तेरा कौन है?

June 1954

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(श्री सावित्री देवी जी फिल्लोर,)

तेरा कौन है। तेरा अपना कौन है? और सब काम छोड़कर पहिले वह पता लगा ले कि तेरा अपना कौन है?

यह जो चारों तरफ अपनी चमक दमक द्वारा तेरा मन हरने के लिए आते है, ये तेरे हृदय को शान्ति नहीं दे सकेंगे। जो बिना बुलाए मेहमान सज-धज कर चमकीले भड़कीले वेश बनाकर सदा तेरे इर्द−गिर्द घूमते रहते है। भ्रम में न आना कि वे तेरे नजदीकी नहीं है? वे तुझ से बहुत दूर है, कोसों दूर है।

जो अपनी मनोहर चेष्टाओं से, वचनों से, और अन्य नाना उपायों से तेरा मन बहलाते रहते हैं, तुझे आनन्द से खिला देते है, उनके हाथों में हाथ? वह दीपक नहीं है जो कि तेरे असली अकेले घनघोर, अन्धेरे मार्ग को प्रकाशित कर सकेगा।

जो सभी प्रकार की सभा समाजों में आकर एक निस्सार शब्दावली गरज कर सुना जाते है, क्या तू समझता है कि भंवर में पड़ी तेरी नैया को वे पार लगा देंगे? जो हर एक भीड़ के आगे शोर मचाते हुए चलते है क्या तू समझता है कि आवश्यकता पड़ने पर वे तेरे काम आवेंगे? जो जल के ऊपर सदा फेन की तरह तैरते रहते है क्या तू समझता है, कि तेरी वह गहरी सेवा कर सकेंगे, तेरा उपकार कर सकेंगे?

जब शान के साथ तेरा रंगीली मण्डली राजमार्ग पर इतराती हुई निकलती है तब जो सड़क के एक किनारे से चुपचाप निकल जाता है, शायद वही तेरा है। जब भारी भारी जलसों के घटनापूर्ण उपदेश हो रहे होते है, तब जो मण्डप के एक कौने में आत्म निरीक्षण करता हुआ बैठा है, शायद वही तेरा है जो समुद्र जल में छिपे मोतियों की तरह, नम्रता वश भी तुम से प्रेम रखता हुआ भी दूर रहता है, वह तेरा है और क्या? जो तुझे चमकाने के लिए तपाता है, और तेरी तप-क्लेश की अवस्था को आनन्द से निरीक्षण करता रहता है, वह निश्चय ही तेरा है।

विपत्ति का सायंकाल आने पर अब कि सब तेरे मित्र पखेरू स्वार्थ साधन नामक आवश्यक कामों से अपने-अपने बसेरों की ओर उड़ जाते है, तब जो तेरे साथ रह जाता है, वही तेरा है। जब इन्द्रियों की शक्ति क्षीण हो जाती है, तेरा आशामय संसार विलीन हो चुका होता है, तब तुझे धीरज बँधाने वाला चैतन्य जहाँ से मिलता है, वही तेरा है। जब सब ओर से हार हो जाती है, कोई बस नहीं चलता, निस्सहायता की पराकाष्ठा हो जाती है, तब जो ठीक समय पर आकर तेरा हाथ पकड़ लेता है, वही एकमात्र तेरा है।

संसार में, अपना, पराया जानना बड़ा कठिन है, पर इसके बिना कुछ, बन नहीं सकता। यदि पराये, को अपना समझ लिया तो पछताना पड़ेगा। पछताना और इसके सिवाय कुछ भी नहीं है। इसलिए कहना पड़ता है कि पहिले सब धन्धे छोड़कर पहिले एक बार यह पता लगा ले कि तेरा कौन है। तेरा अपना कौन है?

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करत करत अभ्यास के, जड़ मति होत सुजान। रसरी आवत जात तें, सिल पर परत निसान॥

भली करत लगे विलम, विलम न बुरे विचार। भवन बनावत दिन लगे, ढाहत लगे न बार॥

का रस में का रोस में, अरि को लनि पतियाय। जैसे शीतल तप्त जल, डारत अगिन बुझाय॥

होय भले को सुत बुरो, भलो बुरे को होय। दीपक ते काजल प्रकट, कमल कीच ते होय॥

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