कुछ भूलना भी सीखिए।

December 1953

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(प्रो. रामचरण महेन्द्र, एम. ए.)

जब मन में पुरानी दुखद स्मृतियाँ सजग हों, तो उन्हें भुला देने में ही श्रेष्ठता है। अप्रिय बातों को भुलाना आवश्यक है। भुलाना उतना ही जरूरी है, जितना अच्छी बात का स्मरण करना। जब खेत में घास फूस उग आती है, तो आप उसे उखाड़ फेंकते हैं। घृणित, क्रोधी, ईर्ष्यालु, व्यथाजनक स्मृतियाँ उन्हीं कंटकों की तरह हैं, जो अन्तःकरण रूपी उद्यान की पवित्रता को नष्ट करती हैं। उत्पादक शक्ति का क्षय कर देती हैं। हम घृणित चिन्ता जनक अनुभूतियों को पुनः पुनः यादकर अपने चहुँ ओर एक मानसिक नरक निर्मित कर उसी में दुखी पीड़ित होते हैं।

बुद्धिमानी इसी में है कि इन दुखद प्रसंगों की ओर से मन हटा लिया जाय। जब हम उस ओर से मनोवृत्ति हटा लेंगे, तो निश्चय ही हमारा इस नरक से साथ छूट जायगा। विस्मृति का प्रभाव बड़ा मंगलदायक है। ज्यों ही हम पीड़ा, दुख और वेदना की स्मृतियों को कल्पित मचों से अपना सम्बन्ध तोड़ते हैं, त्यों ही हम अन्धकार से प्रकाश की ओर चलना प्रारम्भ कर देते हैं। जब तक मनुष्य का मन व्यथा, पीड़ा रोग, कष्ट, भव आदि से परिपूर्ण रहता है, तब तक उसका पौरुष प्रकट नहीं होता है। उसकी दैवी कल्याणकारी शक्ति पंगु बनी रहती है।

पं. रामलला पहाड़ा का मत माननीय है, “जब जब आपके मन में अनिष्ट भाव प्रकट हों, तब उनको हटाना और भुलाना ही बुद्धिमानी का कार्य है। दुर्बलता, दीन हीनता, भय और कष्ट को भुलाना कठिन है, परन्तु ईश्वर का स्मरण सरल है.... यदि हम कल्पित बन्धनों को तोड़ डालें, तो ईश्वर सहायता देगा। उसके प्रति मन फेरते ही वह अद्भुत एवं अदृश्य रीति से सहायता करता है। हमें इसका कुछ ज्ञान भी नहीं होने पाता।”

अमेरिका के एक प्रमुख डॉक्टर ‘मेडिकल टाक’ नामक पत्र में लिखते हैं कि “वर्षों के अनुभव के बाद मैं इस निर्णय पर पहुँचा हूँ कि दुःख और चिन्ता दूर करने के लिए ‘भूल जाओ’ से बढ़कर कोई दवा नहीं है।” अपने लेख में वे लिखते हैं-

“यदि तुम शरीर से; मन से और आचरण से स्वस्थ होना चाहते हो, तो अस्वस्थता की सारी बातें भूल जाओ।”

नित्य प्रति के जीवन में छोटी मोटी चिन्ताओं को लेकर झींकते मत रहो। उन्हें भूल जाओ। उन्हें पोसो मत। अपने अव्यक्त या अन्तःस्थल में पालकर मत रखो। उन्हें अन्दर से निकाल फेंको और भूल जाओ। उन्हें स्मृति से मिटा दो।

माना कि किसी ‘अपने’ ने ही तुम्हें चोट पहुँचाई। तुम्हारा दिल दुखाया है। सम्भव है जान बुझकर उसने ऐसा नहीं किया है, और मान लो कि जानबूझकर ही उसने ऐसा किया है, तो क्या तुम उसे लेकर मानसिक उधेड़ बुन में लगे रहोगे? इस चिन्तित मन की अवस्था से क्या तुम्हारे मन का बोझ हलका होगा? अरे भाई, उन कष्टदायक अप्रिय प्रसंगों को भुला दो। उधर ध्यान न देकर अच्छे शुभ कार्यों में मन को केंद्रीभूत कर दो। पुरानी कटु स्मृतियों को लेकर चिन्ताओं का जाल मत बुनने लगो। अपनी पीड़ाओं, दुःख तकलीफों को भूलो। कौन ऐसा है, जिसे दुख तकलीफें नहीं है। भूल जाओ, उधर से चित्त हटा लो, चिन्ता से आंखें फेरकर आशा की ओर लगाओ कटुता से मन मोड़ लो।

दूसरों के प्रति तुम्हारे मन में घृणा, द्वेष, ईर्ष्या, दुर्भाव आदि के जो घाव हैं, उनमें भीतर मवाद भर रहा है, और यह तुम्हारे ही शरीर, मन, प्राण में भयंकर मानसिक विष उत्पन्न कर रहा है। क्यों इस जहर से आत्म हत्या करते हो? जीवन का आनन्द क्यों नहीं लेते? फिर क्यों न इन तमाम बातों को अपने दिल से निकाल फेंको, हृदय से बहा डालो। तुम देखोगे कि जो जीवन के उज्ज्वल पक्षों पर स्थिर रहने से तुम्हारे भीतर ऐसी पवित्रता, ऐसी सफाई आयेगी कि तुम्हारा शरीर और मन पूर्णतः स्वस्थ और निर्बल हो जायगा.... इन वेदनाओं के विषय में पुनःपुनः सोचकर क्यों अपने हाथों अपनी हत्या कर रहे हो? शायद तुम इन बातों को नहीं जानते। इसलिए तो कहता हूँ- चिन्ताओं को भूल जाओ, कटु अनुभूतियों को विस्मृत कर दो।

और बड़े बड़े संकट, विपत्ति, दुख के समय क्या करें? यदि हमारे ऊपर दुःखों का पर्वत टूटा हो, विपत्ति में बिजली गिर पड़ी हो, किसी ने हमारे सत्यानाश की युक्तियाँ सोची हों, और कोई हमारा परम प्रिय व्यक्ति हमें तड़पता हुआ छोड़कर मृत्यु के मुख में समा गया हो- ऐसे अवसरों पर जब हमारा घाव गहरा और मर्मान्तक है, हम क्या करें? क्या उन्हें भी भूल जायें, विस्मृत कर डालें? हाँ हाँ, उन्हें भी भूल जाओ। धीरे धीरे ही सही, किन्तु विस्मृत कर दो उन्हें भी। इसी में तुम्हारी भलाई है। भविष्य में इससे तुम अधिक से अधिक सुख पाओगे शान्ति पाओगे।

और मैं अपने अनुभव से कह रहा हूँ, सच मानो कि दुखों का भार उतार डालना कतई मुश्किल नहीं है। बड़ा ही आसान है। शुरू शुरू में आदत डालने में कुछ समय लगेगा, संभव है कुछ कठिनाई भी हो, लेकिन आदत पड़ जाने पर बात की बात में तुम बड़ी से बड़ी चिन्ता को चुटकियों पर उड़ा दोगे और इस प्रकार भूल जाने या भुला देने में तुम इतने अभ्यस्त हो जाओगे कि जीवन को दुखमय और विषाक्त कर देने वाली तमाम बातें तुम्हारे सामने आते ही काफूर हो जायेंगी।

भूलना सीखो। यदि शरीर का स्वास्थ्य और मन की शान्ति अभीष्ट है तो भूलना सीखो। चिन्ता से मुक्ति पाने का सर्वोच्च उपाय दुखों को भूलना ही है।


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