भारतीय नारी की गौरवमयी गरिमा

September 1961

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प्रत्यक्ष दुर्गा लक्ष्मीबाई।

रानी लक्ष्मीबाई घोड़े पर सवार अंग्रेजों से लड़ रही थी। उसका मुकाबला करते हुए उनके छक्के छूट रहे थे। एक अंग्रेज घुड़सवार ने छिपकर पीछे से तलवार का वार किया, जिससे रानी के सिर का दाहिना भाग कट कर लटक गया और दाहिनी आँख निकल गई। इस पर भी रानी लड़ती रही। उसने इस बार करने वाले अंग्रेज पर इस कटी हुई स्थिति में भी मुड़कर ऐसा वार किया कि वह वहीं धराशाई हो गया।

भारत की कितनी ही दुर्गाऐं जो लक्ष्मीबाई की तरह अपने पराक्रम से राष्ट्र की महान् सेवाएँ कर सकती थीं आज पर्दे के जेलखाने में अबला बनी कैदी की तरह कराह रही है। देश को राजनैतिक आधीनता मिल गई पर इन लक्ष्मीबाईयों के बन्धन न जाने कब ढीले होंगे?

आदर्श स्वामीभक्ति।

चित्तौड़ की गाड़ी पर छः वर्ष का बालक उदयसिंह बैठा था। उसकी माता भी मर चुकी थी। पन्ना नामक एक धाय उसका पालन करती थी। राज्य का संचालन दासी पुत्र वनवीर कर रहा था।

वनवीर के मन में लोभ आया कि उदयसिंह तथा उनके भाई विक्रम को मार मैं ही सदा के लिए राजा बन बैठूँ। उसने विक्रम को मार दिया। उदयसिंह को मारने नंगी तलवार लिये जा रहा था तो पन्ना धाय को मालूम हो गया। उसने इस आड़े वक्त में अपनी वफादारी की परीक्षा में उत्तीर्ण होने का नियम किया। उसने अपने बच्चे को उदयसिंह के स्थान पर और उदयसिंह को अपने बच्चे के स्थान पर सुला दिया। वनवीर आया ओर उसने एक ही हाथ में बालक का सिर काट दिया। पन्ना अपनी आँखों के आगे अपने बालक का वध होते देखती रही। भेद न खुलने देने के लिये उसने छाती कड़ी करके आँखों में से आँसू न आने दिये। वनवीर चला गया तब वह उदयसिंह को लेकर देवरा ठिकाने में चली गई ओर वहीं रहकर उसने उदयसिंह को पाला। बड़ा होने पर वही चित्तौड़ की गद्दी पर बैठा। उदय सिंह पन्ना धाय को सदा अपनी माता के समान मानता रहा।

स्वामी के साथ आपत्ति के समय सेवक कितना बड़ा आत्मत्याग कर सकता है इसका आदर्श उपस्थित करने वाली पन्ना धाय भारतीय इतिहास में सदा अमर रहेगा।

पति के सुधारने वाली नारी ।

आर्य समाज के प्रसिद्ध नेता स्व0 स्वामी श्रद्धानंद युवावस्था में कुमार्गगामी भी रहे हैं। तब वे एक कोतवाल के कुसंग ग्रसित पुत्र थे। उन्हें मद्य, माँस, जुआ का चस्का लगा हुआ था। एक दिन वे शराब के नशे में वेश्या के यहाँ भी गये। बहुत रात बीतने पर आये तो उलटी होने लगी।

उनकी पत्नी आदर्शनारी थी। उसने उन्हें कुल्ला कराया, उलटी से सने हुए कपड़े बदले और पलंग पर लिटा कर सिर दबाने लगी। नींद आई और वे सो गये । जब नींद खुली और पानी माँगा तो वह देवी उठी और मिश्री डालकर दूध ले आई। पीकर होश हुआ तो पूछा-देवी तुम अब तक जागती रही, भोजन तक नहीं किया। अब भोजन करो देवी ने उत्तर दिया, आपको भोजन कराये बिना में कैसे खाती?

उस पन्द्रह वर्ष की छोटी आयु की देवी की इतनी उदारता और श्रद्धा देखकर पति का हृदय भर आया। वे अपने कृत्यों पर क्षमा माँगने लगे तो ड़ड़डड़़ ने कहा-आप मेरे स्वामी हो, ऐसा कह कर ड़ड़ड़ड़ पर पाप क्यों चढ़ाते हो। मैंने तो आपको परमेश्वर मान कर आपकी सेवा करने को ही अपना आदर्श माना है।” उसी रात से उनका जीवन बदल गया। स्वामी श्रद्धानन्द ने अपनी आत्मकथा में इस घटना को अपने जीवन की दिशा बदलने वाली घटना बताया

पत्नी ना काहाऊ

चित्तौड़ की राजपूत बालिका विद्युल्लता की सगाई सरदारसिंह नामक एक सेनापति से हुई थी। विवाह की तैयारियाँ ही हो रही थीं कि अलाउद्दीन ने चित्तोड़ पर चढ़ाई कर दी। राजपूत सेना को हारती देखकर सरदार सिंह के मन में यह लोभ आया कि क्यों न वह बादशाह से मिल जाय, जिससे उसकी जीवन रक्षा भी हो जाय और बहुत-सा धन भी मिलें। वह विद्युल्लता के सौंदर्य पर मुग्ध था और विलासिता के लोभ में मरने से दूर भाग रहा था। एक दिन वह अपनी मनकी बात विद्युल्ला से कहने आया तो उसने बुरी तरह धिक्कारा और कहा-देशद्रोही बनकर जीवित रहने से मरना अच्छा।’ पर उसका मन नहीं माना ओर दुश्मन से जा मिला। अलाउद्दीन ने चित्तौड़ जीत ली और सरदार सिंह को बहुत-सा पुरस्कार दिया। वह अपनी सफलता पर गर्व करता हुआ जब विद्युल्लता को लिवाने आया तो वह सिंहनी उसकी नीचता को सहन न कर सकी और राजपूती पर कलंक लगाने वाले उस देशद्रोही को धिक्कारते हुये अपनी छाती में कटार मारली ताकि ऐसा पतित व्यक्ति उसके शरीर को स्पर्श न कर सके।

देशद्रोही पति का मुँह न देखूँगी

देवगिरि के राजा रामदेव पर अलाउद्दीन ने चढ़ाई की पर वह जीत न सका। हार कर लौट रहा था कि उसे एक देशद्रोही मिल गया। एक सरदार कृष्णराव के साथ राजकुमारी वीरमती की शादी होने को थी। उसे सेना का सब भेद मालूम था।

अलाउद्दीन ने उसे अपनी और यह लोभ देकर मिला लिया कि किला फतेह होने पर उसे ही राजा बना देगा।

अलाउद्दीन ने दुबारा देवगिरि पर चढ़ाई कर दी। सब सैनिक युद्ध की तैयारी में लगे पर कृष्णराव ड़ड़डड़़ छुरी भौंक दी। मरते वक्त कृष्णराव ने कहा-मैं देशद्रोही तो था ही, तुम्हारा तो पति था।’ वीरमती ने कहा-सो मैं अपने उस कर्तव्य को भी जानती हूँ। मैंने अभी देशभक्ति निबाही, अब पति भक्ति भी निभाती हूँ।’ यह कह कर उसने स्वयं आत्म-हत्या करली और एक सती का आदर्श उपस्थित किया।

हवलदार पद्या।

ग्वालियर की फौज में एक पद्या नामक औरत भी हवलदार हो गई हैं। उसका भाई जोरावर साहूकारों के कर्ज में जेल चला गया था। घर की हालत बहुत दयनीय थी। गरीबों से तंग आकर पद्या ने पुरुष का वेष बनाया और फौज में भर्ती हो गई। बहुत दिन वह साधारण सिपाही के रूप में रही, फिर अपनी विशेषताओं के कारण हवलदार बन गई और धीरे-धीरे अपने भाई का कर्ज चुकाने लगी।

किसी प्रकार नहाते धोते उसे किसी ने

देख लिया ओर बात खुल गई। मामला राजा तक पहुँचा। उसने हवलदार को बुलाकर

पूछ-ताछ की तो पद्या ने सारी बात कह सुनाई। सिन्विया उसकी वीरता से बड़े प्रभावित हुए। उसके भाई का सारा कर्ज खजाने से चुका दिया गया ओर पद्या का विवाह फौज के एक ऊँचे अफसर के साथ हो गया।

नारी में सभी गुण प्रचुर मात्रा में भरे पड़े है। वे वीरता में भी किसी से पीछे नहीं रहीं।


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