आत्म−बल ही देव−बल हैं।

September 1955

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(श्री ज्वाला प्रसाद गुप्त, एम. ए. एल. टी.)

प्रायः देखा जाता है कि मनुष्य अधिकार बाह्य जगत में प्रेरणा का सहारा ढूंढ़ता रहता है। देवी−देवताओं की मनौती मानता है और एक या अनेक देवी−देवताओं को अपना सहायक बना लेता है। फिर भी काम नहीं होता और बाहर से किसी प्रकार का प्रोत्साहन प्राप्त नहीं होता, तो निराश होकर हिम्मत हार कर बैठ जाता है। यह स्थिति बड़ी ही दुःखद और चिन्ता जनक होती है। परन्तु इस चिन्ता का कारण मनुष्य स्वयं है। यह स्थिति क्षण मात्र में बदल सकती है, यदि हम स्वयं अपने आप अपने अन्दर से प्रेरणा लें।

हमारा आत्म−विश्वास और आत्म बल ही हमारी आन्तरिक प्रेरणा का मूल आधार है। दूसरों को हममें क्या विशेष दिलचस्पी हो सकती है? अतः उनके सहारे ही पड़ा रहना नासमझी तथा मूर्खता है। देवी देवता भी प्रत्यक्ष रूप से किसी की सहायता नहीं करते। वे तो वास्तव में केवल मनुष्य के आत्मा की गाड़ी हाँकते हैं अर्थात् जो आदमी अपना आत्मबल लगाकर उद्योग करता है, वे उसकी शक्ति को उद्दीप्त करते रहते हैं। जो स्वयं अपने रास्ते पर चलता रहता है, वे उसकी आत्मा में धैर्य तथा विश्वास का बल भर देते हैं। बैठे हुए आदमी को कन्धे पर रखकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाने का व्यवसाय वे नहीं करते।

हमारा सबसे बड़ा देवता आत्म−बल ही है। हमें चाहिये कि उसी को पुकारें। वह उठता है, तो मनुष्य की सहायता के लिये परमात्मा उठ खड़ा होता है, क्योंकि आत्मा, परमात्मा का ही संक्षिप्त रूप है। “अहं ब्रह्मास्मि” [मैं ही ब्रह्म हूँ] के सिद्धान्त को याद रक्खो। अपने को निर्बल क्यों समझते हो? जो शरीर ईश्वर को धारण करता है, वह निर्बल कैसे हो सकता है? उसमें अपरम्पार बल है, उसको खोज निकालो। अपनी शक्ति और आत्म−बल पर पूर्ण विश्वास रक्खो। नित्य प्रति अपने को आत्म संकेत दिया करें कि “मैं बलवान हूँ, दृढ़ संकल्प हूँ, मुझमें असीम बल है, मुझे अवश्य सफलता मिलेगी।” आत्म बल बढ़ाने में सफलता जादू का प्रभाव रखती है।

एक सफलता से मुझे दूसरी से तीसरी, तीसरी से चौथी के लिए प्रेरणा मिलती है इस प्रकार जीवन में सफलता का क्रम चलता रहता है। छोटे छोटे कामों में सफलता प्राप्त कर हमें धीरे धीरे अधिक बड़े और कष्ट साध्य कामों में सफलता प्राप्त करने के योग्य बन जाते हैं और साथ ही साथ हमारा आत्म बल भी बढ़ता है। यदि कभी जरासी भी निराशा की झलक आये या शिथिलता मालूम पड़े तो हम हताश न होकर अपने किसी इष्ट देव या देवी का सहारा ले सकते हैं। परन्तु पहले अपने ही पुरुषार्थ पर पूर्ण विश्वास कर आगे बढ़ना होगा। फिर इस बात पर विश्वास कर आगे बढ़ना होगा। फिर इस बात पर विश्वास कीजिये कि आप अकेले नहीं बल्कि आपके प्राण के पीछे आपके इष्ट देव देवी भी सहायक हैं। जीवन की गाड़ी के अटकने पर आत्म−बल ही पहला देवता है जो बुलाने पर आकर उसको संकट के दलदल से निकाल सकता है। उस देवता के खड़े होने पर सारी देव सेना सहायता के लिये आ जाती है, क्योंकि सब देवता एक दूसरे के मित्र होते हैं, परस्पर सहायक होते हैं। वास्तव में सब देव शक्तियों की जननी हमारी आत्मा ही है। आत्म−बल ही देव बल। इसे जागृत कर जीवन को सफल बनाइये।


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