समय का सदुपयोग

April 1962

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

जीवन का महल समय की— घंटे-मिनटों की ईंटों से चुना गया है। यदि हमें जीवन से प्रेम है तो यही उचित है कि समय को व्यर्थ नष्ट न करें। मरते समय एक विचारशील व्यक्ति ने अपने जीवन के व्यर्थ ही चले जाने पर अफसोस प्रकट करते हुए कहा— 'मैंने समय को नष्ट किया, अब समय मुझे नष्ट कर रहा है।'

खोई हुई दौलत फिर कमाई जा सकती है। भूली हुई विद्या फिर याद की जा सकती है। खोया हुआ स्वास्थ्य चिकित्सा द्वारा लौटाया जा सकता है, पर खोया हुआ समय किसी प्रकार नहीं लौट सकता, उसके लिए केवल पश्चात्ताप ही शेष रह जाता है।

जिस प्रकार धन के बदले में अभीष्ट वस्तुएँ खरीदी जा सकती हैं, उसी प्रकार समय के बदले में भी विद्या, बुद्धि, लक्ष्मी, कीर्ति, आरोग्य, सुख, शांति, मुक्ति आदि जो भी वस्तु रुचिकर हो, खरीदी जा सकती है। ईश्वर ने समयरूपी प्रचुर धन देकर मनुष्य को पृथ्वी पर भेजा है और निर्देश किया है कि इसके बदले में संसार की जो भी वस्तु रुचिकर समझे खरीद ले; किंतु कितने व्यक्ति हैं, जो समय का मूल्य समझते और उसका सदुपयोग करते हैं? अधिकांश लोग आलस्य और प्रमाद में पड़े हुए जीवन के बहुमूल्य क्षणों को यों ही बर्बाद करते रहे हैं। एक−एक दिन करके सारी आयु व्यतीत हो जाती है और अंतिम समय वे देखते हैं कि उन्होंने कुछ भी प्राप्त नहीं किया, जिंदगी के दिन यों ही बिता दिए। इसके विपरीत जो जानते हैं कि समय का नाम ही जीवन है, वे एक−एक क्षण को कीमती मोती की तरह खरच करते हैं और उसके बदले में बहुत कुछ प्राप्त कर लेते हैं। हर बुद्धिमान व्यक्ति ने बुद्धिमत्ता का सबसे बड़ा परिचय यही दिया है कि उसने जीवन के क्षणों को व्यर्थ बर्बाद नहीं होने दिया। अपनी समझ के अनुसार जो अच्छे-से-अच्छा उपयोग हो सकता था, उसी में उसने समय को लगाया। उसका यही कार्यक्रम अंततः उसे इस स्थिति तक पहुँचा सका, जिस पर उसकी आत्मा संतोष का अनुभव करे।

प्रतिदिन एक घंटा समय यदि मनुष्य नित्य लगाया करे, तो उतने छोटे समय से भी वह कुछ ही दिनों में बड़े महत्त्वपूर्ण कार्यं पूरे कर सकता है। एक घंटे में चालीस पृष्ठ पढ़ने से महीने में बारह सौ पृष्ठ और साल में करीब पंद्रह हजार पृष्ठ पढ़े जा सकते हैं, यह क्रम दस वर्ष जारी रहे, तो डेढ़ लाख पृष्ठ पढ़े जा सकते हैं। इतने पृष्ठों में कई सौ ग्रंथ हो सकते हैं। यदि वे एक ही किसी विषय के हों तो वह व्यक्ति उस विषय का विशेषज्ञ बन सकता है। एक घंटा प्रतिदिन कोई व्यक्ति विदेशी भाषाएँ सीखने में लगावे तो वह तीस वर्ष में संसार की सब भाषाओं का ज्ञाता बन सकता है। एक घंटा प्रतिदिन व्यायाम में कोई व्यक्ति लगाया करे तो अपनी आयु को पंद्रह वर्ष बढ़ा सकता है।

संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के प्रख्यात गणित आचार्य चार्ल्स फास्ट ने प्रतिदिन एक घंटा गणित सीखने का नियम बनाया था और उस नियम पर अंत तक डटे रहकर ही इतनी प्रवीणता प्राप्त की।

ईश्वरचंद विद्यासागर समय के बड़े पाबंद थे। जब वे कालेज जाते तब रास्ते के दुकानदार अपनी घड़ियाँ उन्हें देखकर ठीक करते थे। वे जानते थे कि विद्यासागर कभी एक मिनट भी आगे पीछे नहीं चलते।

एक विद्वान ने अपने दरवाजे पर लिख रखा था। “कृपया बेकार मत बैठिए। यहाँ पधारने की कृपा की है तो मेरे काम में कुछ मदद भी कीजिए।” साधारण मनुष्य जिस समय को बेकार की बातों में खरच करते रहते हैं, उसे विवेकशील लोग किसी उपयोगी कार्य में लगाते हैं। यही आदत है, जो सामान्य श्रेणी के व्यक्तियों को भी सफलता के उच्च शिखर पर पहुँचा देती है। माजार्ट ने हर घड़ी उपयोगी कार्य में लगे रहना अपने जीवन का आदर्श बना लिया था। वह मृत्यु शय्या पर पड़ा−पड़ा भी कुछ करता रहा। रैक्यूयम नामक प्रसिद्ध ग्रंथ उसने मौत से लड़ते−लड़ते पूरा किया।

ब्रिटिश कामनवेल्थ और प्रोटेक्टरेट के मंत्री का अत्यधिक व्यस्त उत्तरदायित्व वहन करते हुए मिल्टन ने पैराडाइज लाॅस्ट की रचना की। राज-काज से उसे बहुत कम समय मिल पाता था, तो भी जितने कुछ मिनट वह बचा पाता, उसी में उस काव्य की रचना कर लेता। ईस्ट इंडिया हाउस की क्लर्की करते हुए जान स्टुअर्ट मिल ने अपने सर्वोत्तम ग्रंथो की रचना की। गैलीलियो दवादारू बेचने का धंधा करता था तो भी उसने थोड़ा−थोड़ा समय बचाकर विज्ञान के महत्त्वपूर्ण आविष्कार कर डाले।

हेनरी किरक व्हाइट को समय का बड़ा अभाव रहता था, पर घर से दफ्तर तक पैदल आने और जाने के समय का सदुपयोग करके उसने ग्रीक भाषा सीखी। फौजी डाॅक्टर बरने का अधिकतर समय घोड़े की पीठ पर बीतता था। उसने उस समय को भी व्यर्थ न जाने दिया और रास्ता पार करने के साथ−साथ उसने इटेलियन और फ्रेंच भाषाएँ भी पढ़ लीं। यह याद रखने की बात है कि— परमात्मा एक समय में एक ही क्षण हमें देता है और दूसरा क्षण देने से पूर्व उस पहले वाले क्षण को छीन लेता है। यदि वर्त्तमानकाल में उपलब्ध क्षणों का हम सदुपयोग नहीं करते तो वे एक−एक करके हमसे छिनते चले जाएँगे और अंत में खाली हाथ ही रहना पड़ेगा।

एडवर्ड बटलर लिटन ने अपने एक मित्र को कहा था— लोग आश्चर्य करते हैं कि मैं राजनीति तथा पार्लियामेंट के कार्यक्रमों में व्यस्त रहते हुए भी इतना साहित्य कार्य कैसे कर लेता हूँ? साठ ग्रंथों की रचना मैंने कैसे कर ली? पर इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं। यह नियमित दिनचर्या का चमत्कार है। मैंने प्रतिदिन तीन घंटे का समय पढ़ने और लिखने के लिए नियत किया हुआ है। इतना समय मैं नित्य ही किसी-न-किसी प्रकार अपने साहित्यिक कार्यों के लिए निकाल लेता हूँ। बस इस थोड़े से नियमित समय ने ही मुझे हजारों पुस्तकें पढ़ डालने और साठ ग्रंथों के प्रणयन का अवसर ला दिया।

घर-गृहस्थी की अनेकों झंझटों और बाल-बच्चों की साज-सँभाल में दिन भर लगी रहने वाली महिला हेरेट वीवर स्टोव ने गुलाम प्रथा के विरुद्ध आग उगलने वाली वह पुस्तक ‘टाम काका की कुटियाँ’ लिखकर तैयार कर दी, जिसकी प्रशंसा आज भी बेजोड़ रचनाओं में की जाती है।

चाय बनाने के लिए पानी उबालने में जितना समय लगता है, उसमें व्यर्थ बैठे रहने की बजाय लाँग फैलो ने ‘इनफरलो’ नामक ग्रंथ का अनुवाद करना शुरू किया और नित्य इतने छोटे समय का उपयोग इस कार्य के लिए करते रहने से उसने कुछ ही दिन में वह अनुवाद पूरा कर लिया।

इस प्रकार के अगणित उदाहरण हमें अपने चारों ओर बिखरे हुए मिल सकते हैं। हर उन्नतिशील और बुद्धिमान मनुष्य की मूलभूत विशेषताओं में एक विशेषता अवश्य मिलेगी— समय का सदुपयोग। जिसने इस तथ्य को समझा और कार्यरूप से उतारा, उसने ही यहाँ आकर कुछ प्राप्त किया है। अन्यथा तुच्छ कार्यों में आलस्य और उपेक्षा के साथ दिन काटने वाले लोग किसी प्रकार साँसें तो पूरी कर लेते हैं, पर उस लाभ से वंचित ही रह जाते हैं, जो मानव जीवन जैसी बहुमूल्य वस्तु प्राप्त होने पर उपलब्ध होना चाहिए, या हो सकता था।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118