गायत्री उपासना के व्यक्तिगत अनुभव

June 1957

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(श्री प्रेमशंकर जैतली, आगरा)

बात आज से लगभग पाँच वर्ष की है। जुलाई का मास था। हमारे कुटुम्ब के डॉक्टर टी0 सिन्हा महोदय और मेरे भाई साहब प्रयाग से आये, आगरे में मेरे यहाँ रुके। वह मथुरा जा रहे थे। बातों-बातों में मथुरा जाने का उनका मन्तव्य पता चला कि कोई महात्मा हैं, उनसे मिलने जा रहे हैं। उन्होंने मुझसे कहा प्रेम जी, आप भी चलें। “मैं चलूँ” मैंने सोचा, हूँ यह लोग भी किस मति के आदमी हैं- अच्छा चलो मथुरा की सैर ही कर लेंगे। कुछ मेरी धर्मपरायण माता जी ने भी अनुरोध किया। मन से या बेमन से चल ही दिये।

हम लोग मथुरा पहुँचे और साँय लगभग छः बजे अखण्ड-ज्योति के कार्यालय में पहुँचे। आचार्य जी से भेंट हुई। डॉक्टर साहब ने आचार्य जी की प्रशंसा की, खैर, मेरे बोलने की बारी आई। कुतर्कवादी बोलता भी क्या मैंने कहा ‘आप तो गायत्री महामंत्र की बड़ी प्रशंसा कर हैं। मुझे तो पर उल्टा अनुभव है’ आदि आदि अनेकों प्रकार से इस महामंत्र की बुराई ही करता गया।

उत्तर में आचार्य जी चुप थे। फिर कुछ देर रुक कर बोले इस समय संध्या हो गई है। इस समय इस विषय पर कुछ न कहूँगा। आप कल प्रातः 9 बजे आने का कष्ट करें।

हम लोग लौट आये।

अगले दिन स्नान आदि से निपट 9 बजे ठीक हम “अखण्ड ज्योति” कार्यालय पर आये। आचार्य जी हमें तैयार ही मिले। वहाँ से हमें वह अपने पूजा के कमरे में ले गये। एक छोटा सा कमरा एक ओर गायत्री जी का बड़ा चित्र रखा, अखण्ड दीपक उसके सामने जल रहा है। दूसरी ओर एक गद्दा उस पर साफ चादर थी। सब मिलकर एक सौम्य और सात्विक वातावरण उत्पन्न कर रहे थे।

सबसे पहले आचार्य जी ने मुझसे कहना प्रारम्भ किया बोले ‘आपका यह कहना कि गायत्री जप से आपको नुकसान हुआ सर्वथा गलत है।’ और वह कुछ आगे कहते पर मैंने विषय बदलते हुए कहा कि गायत्री मंत्र से क्या भौतिक पदार्थ भी मिल सकते हैं।

उत्तर था ‘हाँ’

‘क्या पैसा भी मिल सकता है जाप से’

“पैसा तो गायत्री माता के लिये एक अत्यन्त सामान्य सी बात है” आचार्य जी ने उत्तर दिया। ‘अच्छा जी, तो फिर ठीक है आप कृपा कर ऐसा ही उपाय बता दें जिससे धन की प्राप्ति हो’ मैंने कहा?

आचार्य जी ने एक साधारण सा विधान बताते हुए कहा- दो माला नित्य आप एक वर्ष तक जपें। दो माला में कितना समय लगेगा?

मैंने उत्तर दिया लगभग आधा घण्टा।

आपको क्या वेतन मिलता है।

मैंने अपना वेतन बता दिया।

आचार्य जी बोले “अच्छा तो आप एक वर्ष तक आधा घण्टा रोज जप करें। यदि आपको कोई लाभ न हो तो एक वर्ष बाद आधे घण्टे रोज के हिसाब से जो पारिश्रमिक बने, मुझसे ले जाइयेगा।”

मैं यों तो समझिये एक पढ़ा लिखा सभ्य आदमी ठहरा। यह अन्तिम वाक्य कुछ चुभ गये। साधना की सरलता और आडम्बरहीनता भी घर कर गई। निश्चय कर लिया चलो करेंगे ही। घर आकर आचार्य जी की विधि से और उन्हीं द्वारा मुफ्त दी हुई चन्दन की माला पर जाप करना प्रारम्भ कर दिया। दो-एक महीने बाद से ही स्पष्ट प्रभाव दीख पड़ने लगा। मैं उसी क्रम से जाप भी आगे बढ़ाने लगा। मालाएँ दो से चार और चार से छः आदि क्रम से आगे बढ़ने लगीं। वर्षों की बुराइयां निकलने लगीं। असत्य में पर्याप्त कमी होने लगी और धीरे-धीरे आज मेरे जीवन में एक नवीनता है। कठिन से कठिन परिस्थिति भी सामने, झुकती ही जाती है। आर्थिक परेशानी का तो प्रायः नाम भी नहीं है। मैं कह सकता हूँ अपने ढंग से सुखी हूँ। अस्तु।

यहाँ तक तो आपने मेरी कहानी सुनने का कष्ट किया आइये मैं आपका कुछ ऐसे लोगों से परिचय करा दूँ जिन्होंने महामन्त्र की साधना बहुत कुछ मेरी देखा देखी या मेरे अनुरोध से प्रारंभ की ऐसे व्यक्ति भी बहुधा मेरी ही भाँति पहले भौतिक कष्टों को दूर करने के लालच से ही इस ओर बढ़े। प्रायः उनकी कामनापूर्ति हो ही गई और स्वतः उनकी साधना धीरे-धीरे निष्काम रूपिणी होती जा रही है। प्रारंभ में आध्यात्मिक यात्रा की ओर अग्रसर होने या बढ़ते रहने का मार्ग- सम्बल कामना ही थी अतः तिथि क्रम का ध्यान न रखते हुए मैं कामना को ही प्रधानता देकर निम्नलिखित उपशीर्षकों में उनसे आपकी भेंट कराऊँगा।

पिछड़े हुए की वापसी एवं मिलन

(1) मेरी धर्मपत्नी जी की एक सहेली श्रीमती रुक्मणी देवी के पति कुछ रुष्ट होकर कही चले गये थे। ढाई वर्ष से उनका पता न था। मैं कुछ हस्त रेखा सम्बन्धी ज्ञान रखता हूँ अतः जब उनसे भेंट हुई तो उन्होंने उनके लौटने के विषय में पूछा। उन दिनों “गायत्री के चमत्कार” पुस्तक पढ़ रहा था। उसी के एक लेख के आधार पर उनसे कहा, यदि आप 29 दिन तक 11 माला नित्य अमुक विधि से जाप करेंगी तो आपके पति अवश्य लौट आयेंगे। ऐसी आर्त दशा में उन्होंने माता की आराधना विधिपूर्वक शुरू की और 27 वें दिन उनके पति जी उनके घर आकर मिले।

(2) हमारे एक परम मित्र श्री मदन गोपाल बैजल के एक निकट सम्बन्धी का पुत्र घर से भाग गया था। उन्हें भी जाप करने को ऊपर की विधि से कहा गया। जाप मित्र जी की सुपुत्री ने बड़ी श्रद्धा और कष्ट सहते हुए किया। जाप के दो दिन बाद ही लड़के के गन्तव्य स्थान का पता चल गया और 23-24 वें दिन तलाश कर वापस लाया जा सका।

आर्थिक कठिनाईयों से छुटकारा

(3) इसमें यों तो सर्वप्रथम मेरा ही नाम आना चाहिये पर मैं तो अपने विषय में पहिले ही बता चुका हूँ। मेरे भाई पं. दयाशंकर जैतली, (बान गली लखनऊ) पर कुछ कारणों से बड़ी आर्थिक अड़चने आ गई थीं। कुम्भ के मेले में मेरी उनसे इस विषय पर बातचीत हुई। मैंने उन्हें चन्दन की माल पर विधि पूर्व 21 माला नित्य जप करने की प्रार्थना की। उन्होंने जप करना शुरू किया। आर्थिक परेशानियां स्वतः घटने लगीं और एक साथ ही उन्हें एक जगह से कुछ धन की प्राप्ति हुई।

(4) श्री कैलाशनाथ जी माईथान आगरा का भी काम धन्धा सब बन्द था। बड़ी कठिन परिस्थिति में वे बेचारे आये। मेरे पास वह एक नौकरी के लिये सिफारिश के लिये आये थे। मैंने उनसे कहा भाई मेरी बात मान कर जाप शुरू करो तुम्हारा काम चलेगा। उन्होंने एक माला नित्य जाप करना प्रारम्भ कर दिया। वह नौकरी तो नहीं, पर अनायास ही तीन दिन के अन्दर ही उन्हें एक दूसरी नौकरी मिल गई और कार्य व्यवस्था भी ठीक हो गई।

(5) श्री मुकट बिहारी जी शर्मा माईथान आगरा पर भी कोई धनोपार्जन का काम न था। जाप करने से उन्हें भी काम मिल गया।

(6) मित्र श्री मदन गोपाल बैजल माईथान आगरा को भी गायत्री मंत्र से आर्थिक कठिनाई एवं घोर चिन्ताएँ दूर हुईं। उनके यहाँ जब से मैंने देखा था 5-7 व्यक्तियों के परिवार में से सदा कोई बीमार ही रहता था। डाक्टरी बिल में 20-25 रुपए प्रतिमास साधारण बात थी। पर जाप करने से उनको इस 20-25 रुपये के व्यय से भी मुक्ति मिली। तथा आर्थिक समस्याएँ भी हल हो गई।

(7) एक दूसरे मित्र श्री हरीमोहन जी अग्रवाल ने शिक्षा कुछ क्रिश्चियन संस्थाओं में पाई है। वह अपनी देशी पूजा प्रणाली को व्यर्थ का ढकोसला कहते थे। मेरे पास हस्त रेखा दिखाने आये। उनका निकट भविष्य अंधकारमय देखते हुए उन्हें मैंने सतर्क रहने को कहा। पर उन्हें तो विश्वास न था। दो एक महीने बाद ही जब सामने ही भीषण परिस्थितियाँ आ गई तो बोले, अच्छा भाई कोई उपाय है। उन्हें भी गायत्री मंत्र जपने को कहा। परिस्थिति की दारुणता स्वतः कम होती चली गई। आर्थिक कठिनाईयाँ भी एक अलौकिक ढंग से कम होते देख उन्हें जाप की महत्ता एवं देशी पूजा विधि एवं देवताओं में विश्वास हो गया।

(8) मित्रवर, जिनका मैं अभी कुछ ऊपर जिक्र कर चुका हूँ उनके जमाता वकील हैं। उन पर भी आर्थिक कठिनाई आई। रोजगार ठप सा हो गया था। उन्होंने भी जाप करना प्रारंभ किया और विशेष काम हुआ। आर्थिक संकट दूर हुए।

इसी प्रकार अन्य भी माता के कृपापात्र व्यक्ति हैं जिनका उल्लेख हम विस्तार के भय से नहीं कर रहे हैं।

बहिन का सुख पूर्ण विवाह

(9) पं0 दयाशंकर जी शर्मा माईथान आगरा मेरे एक सम्बन्धी हैं। उनकी आर्थिक परिस्थिति अत्यन्त ही सामान्य सी है। इस पर भी उनके एक छोटी बहिन युवा रही जिसकी विवाह करने की उन्हें अत्यन्त चिन्ता थी। पिता जी उनके मस्तिष्क रोग ग्रस्त हैं। विवाह के लिये लड़का तो कुछ लोगों की सहायता से मिल गया पर उस ओर के खर्चे से बेचारों को विशेष परेशानी थी। सूखकर काँटा से हो गये थे। उनसे भी गायत्री माता का पल्ला पकड़ने को कहा और उनका सब कार्य ऐसे ढंग नियम व्यवस्था और सजधज के साथ हुआ कि सामान्य हैसियत वाले न कर पाते। माता वास्तव में माता ही हैं।

कठिन रोगों से छुटकारा

(10) मेरी धर्म पत्नी की एक सहेली को प्रसव में बड़ा भयंकर कष्ट होता था। जब से उन्होंने जाप प्रारम्भ कर दिया है तब से ऐसे कष्ट से उन्हें मुक्ति मिल गई है। ऐसी और भी बहिनें हैं जिन्हें प्रसव पीड़ा में गायत्री अभिमंत्रित जल पिलाने से प्रसव पीड़ा में भारी कमी हुई है।

(11) हमारी एक भतीजी चि0 सौ0 शशिमोहनी का विवाह जौनपुर हुआ है। इधर दो एक साल पहिले उनका स्वास्थ बहुत खराब हो गया। हालत इतनी बिगड़ गई कि उनको हम लोगों को तार देना पड़ा। मेरी भाभी जी गई और वहाँ जाकर उन्होंने सबेरे से लेकर शाम तक जाप करना ही प्रारम्भ कर दिया। डाक्टरी उपचार चल ही रहा था। जवाब देने के बाद भी अपनी अंतिम कोशिश डॉक्टर कर ही रहे थे। पर जाप के प्रभाव से पुनः दशा ठीक होने लगी और तीन चार दिन बाद भाभी जी ने सब कुछ ठीक होता देख पुनः घर की ओर वापिस पदार्पण कर दिया।

(12) एक अन्य संबंधी श्री मुन्नूलाल जैतली प्रयाग निवासी की लड़की श्रीमती प्रेमो जी के एक बच्चे की हालत अत्यन्त खराब हो गई थी। गला फूल गया था। डॉक्टर अपना प्रयत्न कर रहे थे पर सब व्यर्थ। निदान प्रयागवासी पण्डित समुदाय की प्रचलित विचारधारा के प्रतिकूल बच्चे की माता और नाना ने गायत्री माता को पुकारा। रात्रि हो चुकी थी पर जाप और चालीसा का पाठ चलता रहा। सबेरे होते-होते तबियत ठहर गई और साधारण सी चिकित्सा से बिल्कुल ठीक हो गया।

भूत व्याधा से मुक्ति

(13) मेरी एक विधवा भाभी हैं। प्रयाग में दूसरे भाई पं. ताराशंकर जी जैतली के यहाँ आजकल रहती हैं। उनके ऊपर पिछले कुछ वर्षों पूर्व एक प्रेत आत्मा आने लगी। पहले तो हिस्टीरिया समझ उसकी ही विविध चिकित्सा कराई गई पर कोई लाभ न हुआ। बाद में उसके बाद पता चला और अनेक भूतविद्या विशारदों से झड़वाया पर लाभ न हुआ। निदान उन्हें भी गायत्री जप प्रारम्भ करने को कहा गया। जाप के प्रसाद से धीरे धीरे उन्हें इस व्याधा से पूर्ण छुटकारा मिल गया।

(14) एक रिश्ते की चचिया सास को भी इसी प्रकार दौरे आते थे। ऐसे समय उनका बोलना एवं आचरण संदिग्ध होता था। गायत्री जप से उनको भी उपरोक्त व्याधी से छुटकारा मिला।

विविध प्रयोजनों की सिद्धि

(15) हमारे एक अन्य मित्र एक बैंक के उच्च पदाधिकारी हैं, कुछ कारणों से उन्हें विशेष चिन्ताएँ घेरे रहती थीं। जब से उन्होंने जाप प्रारम्भ किया है उन की चिन्ताएं राग दूर हो गए।

(16) एक अन्य मित्र कई बार उच्च पी0सी0 एस॰ एवं आई0ए0एस॰ की परीक्षाओं में बैठ चुके थे। एकबार तो उत्तीर्ण हो गये पर इण्टरव्यू में रह गये। निदान गायत्री माता का आश्रय लेने पर आज वह एक उच्च पदाधिकारी हैं।

(17) एक हमारे रिश्तेदार के निजी सम्बन्धियों ने उनको अत्यन्त परेशान कर रखा था। यहाँ तक कि घर में रहने की भी जगह नहीं दे रखी थी। गायत्री जाप से उनकी कठिनाइयाँ भी हल हो गई।

(18) पूज्य भाई ताराशंकर जी पर भी इन दिनों कुछ काफी घटाएं आई हैं पर गायत्री जाप के प्रभाव से एवं आचार्य जी की कृपा से उनका काम आगे बढ़ रहा है और आशा है पूर्ण विजय होगी।

(19) श्री के0 डी0 शर्मा निवासी विजय नगर, कलौनी, आगरा को भी विविध चिन्ताओं से जाप द्वारा मुक्ति मिली।

(20) श्री काशीनाथ जी भी नित्य जप करते हैं। एकबार रोकड़ खाते में भूल से कागज पर गलत तिथि डालने के कारण उन पर कठिन दोष लग रहा था। माता से प्रार्थना करने पर वह कागज पुनः हाथ आ गया और इस प्रकार कलंक लगने से बचा।

इस स्तम्भ के अंतर्गत अन्य बहुत से महानुभावों के नाम भी आ सकते हैं पर स्थानाभाव के कारण हम उनका उल्लेख नहीं करते।

निष्काम साधना एक उच्च कक्षा है। जो व्यक्ति परिमार्जित दृष्टिकोण के एवं विश्वासी हैं जिन्हें माता के सर्वशक्तिमान होने पर विश्वास ही नहीं वरन् जो जगत की क्षणभंगुरता को भी उसके सही रूप में जानते हैं जो ईश्वर के नाम पर साँसारिक कष्टों को साहस से ही नहीं अपितु निर्लिप्त भाव से सह लेते हैं वह श्रद्धा के पात्र निष्काम साधना से ही दैवी आत्मानुभूति अनुभव कर वास्तविक सुख के अधिकारी हैं। ऐसे लोगों को तो सकाम साधना एक परिहास मात्र लग सकती है। पर मेरी सबसे करबद्ध प्रार्थना है कि जिस कौतूहल से वह अपने छोटे से शिशु को ‘अ’ ‘ब’ सीखते देख उल्लसित होते हैं और उन की छोटी सी जानकारी को भी पीठ थपथपा कर बड़ा बताते हुए आगे बढ़ाते हुए उच्चकोटि की कक्षाओं आदि तक पहुँचा देते हैं, वैसे ही इन छोटे कक्षा वाले सकाम प्रवृत्ति के प्रारम्भिक विद्यार्थियों आध्यात्म विद्या, गायत्री महामंत्र की ओर रुचि उत्पन्न करने में सहायक हों।


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