चमत्कार को नमस्कार

June 1957

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(श्री सत्यदेव शर्मा )

अखण्ड-ज्योति में गत अंक से गायत्री परिवार के उन सत्पुरुषों का सचित्र परिचय छापना आरम्भ किया गया है जिन्होंने अपनी आत्मा को पवित्र करने के लिए गायत्री उपासना करने के साथ-साथ लोक हित के लिए समय और शक्ति व्यय करके, प्रयत्न और पुरुषार्थ करने का भी व्रत लिया हुआ है। इस जमाने में अधिकाँश लोग स्वार्थी हैं। हर आदमी अपने मतलब में चौकस है। जिसमें अपना फायदा न हो उसे करने को एक कदम भी नहीं उठाना चाहता। साधु बाबा जी जो विरक्त और त्यागी दिखते हैं वे भी वस्तुतः पक्के स्वार्थी हैं। अपने लिए स्वर्ग और मुक्ति का लाभ कमाने में लगे हैं और अपना जीवन यापन का खर्च मुफ्त में ही जनता से वसूल करते हैं। जनता का अन्न खाने का अधिकार केवल उसे है जो बदले में जनता की सेवा करता है। प्राचीन काल के साधु ब्राह्मण ऐसे ही होते थे, वे दान के अन्न से पेट भरते थे तो बदले में अपना सारा समय लोक शिक्षा में, जन कल्याण में खर्च भी करते थे। आज तो दान पर आजीविका चलाना और बदले में जनता में अनेक नशेबाजी आदि दुष्प्रवृत्तियाँ पैदा करना इनका कार्यक्रम बन रहा है।

मजदूर से लेकर सेठ तक, और चोर से लेकर साधु तक का दृष्टिकोण जिस जमाने में स्वार्थ-लाभ हो, उस जमाने में परमार्थ के लिए- जन सेवा के लिये किये हुए कार्य और उनके करने वाले व्यक्ति निश्चित रूप से एक चमत्कार कहे जायेंगे। वैसे भी परमार्थ-चमत्कारों का पिता रहा है। अष्टसिद्ध नवनिद्ध, श्री, सम्पदा, कीर्ति प्रतिष्ठ, सुख, शान्ति, स्वर्ग मुक्ति आदि लाभों को जिसने पाया है परमार्थ के पुण्यफल के फलस्वरूप ही पाया है। परमार्थ मानवीय शक्ति का मूल उद्गम तथा अनेकों महानताओं का उत्पादक है, इसलिए उसे चमत्कार कहा जाता है। चमत्कार को नमस्कार सदा से ही किया जाता रहा है। अब भी और आगे भी वह परम्परा जारी रहेगी।

गायत्री परिवार के परमार्थ-प्रेमी सत्पुरुषों का इस स्तंभ के अंतर्गत आगे भी सचित्र परिचय छापा जाता रहेगा।

श्री उमाकान्त झा

बानू छपरा (चम्पारन) निवासी श्री0 उमाकान्त झा किसी समय के लब्ध प्रतिष्ठ वकील हैं। पर अब वे घर में रहने वाले सन्त का आदर्श बने हुए हैं। आपकी धर्म पत्नी की भी आपके समान ही उपासना में निष्ठ है। छः घण्टे से कम समय गायत्री उपासना में लगाये बिना इन्हें संतोष नहीं होता। अब झूठे सच्चे मुकदमे वालों की वकालत उन्होंने पूर्णतया छोड़ दी है और गायत्री माता की वकालत आरम्भ कर दी है। जगह-जगह जाकर गायत्री उपासना की महत्ता बताना, दोष दुर्गुणों को छोड़कर सज्जनता एवं सात्विकता अपनाने की शिक्षा देना, इन्हीं दो कार्यों में आपके उपासना से बचे हुए समय का उपयोग होता है। आज चारों आश्रमों का लोप होकर केवल एक गृहस्थाश्रम रह गया है। आज का मनुष्य जब से होश संभालता है और जब तक मरता है तब तक केवल स्वार्थ, संग्रह और भोग विलास में ही अपना मन लगाये रहता है। यह आदर्श भुला दिया गया है कि ढलती आयु में परिवार संचालन को बोझ समझकर लड़कों पर छोड़ शेष आयु आत्म-कल्याण एवं जन सेवा में लगाई जानी चाहिए। श्री उमाकान्त जी वानप्रस्थ आश्रम की जीवित प्रतिमूर्ति हैं। वह अपना नमूना पेश करके उन लोगों को चुनौती देते हैं, जो घर में कुछ भी अपना उपयोग न होने पर भी मोहवश उसी से चिपके रहते हैं, और अपने ज्ञान तथा अनुभव से जनता का कोई हित करने को तैयार नहीं होते। श्री उमाकान्त झा की आयु काफी हो चुकी है पर उनका उत्साह नवयुवकों जैसा है। अश्वमेध के घोड़े की तरह वे बिहारी में घर-घर जाकर गायत्री माता का संदेश पहुँचाने की बात सोच रहे हैं।

श्री बालकृष्ण अग्रवाल

यदि हृदय से किसी कार्य के लिये लगन हो तो मनुष्य अपने दैनिक जीवन की अनेक असुविधाओं से लड़ता हुआ अपने अभीष्ट उद्देश्य के लिये बहुत कुछ कर सकता है। इस प्रत्यक्ष सत्य को झांसी के श्री0 बालकृष्ण अग्रवाल अपना उदाहरण उपस्थिति करते हुए प्रमाणित करते हैं। झाँसी नगर में अब गायत्री उपासना का भारी प्रचार हो चला है। सैकड़ों नहीं हजारों की संख्या में नैष्ठिक गायत्री उपासना बड़ी श्रद्धापूर्वक करते हैं। साप्ताहिक हवन, सत्संग उत्साहपूर्वक होते रहते हैं। कितने ही उत्साही सज्जन उनके सहयोगी हैं, जिनके सहयोग से झाँसी में समय-समय पर बड़े यज्ञानुष्ठान होते रहते हैं। गत वर्ष आषाढ़ में एक बहुत बड़ा यज्ञ हुआ था। अब इसी मास 25 कुण्डों का गायत्री महायज्ञ तथा बुन्देलखण्ड प्रान्तीय गायत्री परिवार सम्मेलन का सफल आयोजन किया है। बालकृष्ण जी श्रद्धा और उत्साह की मूर्ति हैं। ऐसे ही लोगों के पुरुषार्थ, बलबूते पर गायत्री तपोभूमि साँसारिक पुनरुत्थान की बड़ी-बड़ी योजनायें बनाती रहती है।

ब्रह्मचारिणी प्रेमवती

कुछ आत्माएँ इस पृथ्वी पर-साधारण जीवों की तरह आहार निद्रा का सामान्य जीवन व्यतीत करने नहीं वरन् पिछले जन्मों की शेष तपस्या को पूरी करने तथा संचित कर्मों के प्रारब्ध को भोगने मात्र के उद्देश्य से इस पृथ्वी पर आती हैं और उस कार्य को पूरा करने के जीवन लक्ष्य को प्राप्त कर लेती हैं। ऐसी आत्माएं आरम्भ से ही अपने विगत जन्मों, संस्कारों एवं प्रेरणाओं से परिपूर्ण होती हैं। उनके विचार इतने दृढ़ होते हैं कि दूसरों के विरोध की परवा न करके वे अपने ही मार्ग पर चलने योग्य साहस अपने अन्दर धारण किये रहती हैं।

श्री प्रेमवती बचपन से ही आध्यात्मिक संस्कार लेकर आई हैं। छोटी देहात में उनका जन्म हुआ जहाँ आध्यात्मिक वातावरण के लिये कोई अवसर न था। फिर भी उसके विचारों में आध्यात्मिक तत्वों की इतनी मात्रा थी कि लोग आश्चर्य करते। सन्त जैसा उनका जीवन देखने में आता। जब विवाह योग्य हुई तो साँस्कारिक जीवन में प्रवेश करने के लिये उन पर भारी दबाव पड़ा और इसके लिये उसे भारी विरोध एवं त्रास का सामना करना पड़ा, पर वह टस से मस न हुई। आजीवन ब्रह्मचारिणी रहकर जीवन लक्ष्य प्राप्त करना ही उसका उद्देश्य रहा। स्वास्थ्य और तपश्चर्या में उसने अपने जीवन का आधे से अधिक भाग व्यतीत कर लिया।

गायत्री तपोभूमि के संपर्क में आते ही प्रेमवती को ऐसा लगा कि यही उसका घर और यही उसके अनुकूल वातावरण है। अब वह माता भगवती देवी के साथ आत्मसाधना तथा भारतीय संस्कृति सेवा पथ पर कदम से कदम मिला कर चलती रहती है। परम निस्वार्थ, बालकों की तरह निष्कपट, नैष्ठिक गायत्री उपासिका, अखंड ब्रह्मचारिणी, परमार्थ में दिन रात एक करने वाली वह प्रेमवती प्राचीन युग की ऋषिकाओं का स्मरण दिलाती है। उसके दर्शन मात्र से मनुष्य का मस्तक श्रद्धा से सहज ही नत हो जाता है।

श्रीमती सावित्री देवी

भारत भूमि का यह दुर्भाग्य ही है कि यहाँ की आधी जनसंख्या जेलखानों में कैद रहती है। स्त्रियों को घरों में पिंजड़ों में बन्द करके सिर से पैर तक कपड़े में लपेट कर इस प्रकार रखा जाता है कि न वे किसी को देख सकें न उन्हें कोई देखे। कैदखाने के कैदी को रोज जितने लोगों से मिलने की, जितनी जमीन पर घूमने की, किसी के अपने मनोभाव प्रकट करने की, शरीर को रोशनी और हवा लगने की जितनी आजादी होती है, उतनी आजादी भारतीय नारी को नहीं मिलती। फलस्वरूप वह योग्यता, क्षमता और मनोबल की दृष्टि में एक प्रकार की अपाहिज हो जाती है। मानवता पर एक कलंक ही कहना चाहिए कि इस देश की आधी जनता इस प्रकार घरौंदों के पिंजड़ों में कैद रहकर अपाहिज जीवन व्यतीत करे। नारी को अपाहिज प्राणी-भार भूत बोझ माना जाता है तभी तो उसका पाणिग्रहण करने तक कीमत में लोग लम्बी रकम दहेज की माँगते हैं नारी की दुर्दशा का यह चित्र देखकर आज बेचारे न्याय और विवेक आठ-आठ आँसू रोते हैं। दूसरी ओर अविवेक का असुर धर्म का चोंगा पहन कर अनीति का समर्थन करता हुआ अट्टहास करता है।

इन परिस्थितियों को चीरती हुई भारतीय नारी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है और गौ की भाँति अत्यन्त नम्र भाव से विश्व मानव के सम्मुख अपनी मानवीय अधिकारों की करुण पुकार पहुँचा रही है। अब तक उसे ढोल गँवार, शूद्र, पशु की श्रेणी में रखकर केवल ताड़ना का ही अधिकारी माना जाता था, अब धीरे-धीरे उसे एक-एक करके मनुष्यता के अधिकार भी दिये जा रहे हैं। यों अभी भी संकीर्णतावादी सामन्ती मस्तिष्क के पंडित उन्हें धर्म कार्यों से उपासना से दूर रखने का प्रयत्न करते हैं पर मानवता के जगते हुये अधिकार की प्रचण्ड शक्ति के आगे उनका बस नहीं चल पा रहा है।

फिल्लोर की श्रीमती सावित्री देवी एक आदर्शवादी वयोवृद्ध महिला हैं। उन्होंने पर्दे के पाशविक प्रतिबंधों को कभी भी स्वीकार नहीं किया और इस बात की सदा से हिमायत करती रही हैं कि नारी की योग्यताओं को विकसित करके उन्हें भी विश्व के एक नागरिक का अधिकार प्राप्त करने दिया जाय एवं उनकी क्षमता को मानव की सुख शान्ति बढ़ाने में योग देने दिया जाय। सावित्री देवी नारी जाति के उत्थान के लिये सदा से शक्ति भर प्रयत्न करती रही हैं। गायत्री मंत्र-लेखन में उसकी अटूट श्रद्धा है। अकेली ने लगभग दो लाख मंत्र अब तक लिख कर तपोभूमि को समर्पित किये हैं तथा अनेकों को इस मार्ग में प्रोत्साहित किया है। सावित्री देवी का वयोवृद्ध शरीर नारी जागरण की एक जलती हुई चिनगारी के रूप में देखा जा सकता है।

श्री सीताराम जी अग्रवाल एडवोकेट

आज वकीलों के हाथ में देश की बागडोर चली गई है। कांग्रेस के नेताओं और मिनिस्टरों में आधे से अधिक वकील हैं। अन्य सभी सोसाइटियों में भी वकील अग्रगण्य पंक्ति में दृष्टिगोचर होते हैं। वस्तुतः बुद्धिजीवी ही सदा से अग्रणी रहे हैं। किसी समय में ब्राह्मण की जो इतनी प्रतिष्ठ थी वह उसके बुद्धि कौशल एवं बौद्धिक सदुपयोग के कारण ही थी। साधारण जनता को सदा बुद्धिजीवी लोगों के पीछे चलना पड़ता है। प्राचीन काल में भी वही बात थी और आज भी वही बात है।

वकील का धर्म कर्तव्य न्याय और औचित्य की रक्षा करना है। आज अन्य सब कार्यों की भाँति इस पेशे में भी विकृतियाँ आ गयी हैं, कहीं-कहीं तो विकृतियाँ बहुत खटकने वाली भी होती हैं। फिर भी यह प्रसन्नता की बात है कि कई बार आदर्श उदाहरण भी मिल जाते हैं। आगरा के श्री सीताराम जी एडवोकेट एक अग्रणी वकील हैं। उनकी प्रतिभा न केवल वकालत में वरन् सार्वजनिक सेवा एवं धर्म मार्ग पर जनसाधारण की मनोवृत्ति के मोड़ में भी गजब का काम करती है। उन्होंने ऐसे अनेकों नास्तिकों को ऐसा नैष्ठिक उपासक बना दिया है जिनकी पिछली गति विधियों को देखकर उनमें कोई ऐसी आशा नहीं रख सकता था। श्री सीताराम जी की प्रेरणा से आगरा में सामूहिक यज्ञानुष्ठानों का, सत्संग सम्मेलनों का बड़ा उत्साहवर्धक कार्यक्रम चलता रहता है। इनका सारा परिवार जहाँ उच्च शिक्षा प्राप्त है वहाँ परम धार्मिक भी है। दूसरों को सन्मार्ग पर चलाने में केवल भाषण नहीं- व्यक्ति का चरित्र काम करता है। इनका धर्म प्रचार भी इसी आधार पर सफल हुआ है।

यदि श्री सीताराम जी की भाँति अन्य बुद्धिजीवी भी अपनी वाणी प्रतिभा और बुद्धि का कुछ भाग धर्म प्रचार के लिए अर्पित कर सकें तो साधारण प्रचारकों की अपेक्षा वे बहुत अधिक कार्य कर सकते हैं।

श्री प्रेमशंकर जैतली

उपासना की सफलता में श्रद्धा और विश्वास सबसे बड़ा तत्व है। अन्य मनस्कता, उपेक्षा, अंधविश्वास, संदेह के तमसाच्छन्न मन से कई लोग थोड़ी उपासना करते हैं और अत्यन्त शीघ्र, अत्यधिक मात्रा में बड़े-बड़े भौतिक लाभ प्राप्त करना चाहते हैं, ऐसे लोगों को बहुधा असफलता और निराशा ही हाथ लगती है। किन्तु जिन्हें सच्ची उपासना की शक्ति पर विश्वास है, जो निष्ठापूर्वक श्रद्धा विश्वास के साथ माता का अंचल पकड़ते हैं, उन्हें प्रत्यक्ष सत्य की भाँति उपासना के भौतिक और आत्मिक सत्परिणाम निश्चित रूप से दृष्टिगोचर होते हैं।

श्री जैतली ग्रेजुएट हैं, रसायन विद्या की उच्च शिक्षा प्राप्त की है और अच्छा वेतन प्राप्त करते हुए ऊंचे पद पर काम करते हैं। “अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करने पर लोग आधे ईसाई हो जाते हैं” इस मान्यता के श्री जैतली जी अपवाद हैं। भारतीय संस्कृति के अनुरूप जीवनयापन करने के साथ ही उनके नित्य नियम में गायत्री उपासना के चमत्कार स्वयं अपने संबंध में देखे हैं और अनेकों को भारी विपत्तियों से माता का सहारा दिलाकर पार कराया है। इस अंक में श्री जैतली का एक लेख छपा है जिसमें उनने अपने निजी के अनुभव का वर्णन किया है जिससे स्पष्ट हो जाता है कि गहरी निष्ठ वाले उपासक अपना निज का तथा दूसरों का कितना बड़ा हित साधन कर सकता है जबकि अश्रद्धालु और अंधविश्वासी लोग असफलता का रोना रोते रहते हैं।

श्री भगवती प्रसाद श्रीवास्तव

संसार में अधिकाँश व्यक्ति ऐसे होते हैं जो धर्म कार्यों का प्रदर्शन अधिक और वास्तविक काम कम करते हैं। आमतौर से लोग यश और कीर्ति की कामना से, मान बड़ाई का लाभ प्राप्त करने की दृष्टि से सत्कार्यों में हाथ डालते हैं। यदि मान प्रतिष्ठ मिलती है तो काम करते हैं, नहीं मिलती तो छोड़ देते हैं, और यदि दूसरे को मिली तो उसमें अपनी मान हानि समझकर उस कार्य को ही हानि पहुँचाने पर उतारू हो जाते हैं। पर साथ ही संसार में ऐसे भी सत्पुरुष रहते हैं जो मान बड़ाई से कोसों दूर रह कर, चुपचाप काम करते हैं और इतना काम कर डालते हैं कि उस सफलता पर आश्चर्य होता है।

श्री भगवती प्रसाद जी व्यस्त कार्यभार से दबे हुए सरकारी कर्मचारी हैं। उनने अपने जीवन के आवश्यक अन्य कार्यों में ही लोगों को सन्मार्ग की प्रेरणा देते रहना भी एक कार्य मान लिया है फलस्वरूप बहरापंच में कुछ दिन पहले जहाँ गायत्री उपासना को कोई जानता तक न था अब वहाँ सहस्रों आत्माओं में धर्म प्रेम की हिलोरें उठ रही हैं। जो भी व्यक्ति अपने संपर्क में आये उसके जीवन में कुछ धार्मिकता का समावेश करने की शिक्षा देते रहने का क्रम बना लिया जाय तो कोई भी सत्पुरुष अनेक लोगों की आत्मा को ऊँचा उठाने में समर्थ हो सकता है। श्री भगवती प्रसाद जी अपने विचारों में अटूट श्रद्धा रखने के कारण ही उतनी महत्वपूर्ण धर्म सेवा लम्बे समय से कर रहे हैं। जबकि अन्य लोगों का, देखा देखी का उत्साह कुछ ही दिन में ठण्डा पड़ जाता है।

श्री माँगीलाल दायमा

मालेगाँव, नासिक के श्री गाँगीलाल पुखराज दायमा कपड़े के एक छोटे से व्यापारी हैं। इस युग में मनुष्य के बड़प्पन की तोल उसके धन या पद के आधार पर की जाती है। इस दृष्टि से श्री माँगीलाल जी छोटे आदमी हैं पर उनकी अन्तरात्मा में धर्म प्रचार के लिए जो लगन रहती है उसे श्रेष्ठ धर्मात्मा होने का प्रत्यक्ष प्रमाण माना जा सकता है। जो जितना ही स्वार्थी है वह उतना ही छोटा और जो जितना ही परमार्थी है वह उतना ही बड़ा है- विवेक से अनुमोदित यही कसौटी सच्ची है।

श्री0 माँगीलालजी अपनी दुकान का काम करते हैं। कपड़ा बेचते हैं। साथ ही सद्ज्ञान लुटाते रहते हैं जो भी उनके संपर्क में आता है उससे गायत्री माता और भारतीय संस्कृति के बारे में चर्चा करते हैं। उनके निरन्तर प्रचार का ही फल है कि मालेगाँव तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्र में गायत्री उपासना का भारी प्रचार हुआ है। वहाँ हवन और सत्संग पूरे उत्साह से होते हैं। नवरात्रियों में सामूहिक अनुष्ठान बड़ी श्रद्धा के साथ चलते हैं। धार्मिक वातावरण विनिर्मित करने में श्री माँगीलाल जी तथा उनके साथी बड़ी श्रद्धापूर्वक संलग्न हैं।

सत्पुरुषों के सराहनीय सत्प्रयत्न

दिगौड़ा (टीकमगढ़) की गायत्री शाखा द्वारा देवका ग्राम के पास पहाड़ की चोटी पर स्थित हनुमान जी के मन्दिर में 20-21 अप्रैल को 24 घण्टे का अखण्ड कीर्तन किया गया, जिसमें 24 हजार गायत्री जप और 240 चालीसा का पाठ तथा गायत्री यज्ञ किया गया। इस अवसर पर टीकमगढ़ से दादा दुर्गाप्रसाद जी चतुर्वेदी, नारायण दास जी पाराशर, भाई जगत रामजी पधारे। दादा दुर्गाप्रसाद जी ने हनुमान जी का अंगराज किया जिससे सैकड़ों वर्षों से ढंकी हुई हनुमान जी की विशाल मूर्ति निकल आई। गायत्री साहित्य, गायत्री के चित्र व पूज्य आचार्य जी के चित्र वितरण किये गये।

-वै0प्र0 सौनकिया

निगोही (शाहजहाँपुर) की शाखा की तरफ से 28 अप्रैल को डा0 नत्थूलालजी शर्मा पीलीभीत के ग्राम रामपुर में गये। सब सदस्यों ने मिलकर 1 हजार आहुतियों का यज्ञ किया। 29 ता0 को नीलकण्ठ महादेव के मन्दिर तिलहर के मेले में पहुँचे। वहाँ मन्दिर के पास बड़ी गंदगी थी और उसी में सब जनता को ठहरना पड़ता था। डॉक्टर साहब ने इस संबन्ध में जनता व मेले के प्रबंधकों को सफाई रखने की बात समझाई। गायत्री के महत्व पर प्रवचन भी किया। ता0 30 अप्रैल को ग्राम कनयरिया गये। वहाँ गायत्री संस्था का एक सदस्य बना तथा अन्य लोगों ने आगे चलकर सदस्य बनने को कहा। ता0 1 मई को ग्राम कनपुरा गये और 3 सदस्य बनाये। ता0 2 को महमदपुर में प्रचार किया जहाँ 30 व्यक्तियों ने सदस्य बनने को कहा। फार्मों के न होने से उसी समय सदस्य न बन सके। ता0 3 को निगोही में ही 1000 आहुतियों का यज्ञ मु0 श्यामलाल जी अध्यापक के सहयोग से किया। यहाँ अभी तक 65 सदस्य बन चुके हैं। -एक ज्ञानकार

तनौड़िया (शाजापुर) में इस महीने में 4 सामूहिक यज्ञ हुये। इनमें से एक में 22 व्यक्तियों का ब्रह्मभोज किया गया और दूसरा यहाँ से 22 मील दूर घटिया स्टेशन से 2॥ मील पर जलवा गाँव में हुआ। यज्ञ स्थल बहुत सुन्दर सजाया गया था। गाँव की लगभग 100 जनता ने भाग लिया।

- मुन्नालाल कर्मयोगी

मिर्जापुर (कोटा) में बैसाख सुदी 15 व जेष्ठ बदी 1 को 24 हजार आहुतियों का यज्ञ किया गया इससे बारा से पं0 श्री कृष्ण जी व अन्य गायत्री प्रेमी भी आये थे। यज्ञ में स्त्रियों ने भी उत्साह से भाग लिया। स्त्रियों ने कलश का प्रोग्राम भी बड़े सुन्दर ढंग से पूरा किया।

आरंभ (रायपुर) में नवरात्रि के अवसर पर 5 लाख 76 हजार जप, 5 हजार 760 चालीसा के पाठ और 576 मंत्र लेखन का कार्यक्रम पूर्ण किया गया। नवमी के दिन 5 यज्ञ कुण्डों में 24 हजार मंत्रों की पूर्णाहुति की गई और 340 कुमारी कन्याओं को भोजन कराया गया। इसमें राम शरन लाल गुप्त रामेश्वर प्रसाद गुप्त, चन्दन बाई, जनक नन्दनी बाई आदि अनेक सदस्यों का कार्य सराहनीय रहा।

-विद्याप्रसाद मिश्र

जंगहट (मिर्जापुर) में नवरात्रि के अवसर पर गायत्री परिवार के तीन सदस्यों ने एक-एक लघु अनुष्ठान किया। दो सदस्यों ने गायत्री चालीसा के 240-240 पाठ के अनुष्ठान पूर्ण किया। सब लोगों ने मिलकर 9360 आहुतियों का हवन किया। दर्शकों पर इस सामूहिक कार्यक्रम का बड़ा प्रभाव पड़ा।

- श्याम चरण दुबे

सिलहारी (बुलन्दशहर) में 28 अप्रैल को पं0 गंगासरन के यहाँ सामूहिक जप व तदनुसार आहुतियों का अनुष्ठान किया गया। इसमें पं. रामलाल जी, ठा. राजेन्द्र सिंह, हरिओम जी, रामचरन जी, ओम प्रकाश जी ने सराहनीय सहयोग दिया।

- हरीशंकर गौड कसेर

चीचोड़ा (बेतूल) गायत्री यज्ञ पं. भगवत अवध प्रसाद जी द्वारा कराया गया। रेलवे स्टाफ के सब कर्मचारी शामिल हुये। इस कार्य में बेनी प्रसाद जी लोखंडे, मट्टर गैंगमैन, कुञ्जीलाल जी और भट्ट ने विशेष परिश्रम किया?

-एक सदस्य

लश्कर (ग्वालियर) की गायत्री-शाखा के प्रयत्न से श्री मुरली मनोहर कार्यालय देश पाँडे भवन तथा बाजार लश्कर में एक गश्ती पुस्तकालय खोला गया है, जिसके द्वारा अखण्ड-ज्योति कार्यालय की पुस्तकें पढ़ने के लिए घर-घर पहुँचाई जाती हैं। (इसमें 30) श्री0 नीलकण्ड काशीनाथ देश पाँडे ने सहायतार्थ दिया।

-मुरलीधर डेडोर्षितया

नरसिंहपुर (म0प्र0) में 28 व 29 अप्रैल को अखण्ड रामायण व गायत्री हवन उत्साहपूर्वक किया गया। इस कार्यक्रम में बाहर से भी कुछ सज्जन आये थे। इस शुभ कार्य में लगभग 50 कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। ‘गायत्री महाविज्ञान’ ‘गायत्री चालीसा’ का पारायण भी लगातार होता रहा।

- मंत्री, शाखा सभा

चीचोड़ा (बेतूल) में पूर्णिमा के दिन 20 सदस्यों में 9 कुण्डों में हवन किया। हर एक ने आनन्दपूर्वक आहुतियाँ दीं।

- बेनी प्रसाद

लाडनूँ (राजस्थान) में पन्द्रह सदस्यों ने सामूहिक हवन किया। मुझे गायत्री माता की कृपा से बहुत लाभ हुआ और मरने से बच गया।

- इन्दरचन्द भोजक

जसोई (मफ्फरनगर) बैसाख शु0 2 से तक 17 सदस्यों ने सामूहिक रूप से यज्ञ किया, दशमी को सबने मिलकर यज्ञ किया।

- जय भगवान वर्मा

मनसूरनगर (मुजफ्फरनगर) में एक साधक आसाराम के यहाँ 12 मई को एक हजार आहुति का यज्ञ किया गया।

- बनारसीदत्त शर्मा

अर्रुषा खास (आगरा) में बैसाख सुदी 512 तक गायत्री सप्ताह मनाया गया। जिसमें हजार आहुतियों का हवन किया गया। साथ लगभग 600 साधुओं, ब्राह्मणों आदि को भोजन कराया गया। इसमें विशेष सहयोग पं0 जगन्नप्रसाद जी शर्मा, मुँशी प्रयाग नारायण जी ने दिया वह धन्यवाद के पात्र हैं।

- राम प्रसाद शर्मा

चपुन्ना (फर्रुखाबाद) के समीप दो गाँवों में गायत्री यज्ञ समारोहपूर्वक किये गये। इनमें से नागरिया लालशाह में पं0 सालिगराम व पं0 श्याम बिहारी लाल के यहाँ हुआ। दूसरा नगला राजाराम (इटावा) में 24 हजार आहुतियों का हुआ। जिससे जीवन सिंह, मथुरा सिंह तथा बचानसिंह आदि सज्जनों ने विशेष सहयोग दिया।

- पातीराम त्रिपाठी, विशाल

हँसूपुरा (बिजनौर) में गायत्री महायज्ञ कु0 पति पं0 श्रीराम तथा माता विद्यावती जी समुपस्थिति में 3 मई से 6 मई तक सम्पन्न हो गया। इस कार्यक्रम को सफल बनाने में बा0 बागेश्वर ना जी रईस पं0 किशोरीलाल जी वैद्य, पं. गरीबदास ज्योतिषी पौनाम्बर दत्त जी ज्योतिषी मदन किशोर ज्योतिषी, ओम प्रकाश जी, रामकरन सिंह जी सै ने जी तोड़कर सहयोग किया।

- मंत्री शाखा सभा

फुलसरा (पुर्नियाँ) में 25 मई से 27 मई तक विश्व शाँति के लिए 24 हजार गायत्री मंत्र का बड़ा हवन हुआ। यह यज्ञ सामूहिक था और सर्व श्री0 गिरिजानन्द झा, नवकाँत झा, भानुकर झा ने इसे पूर्ण परिश्रम करके सफल बनाया।

- खुशींनाथ

जूना बिलासपुर (बिलासपुर) में ‘गायत्री ज्ञान यज्ञ कला मंदिर एवं पुस्तकालय’ के पदाधिकारियों का चुनाव ता0 19 अप्रैल को किया गया। अनेक नये सदस्य बन रहे हैं।

- चीनाराम पोद्दार

भोपाल में अक्षय तृतीया के दिन शंकरलाल जी के निवास-स्थान पर 1008 आहुतियों का यज्ञ किया गया। यज्ञ-स्थल खूब सजा व सुवासित था। नगर के सभी गायत्री प्रेमी उपस्थित थे। जिनके सम्मुख गायत्री महिमा के सम्बन्ध में प्रवचन किया गया।

- एम0पी0 महेश्वरी

झाबुआ (मध्य-भारत) के हनुमान मंदिर में गायत्री यज्ञ की पूर्णाहुति 25 अप्रैल को की गई। अनेकों ब्राह्मण कन्याओं को भोजन कराया गया। वहाँ गायत्री परिवार की स्थापना हो चुकी है।

- मनोहर सिंह सिसोदिया

मोरवी (सौराष्ट्र) में एक ही दिन में तीस ब्राह्मणों द्वारा सवा लाख गायत्री का यज्ञ पूर्ण किया गया।

-नारदलाल देव

भद्रपुर (फतेहपुर) में 8 अप्रैल को गायत्री उपासकों की ओर से राम चरित मानस का अखण्ड परायण और 240 आहुतियों का गायत्री-हवन किया गया। इस आयोजन को सफल बनाने का श्रेय श्री0 देवी दयाल वर्मा को है।

- रामाश्रय वर्मा एम0ए0

कैमोर (जवलपुर) में गायत्री उपासकों ने सामूहिक जप व यज्ञ का अनुष्ठान किया। 32 हजार मंत्र लेखन हुआ।

- विश्वनाथ मिश्रा

सेगाँव (निमाड़) में सामूहिक जप व यज्ञ का अनुष्ठान किया गया। 50 हजार जप द्वारा कराया गया।

- विश्वनाथ

जूनी इन्दौर में सामूहिक कार्यक्रम बड़ी धूमधाम से पूरा हुआ। नौंवे दिन ब्राह्मण भोजन हुआ जिसमें मित्र मंडली भी शामिल हुई। इस कार्य में विशेष भाग पं. राम कल्याण शर्मा का रहा जो हमारे यज्ञ के आचार्य थे।

- जटाशंकर कौशिक

सुससेर (म0प्र0) गायत्री-यज्ञ सानंद समाप्त हो गया। मथुरा से अ0भा0 गायत्री परिवार के कुलपति पं0 श्रीराम शर्मा, ने पधारने की कृपा की, उनके साथ में स्वामी प्रेमानंद, नत्था सिंह जी, श्री0 शंभू सिंह आदि विद्वान और उपदेशक भी पधारे थे। ता0 1 मई को गायत्री तपोभूमि द्वारा रंगीन मैजिक लालटैन से धार्मिक चित्रों का प्रदर्शन किया गया। इस यज्ञ की सफलता सर्व में श्री सत्यनारायण जी पंड्या, भालचन्द्र राव जी ठाकुर, गुप्ता जी ओवरसियर, भवानी सिंह जी, रामदेव जी, बिरदी चन्द जी, कैलाश नारायण जी उपाध्याय, वैद्यरामचन्दजी, शिव नारायण जी पाठक, बाबूलाल जी गर्ग आदि का सहयोग विशेष प्रशंसनीय रहा।

-नन्द किशोर शर्मा

मऊरानीपुर (झाँसी) में ज्येष्ठ शुक्ल 11 से आषाढ़ कृष्ण 5 तक गायत्री महायज्ञ का आयोजन किया गया है।

- सालिगराम पाण्डेय

तारापुर (कालाहाँडी) में ता0 मर्हडडडडडडडड को सामूहिक जप और हवन हुआ। गायत्री चालीसा का पाठ तथा ब्रह्मभोज भी हुआ।

- गोकुल प्रसाद शर्मा

बम्हानी बाजार (बिलासपुर) के राम जानकी मंदिर में मिती बैशाख सुदी 7 से श्रीमद्भागवत पाठ और गायत्री का सामूहिक जप किया गया। प्रातःकाल 4 बजे से नगर में फिरकर नित्य कीर्तन भी किया जाता है।

- मोहनलाल गुप्त

पेटलाबाद (म0प्र0) में 4 मई से 9 मई तक गायत्री महायज्ञ किया गया। 9 ता0 को पूर्णाहुति के समय हजारों नर-नारियों की भीड़ थी। सैकड़ों आदिवासी भी आये थे। सर्व श्री0 गौरीशंकर, गोपालसिंह जी, हेमराज जी, अम्बालाल जी, लाल शंकर जी, पन्नालाल जी आदि कार्य-संचालकगण विशेष रूप से बधाई के पात्र हैं।

- सोमेश्वर चतुर्वेदी

झालाबाड़ (राजस्थान) में 50 हजार जप और 5 हजार आहुतियों का सामूहिक हवन किया गया। भजन और कीर्तन की उत्तम व्यवस्था थी।

- माधोलाल शर्मा

जासलपुर (होशंगाबाद) में 12, 13 मई को सामूहिक हवन गायत्री सदस्यों और अन्य धार्मिक ग्रामवासियों द्वारा सम्पन्न हुआ, जिसमें चार हजार आहुतियों और ब्रह्मभोज का आयोजन किया गया।

- पु0आ॰ साखरे

नागपुर में ढाई लाख जप का ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान चल रहा है। ता0 23 अप्रैल को एक उपासक के यहाँ सात सौ आहुतियों का हवन किया।

- रजनीकाँत शुक्ल

जूना बिलासपुर (बिलासपुर) में एक गायत्री उपासक श्री बी0सी0 रामचन्दन मुदालियर ने सवा करोड़ जप का संकल्प 18-8-56 से किया है और अभी तक ग्यारह लाख, तीन हजार, सात सौ अस्सी जप हो चुका है।

- चीनाराम पोद्दार

सरायतरीन (मुरादाबाद) में चैत्र शु0 11 से सत्साक पं0 इच्छापूर्ण गौड़ मकान पर गायत्री चालीसा के 4 हजार सामूहिक पाठ किये गये। पूर्णिमा को शिवशंकर लाल शर्मा हलवाई के मकान पर 25 हजार आहुतियों का हवन हुआ। वैसाख कृ0 1 को साहू हरीशंकर मक्खनलाल जी के यहाँ 5000 आहुतियों का हवन हुआ। बैसाख कृ0 2 को साहू अशर्फीलाल जी के यहाँ 5000 आहुतियों का यज्ञ हुआ। शाम को साहू धर्मपाल जी की पुत्री कुमारी वीरबाला ने अपनी सखियों को बुलाकर गायत्री चालीसा के 5000 सामूहिक पाठ किये। बैसाख कृ0 तृत्रिया को पं0 मनीरामजी के यहाँ गायत्री चालीसा के 1000 पाठ किये गये। इस समस्त धर्म-प्रचार का श्रेय श्री0 स्वा0 ब्रह्मस्वरूप जी को है जो जनता में गायत्री के प्रति निरन्तर प्रेम उत्पन्न कर रहे हैं।

- इच्छापूर्ण गौड़

व्यावर (राजस्थान) में गायत्री जप और यज्ञ का अनुष्ठान बड़े उत्साह से किया गया। लाउडस्पीकर, सजावट आदि की सुन्दर व्यवस्था थी। यहाँ के गायत्री-पुस्तकालय में गायत्री-साहित्य की भी अच्छी माँग रहती। नैष्ठिक गायत्री उपासक श्री मंगलराज जी ने जयपुर से गायत्री की बड़ी सुन्दर प्रतिमा मंगवाई है जितनी प्रतिष्ठ उपयुक्त स्थान मिलने पर की जायगी।

- मोहनलाल शर्मा

खूँटी (राँची) में पूर्णिमा को एक हजार आहुतियों का सामूहिक यज्ञ हुआ। गायत्री ज्ञान मंदिर के सामने 24 घंटे का अष्टयाम हरी संकीर्तन भी किया गया, जिसमें नगर के सभी वर्गों के लोगों ने भाग लिया।

- देवेन्द्रनाथ साहु

पुसावली (बदायूँ) में 13 मई को 5 हजार जप तथा 1000 आहुतियों का हवन किया गया। प्रसाद भी वितरण किया गया। इस कार्यक्रम का सब भार पंडित अशर्फीलाल जी ने उठाया।

- गायत्री प्रसाद गुप्ता

गुरुकुल बकानी (झालाबाड़) में 24 हजार आहुतियों का गायत्री महायज्ञ 12 से 14 अप्रैल तक बड़े समारोह से हुआ। इस सुअवसर पर अ0भा0 गायत्री परिवार के कुलपति पं0 श्रीराम जी, दो उद्भट विद्वानों के साथ पधारे थे। 18 पुरुषों व 10 स्त्रियों ने यज्ञोपवीत एवं दीक्षा ग्रहण की। बाहर के उपासक भी अच्छी संख्या में उपस्थित थे।

-भंवरलाल शर्मा

कोटड़ा घटा (झालाबाड़) में गुरुकुल बकानी के गायत्री परिवार के मंत्री द्वारा शाखा की स्थापना की गई। ता0 28 अप्रैल को 800 आहुतियों का हवन ग्राम के मंदिर पर हुआ।

-गोपीलाल

चेचट (कोटा) में 7 अप्रैल को उत्साहपूर्वक सामूहिक यज्ञ हुआ। 9 अप्रैल को मानस पारायण व गायत्री चालीसा पाठ से पूर्णाहुति हुई। 20 अप्रैल को मास्टर शंभूसिंह द्वारा गायत्री की महिमा पर सारगर्भित भाषण हुआ। 21 अप्रैल को मास्टर गोविन्द लाल के यहाँ यज्ञ हुआ और 22 अप्रैल को रामनिवास जी के मकान पर 2400 आहुतियों का हवन किया गया।

- मोतीलाल

सिलहारी (बुलन्दशहर) में श्री0 स्वामी ब्रह्मस्वरूप जी के सत्प्रयत्नों से 12 मई को सामूहिक यज्ञ किया गया, जिसमें सभी गायत्री प्रेमियों ने भाग लिया। और नये उपासकों का विधिवत् यज्ञोपवीत संस्कार किया गया। ता0 13 को कसेर कलाँ में श्री ओम प्रकाश ने यज्ञ कराया। ता0 14 को पला (कसेर) के श्री बाबूलाल जी ने यज्ञ कराया। ये सभी यज्ञ गायत्री तपोभूमि मथुरा से पधारे शास्त्रज्ञ पं0 ज्वाला प्रसाद शर्मा के आचार्यत्व में सम्पन्न हुये।

-मन्त्री, शाखा सभा

पला कसेर (बुलन्दशहर) में स्वामी ब्रह्मस्वरूप जी की प्रेरणा से समस्त ग्रामीण जनता ने सवालक्ष आहुतियों का गायत्री महायज्ञ ता0 29 मई से 2 जून तक करना निश्चय किया। इस अवसर पर उच्चकोटि के विद्वान एवं तपस्वी स्वामी देवदर्शनानन्द सरस्वती तथा गायत्री परिवार के आचार्य पं0 श्रीराम शर्मा पधारकर यज्ञ की शोभा बढ़ायेंगे। इसी प्रकार डिबाई (बुलन्दशहर) में ओमप्रकाश गुप्ता ठेकेदार के यहाँ


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