तुलसी सब रोगों की दवा

June 1954

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(श्री सत्य प्रकाश अग्रवाल मथुरा)

जिस प्रकार प्राणियों में मनुष्य, छन्दों में गायत्री देवताओं में इन्द्र, नदियों में गंगा, पर्वतों में हिमालय और हाथियों में ऐरावत हाथी श्रेष्ठ है उसी प्रकार वनस्पतियों में तुलसी का पौधा ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यही कारण है कि हिन्दू परिवारों में घर की पवित्रता की रक्षार्थ तुलसी का पौधा रखा जाता है। हमारे यहाँ भगवान की पूजा भी बिना तुलसी के नहीं हो पाती। शालिग्राम की पूजा बिना तुलसी दल चढ़ाए पूर्ण होती ही नहीं है, बिना तुलसी के भगवान का प्रसाद भी नहीं बनता। हिन्दू समाज में जो तुलसी का इतना मान होता है, उसकी इतनी रक्षा व पूजा होती है, वह किसी अंधविश्वास के कारण नहीं वरन् उसके अद्भुत गुणों के कारण है। अत्यन्त प्राचीन काल में जबकि बहुत से देशों में मानव जीवन का विकास भी नहीं हुआ था, हमारे ऋषि मुनियों ने तुलसी के गुणों को अच्छी तरह जान लिया था और उसके गुणों के कारण ही उसको हिन्दुओं के लिए इतना महत्वपूर्ण बना दिया जिससे तुलसी का पौधा हर समय उसके पास सुलभ रहे। जब मनुष्य मृत्यु के समीप होता है, बड़े से बड़े डॉक्टर, वैद्य फेल होकर चले जाते है तब केवल तुलसी की पत्ती और गंगा जल ही दिया जाता है, और देखा भी गया है कि कभी गंगाजल के गले के नीचे उतरते ही मरणासन्न मनुष्य भी अच्छे हो जाते हैं अथवा कष्ट से छूट जाते है। तुलसी के इन्हीं गुणों के कारण इसकी इतनी प्रतिष्ठा व पूजा हमारे समाज में है।

तुलसी से अनेकानेक लाभ की दवाइयां बनती है। तुलसी की जड़, पत्ती, डंठल, बीज सभी औषधि का काम देती है, और अत्यन्त उपयोगी हैं। इसकी पत्तियाँ खाने से शरीर में स्फूर्ति एवं तेज आता है, जड़ ठंडक रखती है और बीज मस्तिष्क की शान्ति प्रदान कर कार्य की ओर अग्रसर करते है। तुलसी में अभूतपूर्व सुगन्धि होती है जो वायु को शुद्ध करती है। जहाँ तुलसी का पौधा होता है वहाँ की वायु शुद्ध रहती है, जलवायु स्वास्थ्य उपयोगी होती है, वातावरण शान्तिमय रहता है। जैसा कि तुलसी के सम्बन्ध में हिन्दू ग्रन्थों में लिखा है।

तुलसी गन्धमादाय यत्र गच्छति मारुतः। दिशो दिशश्च पूतास्यभूर्त ग्रामश्चतुर्विधः॥

‘अर्थात् तुलसी की गन्ध लेकर वायु जहाँ कहीं पहुँचती है, उस दिशा में रहने वाले प्राणी तथा सभी स्थान पवित्र हो जाते हैं,

जहाँ तुलसी होती है वहाँ मच्छर इत्यादि नहीं होते, वहाँ रोग भटकने भी नहीं पाते। तुलसी की गन्ध से सब मच्छर इत्यादि मर जाते है। जैसा कि ग्रन्थों में है।

“तुलसी काननञ्चैव गृहे यस्यवतिष्ठति। तत् गृहतीर्थ भूत हिना यान्ति यम किंकरा॥”

अर्थात् जिस घर में तुलसी रहती है वह घर तीर्थ के समान है। वहाँ यमदूत (मच्छर, सर्प, बिच्छू इत्यादि नहीं जाते।

तुलसी का महत्व एक और निम्न उदाहरण से स्पष्ट है। कुछ ही दिन पूर्व हमारे एक परिवार के ही पूज्य महानुभाव तपैदिक के मरीज जो जीवन से निराश थे उन्हें डाक्टरों, वैद्यों ने जवाब दे दिया था, उन्हें एक तुलसी के बगीचे में रखा गया। दो महीने उसने स्वास्थ मय लाभ को प्राप्त किया। अब पाठकों की सुविधा के लिए तुलसी का दवाई की तरह प्रयोग बताया जा रहा है।

तुलसी का प्रयोग

मलेरिया पर :- मलेरिया की तो तुलसी शत्रु है। तुलसी मलेरिया के कीटाणुओं को भगाती है। मलेरिया के मरीज को जितनी हो सके (अधिक से अधिक 50 या 60 तुलसी की पत्तियाँ प्रतिदिन खानी चाहिए तथा काली मिर्च पीसकर तुलसी के रस के साथ पीनी चाहिए। इससे ज्वर जड़ से नष्ट हो जायेगा।

ज्वर पर :- तुलसी का काढ़ा बनाकर रोगी को पिलाना चाहिए, इसके बाद रजाई ओढ़कर कुछ देर सो रहिए, पसीना आकर बुखार उतर जायगा।

खाँसी पर :- तुलसी और अडूसा के पत्तों को बराबर मात्रा में घोट कर पीजिए।

जी घबड़ाने पर :- तुलसी की पत्तियाँ 1 तोला और काली मिर्च 1 मासा पीसकर शहद के साथ चाटिए। आपका जी नहीं घबड़ायेगा तथा चित्त प्रसन्न रहेगा।

कान के दर्द पर :- तुलसी की पत्तियों को पीसकर उनके रस में रुई को भिगोकर कान पर रखे रहिए। दर्द फौरन बन्द हो जायगा।

दांतों के दर्द पर :- तुलसी और काली मिर्च पीसकर उसकी गोलियाँ बनाकर पीड़ा के स्थान पर रखने से दर्द बन्द हो जायगा।

गले के दर्द पर :- तुलसी की पत्तियों को पीसकर शहद में चाटने से गले का दर्द बन्द हो जावेगा।

जुकाम पर :- तुलसी का रस पीजिए और तुलसी की सूखी पत्तियाँ खाइए। अगर हो सके तो तुलसी की चाय भी पीजिये। जुकाम नष्ट हो जायेगा।

फोड़ो पर :- तुलसी की एक छटाँक पत्तियों को औटा लीजिए और उसके पानी को छानकर फोड़ो को धोइये, दर्द बन्द हो जायेगा तथा विष भी नष्ट हो जावेगा।

सिर दर्द पर :- तुलसी की पत्तियों के रस को और कपूर को चन्दन में घिसिये। खूब गाढ़ा करके उसे सिर पर लगाइये। सिर दर्द बंद हो जाएगा।

जल जाने पर :- तुलसी का लेप बनाकर उसमें गोले का तेल मिलाकर जले हुए स्थान पर लगाइये।

आंखों के रोग पर :- तुलसी का लेप बनाकर आंखों के आस-पास रखना चाहिए। इससे आँख ठीक हो जाती है। अगर हो सके तो तुलसी के रस में रुई को भागो कर पलक के ऊपर रखिए। इससे आँखों की रोशनी बढ़ती है।

पित्ती निकलने पर :- तुलसी के बीजों को पीसकर आँवले के मुरब्बे के साथ खाने से पित्ती दूर हो जाती है।

जहर खा लेने पर :- तुलसी की पत्तियों को पीस कर उनको मक्खन के साथ खाने से विष दूर होता है।

बाल झड़ने पर अथवा सफेदी होने पर :- तुलसी की पत्तियों के साथ आँवले से सिर धोने पर बाल न तो सफेद होते है और न झड़ते हैं।

तपैदिक होने पर :- तपैदिक के मरीज को किसी तुलसी के बगीचे में रहना चाहिये और अधिक से अधिक तुलसी खानी चाहिये इससे वह शीघ्र ही स्वस्थ हो जावेगा। तुलसी की आव-हवा का तपैदिक के मरीज पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। तुलसी की गन्ध से तपैदिक के कीटाणु मर जाते है। रोगी शीघ्र स्वस्थ होकर स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त करेगा।

इसी तरह साँप के विष को दूर करने के लिये भी तुलसी एक अमूल्य औषधि है। साँप के काट लेने पर तुरन्त ही रोगी को तुलसी की पत्तियाँ खिलानी चाहिये। इसके बाद जहाँ साँप ने काटा है उस जगह को शीघ्र ही चाकू से काट देना चाहिये तथा घाव के ऊपर एक कपड़ा बड़ी मजबूती से कसकर बाँध दीजिये। इसके पश्चात जहां साँप ने काटा है वहाँ तुलसी की सुखी जड़ को घिस कर मक्खन मिलाकर उसकी पट्टी बाँधनी चाहिए। पट्टी विष को अपनी तरफ खींचेगी। जिससे उसका रंग काला पड़ जायेगा। रंग काला पड़ते ही दूसरी पट्टी बाँधनी चाहिये। जब तक पट्टी का रंग बिलकुल सफेद ही न रहे यह क्रम जारी रखना चाहिये। शीघ्र ही साँप का विष उतर जायगा।

इन सब गुणों के अतिरिक्त तुलसी और बहुत से रोगों को दूर करती है। तुलसी की पत्तियों को सुखाकर उनको कूटकर छान लेना चाहिये और फिर नहाते समय दूध अथवा दही के साथ शरीर पर मलना चाहिये। इस प्रकार तुलसी साबुन का काम भी दे सकती है। तुलसी की पत्तियाँ और काली मिर्च सुबह नहा धोकर खानी चाहिये इससे दिन भर चित्त प्रसन्न रहता है, दिनभर शरीर में स्फूर्ति रहती है और मन शान्त रहता है। तभी तो शास्त्रों में भी लिखा है :-

“महा प्रसाद जननी, सर्व सौभाग्य वर्दिधुनी। आदि व्याधि हरि निर्त्य, तुलसित्वं नमोस्तुते॥”


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