शक्तियों को यों ही नष्ट मत कीजिये

September 1961

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री विद्या वागीश ब्रह्मचारी )

अमेरिका के सुप्रसिद्ध धन कुबेर-जिनकी संपत्ति अरबों खरबों रुपया है-हेनरी फोर्ड ने एकबार कहा था-धन कुबेर होने पर भी मुझे जीवन में सुख नहीं है। जब मैं अपने लम्बे चौड़े कारखाने में बेचारे गरीब मजदूरों को रूखा-सुखा और बिना स्वाद का भोजन बड़ी उत्सुकता और प्रसन्नता के साथ करते हुये देखता हूँ तो उन पर मुझे ईर्ष्या होती है। तब मेरा जी चाहता है कि काश, मैं धन कुबेर होने की अपेक्षा एक साधारण मजदूर होता।”

मोटे तौर पर यह बात अतिशयोक्ति पूर्ण प्रतीत होती है कि एक असीम सम्पत्ति का स्वामी, जिसके यहाँ सभी प्रकार के ऐश आराम के साधन प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं एक मजदूर के भाग्य पर ईर्ष्या करता है? क्या वह सचमुच मजदूर की अपेक्षा अधिक अभावग्रस्त है? इतना धन होते हुये भी वह क्यों मजदूर के भाग्य पर ईर्ष्या करते हैं ?

विवेकपूर्वक विचार करने पर पता चलता है कि केवल धन मात्र ही ऐसी वस्तु नहीं है कि जिससे मनुष्य सुखी रह सके। बात यह है कि भोग्य पदार्थ उसी को आनन्द दे सकते हैं जिसमें उपभोग की शक्ति हो। उसके क्षीण या नष्ट तो जाने पर भोग्य संपदा कुछ भी सुख नहीं दे सकती। जिसकी पाचन शक्ति नष्ट हो गई है वह दाल दलिये का पथ्य ही ले सकता हैं। छत्तीस प्रकार के व्यंजनों से सजा हुआ थाल उसके लिये विष तुल्य हैं। उस भोजन का आनन्द तो वह उठा सकता है जिसकी पाचन शक्ति तीव्र है। आँखों की ज्योति चले जाने पर अनेक प्रकार के सुरम्य दृश्य, चित्र, खेल तमाशे आदि दर्शनीय पदार्थों का कोई मूल्य नहीं। नाक ठाक काम न करती हो तो बढ़िया इत्र और साधारण तेल एक समान है। काम सेवन की शक्ति नष्ट हो जाय,

नपुंसकता आ घेरे तो रूप यौवन सम्पन्न रमणियाँ किसी सुख का रसास्वादन नहीं करा सकती। उपभोग की सामर्थ्य न होने पर भोग्य सामग्री निरर्थक एवं निरुपयोगी हो जाती है इतना ही नहीं उस सामग्री का होना उलटा खतरनाक हो जाता हैं। नपुंसक पति की नवयौवना पत्नी उसके लिये एक खतरा है। बीमार आदमी के समीप सुस्वादु भोजनों का जमाव उसके लिये दुर्घटना उपस्थित कर सकता हैं । इस दृष्टि से हेनरी फोर्ड का कथन सत्य था। उन्होंने पैसा कमाने की धुन में अपने पेट को खराब कर दिया था। एकाध बिस्किट, छटाँक दो छटाँक फलों का रस वे पचा पाते थे। फोर्ड महोदय जब अपनी फैक्टरी के मजदूरों को मोटे-मोटे अनाज की रोटियाँ भर पेट खाते हुये देखते थे तो उन्हें उन मजदूरों के भाग्य पर ईर्ष्या होती थी ओर कहते थे-काश में धन कुबेर होने की अपेक्षा कुछ साधारण मजदूर होता।’ स्वस्थता कमाना, उसकी रक्षा करना, अन्य सभी सम्पत्तियों के उपासन और रक्षा से मूल्यवान हैं। कई व्यक्ति बुद्धिमान बनते हैं पर उसे प्राप्त करने में इतनी जल्दबाजी करते हैं कि स्वास्थ्य चौपट हो जाता है। कई व्यक्ति धनी बनते हैं पर उस प्रयास में इतने तल्लीन हो जाते हैं कि शक्तियों के अपव्यय के कारण तन्दुरुस्ती खराब हो जाती हैं। स्वास्थ्य नष्ट हो जाने पर वह विद्या, सम्पत्ति उन्हें कुछ भी सुख नहीं दे पाती, कमजोरी ओर बीमारी से वे आये दिन ग्रस्त रहते है। तब फोर्ड की भाँति वे सोचते हैं कि भोग्य आदमियों का संचय करने में हमने उपयोग शक्ति ड़ड़डड़ करके बड़ी भारी भूल की। इस भूल का पश्चाताप उन्हें शेष जीवन के दिन रो-रो कर बिताते करना होता हैं।

अनेक दृष्टियों से समृद्ध होना, भौतिक सम्पदाओं से सुसज्जित होना, हर उचित तथा आवश्यक भी है। परन्तु इस उपार्जन की भी सीमा है। स्वास्थ्य की स्थिरता एवं सुरक्षा का ध्यान रखते हुये ही सब प्रकार की सम्पत्तियाँ उपार्जित करने का प्रयत्न करना चाहिये। जब कार्यक्रम इस मर्यादा को उल्लंघन कर रहा हो और स्वास्थ्य पर उस मर्यादा को परिश्रम का बुरा असर पड़ रहा हो तो तुरन्त ही सावधान होने की आवश्यकता है। स्वस्थता में जो सुख है वह हैनरी फोर्ड की जितनी सम्पत्ति के बदले में भी प्राप्त नहीं हो सकता।

उपयोग सामग्री का संयम पूर्वक उपभोग करने से शक्तियाँ ठीक प्रकार काम करती है। अति रसास्वादन का असंयम उस उपभोग शक्ति को ही नष्ट कर देता। अति काम सेवन से नपुंसकता प्रमेह आदि रोग उत्पन्न होते हैं और दण्ड स्वरूप उस शक्ति से सदा के लिये हाथ धोना पड़ता है। इसी प्रकार चटोरे व्यक्ति अपना पाचन शक्ति को बिगाड़ लेते हैं। और कड़ाके की भूख में भोजन करने के आनन्द से सदा के लिये वंचित हो जाते हैं। यही बात अन्य इन्द्रियों के बारे में भी हैं। इसी लिये शास्त्र कारों ने इन्द्रिय संयम पर विशेष जोर दिया हैं। इन्द्रिय संयम एक वैज्ञानिक विधान है जिसके द्वारा मनुष्य जीवन भर उपभोग शक्ति को कायम रख सकता है। ब्रह्मचर्य व्रत, उपवास, मौन आदि अनेक विधि विधानों का उद्देश्य उन भोग शक्तियों को स्थिर रखना भी है जिनके द्वारा भोग्य पदार्थों के आनन्द का रसास्वादन किया जा सके।

संसार में जिन्हें जीवन के अनेक आनन्दों का उपभोग करने की इच्छा है उन्हें शक्तियों के अनुचित अपव्यय से बचने का प्रयत्न करना चाहिये। किसी प्रलोभन के आकर्षण में पड़ कर जो लोग अपनी शारीरिक मानसिक शक्तियों को अपव्यय करके गवा देते है वे अन्त में बुरी तरह पछताते हैं। तब सारी सम्पत्तियाँ मिलाकर भी उन्हें वह आनन्द नहीं दे सकती जो स्वस्थता रहने पर अनायास ही मिल सकता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118