(अप्रैल अंक से आगे)
निरोगता, बलिष्ठता और दीर्घायु के लिए-
स्वास्थ्य का केन्द्र सूर्य है। सूर्य में रोग निवारिणी प्रचण्ड शक्ति मौजूद है। इसका उपयोग करने से नाना प्रकार के कष्ट साध्य रोग दूर हो सकते है और शारीरिक कष्टों से छुटकारा पाकर मनुष्य निरोगता पूर्वक दीर्घ जीवन प्राप्त कर सकता। ऐसे प्रयोजनों में सूर्य गायत्री का उपयोग करना ठीक है।
सन्तान उत्पादक तत्व सूर्य से आते है। कुन्ती ने कुमारी अवस्था में सूर्य का आवाह्न करके कर्ण को जन्म दिया था। सन्तान रहित, मृतवत्सा, गर्भपात होते रहने वाली, प्रसव में अत्यन्त कष्ट सहने वाली तथा जननेन्द्रिय सम्बन्धी अवस्था वाली महिलाओं के लिए सूर्य गायत्री का उपयोग विशेष फलप्रद होता है।
जो वनस्पति, औषधियाँ जिस रोग के लिए आयुर्वेद ग्रन्थों में गुणकारक मानी गई है जिन्हें घृत एवं शर्करा में मिलाकर सूर्य गायत्री के साथ रोगी के निकट हवन करें तो साधारण औषधि चिकित्सा की अपेक्षा उसका परिणाम अधिक उत्तम होता है। औषधि, सेवन के साथ साथ उन्हीं वनस्पति औषधियों का हवन भी होता रहे तो दूना लाभ होता है। जिस रोग में किन औषधियों का हवन उपयुक्त है उसका उल्लेख इस लेख के अन्त में करेंगे।
सूर्य गायत्री का मन्त्र यह है :-
ॐ भूर्भुवः स्वः भास्कराय विद्महे, दिवाकराय धीमहि, तन्नः सूर्यो प्रचोदयात्।
सूर्य गायत्री के साथ जिन वस्तुओं के हवन से जो लाभ होता है उसका वर्णन इस प्रकार मिलता है :-
स प्ररोहाभिराद्राभि र्हुत्वा आयु समाप्नुयात। समिद्भिः क्षीर वृक्षरर्हुत्वायुष मवाप्नुयात॥
पलास की समिधाओं से होम करने पर आयु की वृद्धि होती है। क्षीर-वृक्षों की समिधा से हवन करने से भी आयु बढ़ती है।
व्रीहीणाँ च शर्त हुत्वा दीर्घचायुवाप्नुयात्।
यवों की सौ आहुतियाँ नित्य देने से दीर्घजीवन मिलता है।
सुवर्ण कमलं हुत्वा शतमायुरवाप्नुयात्। दूर्वाभिपयसा वापि मधुना सपिषापि वा॥
शतं शतं च सप्ताहमयमृत्युँ व्यपोहति। शमी समिद्भिरन्ने न पयसा वा च सर्पिषा॥
सुवर्ण कमल के होम से मनुष्य शत जीवी होता है। दूर्वा, दुग्ध, मधु, घृत, की सौ सौ आहुतियाँ देते रहने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। शमी की समिधाओं से तथा दूध और घृत से हवन करने पर भी आयु का भय जाता रहता है।
आयुषे साज्य हविषा केवले नाथ सर्पिषा। दूर्वात्रि कैस्तिलैमन्त्री जुहयात्रि सहस्रकम्॥
दीर्घ जीवन की इच्छा करने वाला मनुष्य घृत, अथवा धी युक्त खीर, दूर्वा एवं तिलों से तीन हजार आहुतियाँ दे।
शतं शतं च सप्ताहमपमृत्युँ व्यपोहति। न्यमोघ समिधो हत्वा पायसं होमयेत्ततः॥
वट वृक्ष की समिधाओं से प्रतिदिन सौ आहुतियाँ देने से मृत्यु का भय टल जाता है।
रक्तानाँ तण्डुलानाँ च घृताक्तानाँ हुताशने। हुत्वा वल मवाप्नोति शत्रुभिर्नस जीयते॥
लाल चावलों को घी में मिलाकर अग्नि में हवन करने से बल की प्राप्ति होती है और शारीरिक शत्रुओं (रोगों) का क्षय होता है।
हुत्वा करवीराणि रक्तानि ज्वालमेज्वरम्।
लाल कन्नेर के फूल से हवन करने पर ज्वर चला जाता है।
आमुस्य जुहुयात्पत्रैः पयोक्तैः ज्वर शान्तये॥
ज्वर को शान्त करने के लिये दूध में भिगोकर आम के पत्तों का हवन करें।
वचभिः पयसिक्ताभिः क्षयं हुत्वा विनाशयेत्। मधु त्रितय होमेन राज यक्ष्मा विनश्यति॥
दूध से बच को अभिषिक्त करके हवन करने से यक्ष रोग दूर होता है। दूध, दही, घी इन तीनों को होमने से भी राजयक्ष्मा नष्ट हो जाती है।
लताः वर्वेसु विच्छिद्य सोमस्य जुहुयात् द्विजः। सोमे सूर्यण संयुक्ते प्रयोक्ता, क्षय शान्तये॥
अमावस्या के दिन सामलता की डाली से होम करने पर क्षय दूर होता है।
केसुमैः शंख वृक्षस्य हुत्वा कुष्टं विनाशवेत्। अपस्मार विनाशस्तादयामार्गस्य तण्डुलैः॥
शंख वृक्ष के पुष्पों से यदि होम किया जाय तो कुष्ठ रोग अच्छा हो जाता है। अणमार्ग के बीजों से हवन करने पर अपस्मार (मृगी) रोग अच्छा होता है।
प्रियंगु पायसाज्यै श्च भवेद्धोमादिभिः प्रजा।
प्रियंगु दूध और घी से होम करने पर सुसन्तति प्राप्त होती है।
निवेश भास्कारायान्नं पायसं होम पूर्वकम्। भोजयेत दृतुस्नाताँ पुत्रं परमवाप्नुयात्॥
सूर्य नारायण को होम पूर्वक क्षीर अर्पण करके ऋत स्नान की हुई स्त्री को शेषाँरा खिलाने से पुत्र की प्राप्ति होती है।
गर्भपातादि प्रदराश्वान्ये स्त्रीणाँ महारुजः। नाशमेष्यन्तिते सर्वे मृतवत्सादि दुःखदा॥
गर्भपात, प्रदर, मृत संतति की उत्पत्ति आदि सर्व रोग नष्ट होते हैं।
क्षीर वृक्ष समिद्धोमादुन्मादोऽपिविनश्यति। औदुम्यर समिद्धोमादति मेह क्षयं ब्रजेत्॥
क्षीर वृक्ष की समिधाओं से हवन करने पर उन्माद रोग नहीं रहता। औदुम्बर की समिधाओं से हवन किया जावे तो प्रमेह नष्ट होता है।
प्रमेहं शमयेद्धत्वा मधुनेक्षुर सेनवा। मधुत्रितय होमेन नयेच्छन्ति मसूरिकाम्॥
प्रमेह की शान्ति के लिए मधु अथवा ईख के रस से हवन करना चाहिये। मसूरिका (चेचक) का निवारण करने के लिये मधु त्रितब (दूध, दही, घी) होमना चाहिये।
कपिला सर्विषा हुत्वा नयेच्छान्ति मसूरिकाँ।
गौ के घी से हवन करने पर चेचक दूर होती है।
उदुम्बर वटाश्वत्थैर्गोगजाश्वामभं हरेत।
गाय के सभी रोगों की शान्ति के लिए गूलर, हाथी के रोगों के निवारण के लिए वट और घोड़े के रोग दूर करने के लिए पीपल की समिधाओं का हवन करना चाहिए।
उद्वेग शान्ति के लिए :-
चन्द्रमा को ‘रसाधिप’ कहा गया है। उससे पृथ्वी पर रस और वनस्पति की उत्पत्ति होती है। वर्षा के लिये वरुण और पर्जन्य को प्रेरित करना भी चन्द्रमा का काम है। सन्तान की उत्पत्ति, उसकी शोभा और कुरूपता का भी चन्द्र शक्ति से सम्बन्ध है जिस बालक को जितना चन्द्रतत्व प्राप्त हो जाता है वह उतना ही सुन्दर, सौम्य, तथा शान्त प्रकृति का होता है। अश, पशु, प्रजा, सन्तान, वनस्पति, वृक्ष, वर्षा आदि के लिए चन्द्रमा की आराधना फलवती होती है।
मानसिक उत्तेजना, क्रोध, अन्तर्दाह शरीर और मन में विषों का संचय आदि उष्णताओं का चन्द्र गायत्री से समाधान होता है। अन्तरात्मा की शान्ति, चित्त की एकाग्रता के लिए भी उसका विशेष प्रभाव होता है। चन्द्र गायत्री यह है :-
ॐ भूर्भुवः स्वः क्षीर पुत्राय विद्महे, अमृत तत्वाय, धीमहि, तन्नः चन्द्रः प्रचोदयात्।
इस मन्त्र द्वारा हवन करने से क्या परिणाम होते है इसका विवरण इस प्रकार है :-
शान्ति कामस्तु जुहुयात् सावित्री मक्ष्तैः शुचिः।
शान्ति की कामना करने वाले के अक्षतों के साथ गायत्री से हवन करना चाहिए।
गवाँ क्षीरं प्रदीतेऽग्नौ जुह्वतस्तत्प्रशाम्यति।
गाय के दूध का अग्नि में हवन करने से शान्ति प्राप्त होती है।
कोटि होमं तु यो राजा कारयोद्विधि पूर्वक्म्। न तस्य मानसो दाह इह लोके परत्र च॥
जो राजा एक करोड़ आहुतियों से विधिपूर्वक हवन करता है उसका चित्त स्थिर और शान्त रहता है। उसे मानसिक दाह इस लोक और परलोक में दुःख नहीं देते।
संयुक्तेः पयसाः सत्रैः पुष्पैवों वे त्सस्य च। पावसेन शतं हुत्वा सप्ताहं देष्टि माप्नुयात्।
बेंत के वृक्ष के फूल अथवा पत्तों में हिलाकर क्षीर से हवन करने पर वर्षा होती है।
नाभि दध्ने जले जप्त्वा सप्ताहं वृष्टि माप्नुयात्। जले भस्म शतं हुत्वा महावृष्टि निवारयेत्॥
नाभि पर्यन्त जल में खड़े होकर एक सप्ताह एक गायत्री जपने से वर्षा होती है और जल में सौ बार हवन करने से अतिवृष्टि हो रही हो तो उसका निवारण होता है।
करीष च्चर्णेर्वत्स्य हुत्वा पशुमशप्नुयात्।
बछड़े के गोबर को होम करने में पशुओं की तथा अन्नों की प्राप्ति होती है।
अन्नं हुत्वाप्नुयादन्नं ब्राही ब्रीहिपतिर्भवेत्।
अन्न का हवन करने से अन्न प्रचुर मात्रा में उपजता है। यवों का होम करने से यव खूब उत्पन्न होते है।
तदेवह्यनले हुत्वा प्राप्नोति बहु साधनम्। अन्नादि हवनान्नित्य मन्नाद्यं च भवेत्सदा॥
अन्नों का नित्य हवन करने से पृथ्वी पर पर्याप्त मात्रा में अन्न प्राप्त होता है।
रक्त चन्दन मिश्रं तु सघृतं हव्य वाहने। हुत्वा गोमय माप्नाति सहसं गोमयं द्विजः॥
रक्त चन्दन को घी में मिलाकर अग्नि में हजार बार आहुति देने से पशुओं से घी, दूध और गोबर भले प्रकार प्राप्त होता है।
पारिवारिक क्लेश, द्वेष, वैमनस्य आदि को शान्त करके शीतल मधुर सम्बन्ध उत्पन्न करने के लिए भी चन्द्र गायत्री विशेष फलप्रद होती है।
सिद्धि और सफलता के लिए :-
असफलता, निराशा, चिन्ता और खिन्नता उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करके सफलता का आशाजनक वातावरण उत्पन्न करने की स्थिति उत्पन्न करने में सरस्वती शक्ति का विशेष महत्व है। बुद्धि वृद्धि, अभिष्ट वस्तुओं की प्राप्ति, सुख शान्ति, परीक्षा उत्तीर्णता आदि के लिए सरस्वती गायत्री का प्रयोग किया जाता है।
-क्रमशः