प्रकार के फोड़े—फुंसियो पर दो−दो घंटा पर मिट्टी की गरम पट्टी रखनी चाहिए और उसे आधा घंटा तक लगाये रखना चाहिये। पर उसे सूखने के पहले जरूर हटा देना चाहिए अन्यथा लाभ के स्थान पर उल्टी हानि होती है। फोड़े पर दिन में एक बार भाप भी लगानी चाहिये और मिट्टी की गरम ठण्डी दोनों पट्टी भी देनी चाहिये, जिससे शीघ्र आराम होगा। इस प्रकार उपचार करने से फोड़ा या तो बैठ जायेगा या पक कर स्वयं फूट जायेगा। यदि फोड़ा फूट कर घाव हो गया हो तो भी मिट्टी लगाने में किसी प्रकार का भय नहीं करना चाहिये।

चर्म रोग—जैसे खाज, खुजली, सूजन, दाद, सफेद दाग, उपदंश के घाव आदि—इन पर गरम मिट्टी की पट्टी लगाने से सदैव लाभ होता है। साथ ही पेडू पर भी पट्टी लगानी चाहिए और एनीमा द्वारा पेट की सफाई का भी पूरा ध्यान रखना चाहिये उपवास, फलाहार आदि के प्रयोग द्वारा भी पेट की सफाई करनी चाहिए। खाज में रोग के स्थान पर भाप देना भी लाभदायक होता है। इसमें मिट्टी की पट्टी को बहुत जल्दी−जल्दी बदलना चाहिए।

पेचिश और पेट के अन्य रोग—इन सब रोगों में गर्म मिट्टी की पट्टी बहुत लाभ पहुँचाती है। सुबह शाम दो बार आध−आध घण्टे तक पट्टी लगाएँ। यदि रोग तेज हो तो कई बार भी लगाई जा सकती है। पेचिश में पेडू पर गरम पानी की बोतल और गर्म कपड़े से भी सेंक करना चाहिए।

जहरीले जंतुओं और पागल कुत्ता आदि का काटना—काटने अथवा डंक मारने के स्थान पर बहुत जल्दी−जल्दी 5−5 या 10-10 मिनट पर मिट्टी की पट्टी लगाते रहना चाहिए। क्योंकि विष के प्रभाव से वह शीघ्र ही गर्म हो जाती है। इस प्रकार के उपचार से थोड़ी ही देर में डंक की जलन और सूजन जाती रहती है। साँप के काटे मनुष्य की हालत अगर खतरनाक जान पड़े तो उसे पूरी लंबाई का गड्ढा खोदकर उसमें गाढ़ देना चाहिए। केवल सर बाहर रहे। इस विधि से भीतर ही भीतर बड़ी गर्मी पैदा होती है और चारों तरफ की मिट्टी जहर को सोख लेती है जिससे पीड़ित मनुष्य 24 घंटे में ही निरोगी हो जाता है।

इसके अतिरिक्त कान, दाँत, आँख के दर्द, प्रसव पीड़ा, गर्भ में बच्चे का मर जाना, प्रदर आदि साथ ही स्त्री रोगों, दमा, गठिया, स्वप्नदोष, पागलपन जैसे पुराने रोगों, आग से जलना, भाले का घाव, बन्दूक, छुरी आदि की चोटें सब में मिट्टी अन्य उपायों से अधिक कारगर और शीघ्र फल देने वाली होती है। इन रोगों या दुर्घटनाओं में पीड़ित स्थान पर मिट्टी की पट्टी बार−बार लगानी चाहिये।

अन्य साधारण रोगों का उपचार

चूल्हे की जली मिट्टी से दाँतों में मंजन करने से वे अच्छी तरह साफ हो जाते हैं और नीरोग रहते हैं, पायरिया की शिकायत जाती रहती है। पीली मिट्टी के डेले पर पानी डाल कर सूँघने से नकसीर, जुकाम आदि अच्छे हो जाते हैं। लू लग जाने पर पैरों और सिर पर मिट्टी थोप देने से दाह शान्त होकर ठण्डक आ जाती है। सेर भर पानी में छटाँक भर मिट्टी घोलकर उसे थोड़ी देर रख दे। जब मिट्टी नीचे बैठ जाय तो पानी को निथार कर पीने से ज्वर, तृषा, दाह, जलन, निद्रानाश आदि गर्मी के उपद्रव शान्त होते हैं। इन सब उपचारों का प्रचार हमारे घरों में पुराने समय से है और स्त्रियाँ स्वयं उन्हें करती रहती हैं।

धातु के बर्तन के बजाय मिट्टी की हाँड़ी में भोजन पकाना, मिट्टी के तवे पर रोटी बनाना, मिट्टी के कुल्हड़ में पानी या दूध पीना हमारे देश में लाभदायक माना गया है। इससे भोजन में कोई विकार उत्पन्न होने की आशंका नहीं रहती और उसका स्वाद भी अधिक हो जाता है। अगर कढ़ाई और मिट्टी की हाँड़ी में दूध को अलग−अलग औटा कर पिया जाय तो उनके स्वादों में अन्तर जान पड़ेगा। इन बातों से भी मिट्टी की उपयोगिता और उसके लाभों का पता चलता है।

एक बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि मिट्टी बिल्कुल साफ और शुद्ध हो। वैसे तो जहाँ जैसी मिट्टी मिले उसी से काम चलाना पड़ता है पर बालू मिली काली या चिकनी मिट्टी सर्वोत्तम होती है। यदि नदी किनारे की ऐसी बलुआ मिट्टी न मिले तो चिकनी मिट्टी में ऊपर से बालू मिला देने से भी पट्टी के लायक लाभदायक मिट्टी तैयार हो जाती है। यह देख लेना चाहिए कि उसमें गोबर, लीद, खाद आदि कोई हानिकारक चीज न मिली हो। उसे भली प्रकार कूटकर चलनी से छान लेना चाहिये और पानी डालकर आटे की तरह गूँथकर काम में लाना चाहिये। जहाँ तक संभव हो मिट्टी चार−छः घण्टे पहले की भीगी हो तो अच्छा रहता है। एक बार की लगाई मिट्टी दुबारा काम में नहीं लाई जा सकती, क्योंकि उसमें देह के विकार खिंचकर आ जाते हैं। हर एक गृहस्थी में ऐसी छनी हुई मिट्टी का एक बड़ा डिब्बा भरकर तैयार रखना चाहिये। जिससे आवश्यकता पड़ने पर उसका तुरन्त उपयोग किया जा सके। क्योंकि दुर्घटनाओं में मिट्टी का प्रयोग शीघ्र से शीघ्र करना ही आवश्यक और लाभदायक होता है।


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