मनुष्य का विचार-बल

December 1953

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(श्री हरिचन्द्र जोशी, प्रयाग)

मनुष्य जीवन में सफलता, असफलता, सुख, दुःख, जय, अजय, सभी कुछ उसकी मनोदशा, पर अवलंबित है। मानव जो कुछ भी इच्छा करता है वह उसे प्राप्त कर सकता है परन्तु उसके साथ आत्मविश्वास की नितान्त आवश्यकता होती है और जिस कार्य में आत्म विकास का अभाव होता है वह कार्य असफल होता है। मनुष्य के मन में बहुत सी सूक्ष्म क्रियाएं निरन्तर कार्यान्वित रहती हैं जो उसका भविष्य निर्माण किया करती हैं। अगर मानव उन क्रियाओं को उचित रूप से व्यवस्थित करे तो जीवन में बहुत कुछ गुणवत्ता से ही उपलब्ध कर सकता है।

मनुष्य के मन के कुछ विचार विशेष रूप से कार्यान्वित होते रहते हैं और उन्हीं के आधार पर उसकी मुखाकृति का निर्माण होता रहता है। मनुष्य चाहे जैसी मुखाकृति का निर्माण कर सकता है। उसके लिए मन में विशेष प्रकार के विचार का परिपालन करना आवश्यक होता है। आप जिस प्रकार की परिस्थिति अपने लिये उपयुक्त समझते हैं उसी प्रकार की मुखाकृति बनाने का प्रयत्न कीजिए अपने सम्मुख एक दर्पण लीजिए और तदुपरान्त हृदय में भिन्न-भिन्न प्रकार के विचार लाने का प्रयत्न कीजिए। आप देखेंगे कि आपकी मुखाकृति में उसी तरह परिवर्तन हो रहा है जिस तरह कि विचारों में। अब ध्यानपूर्वक देखिए कि किस विचार का स्मरण करने से आपकी मुख मुद्रा सुन्दर प्रतीत होती है बस उसी विचार को नोट कर लीजिए। उसके उपरान्त उसी विचार को बार बार स्मरण करिए, और उसी विचार-धारा से सम्बन्धित पुस्तकों का अध्ययन करिए, उन्हीं विचारों पर वार्तालाप करिए, तात्पर्य यह है कि उस प्रकार के विचार में आप निमग्न हो जाइए। आप देखेंगे कि कुछ दिनों उपरान्त आपकी मुख मुद्रा में परिवर्तन होना प्रारम्भ हो गया है और बहुत शीघ्र आपकी मनोवाँछित मुखाकृति विनिर्मित हो गई है। उदाहरणार्थ आप निम्नाँकित विचार प्रयोग में लाना चाहते हैं- “यह जीवन खुशी का है इसलिए मैं हर समय आनन्दमय रहता हूँ।” बस जैसे ही यह विचार मन में प्रवेश किया वैसे ही आपकी मुखमुद्रा पर कुछ आनन्द व खुशी की धूमिल रेखाएँ अंकित हो जावेंगी। आपके मुख मंडल पर खुशी व आनंद की झलक आ जावेगी, मुखाकृति सुन्दर दृष्टिगोचर होगी। इस प्रकार की विचारधारा को बार-बार दुहराने के कुछ ही समय में सुन्दर मुखाकृति का आगमन हो जाता है। इस विचार का प्रतिफल केवल मुखाकृति परिवर्तन तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि करीब-2 पूर्ण जीवन पथ ही बदल देता है।

खुशी व आनन्द की विचार-धारा द्वारा आप अपने हृदय में नव-उत्साह का संचार अनुभव करेंगे। प्रत्येक कार्य आप उत्साह से करेंगे इससे आपको खुशी व आनन्द प्राप्त होगा और उन घटना चक्रों का आपके जीवन में अन्त हो जावेगा जिससे आप कष्ट अनुभव करते हैं और अगर कष्टदायक घटना आपके जीवन में घटित होगी तो भी आप दुःख अनुभव नहीं करेंगे। साथ ही साथ जीवन की बहुत सी असफलताएँ नष्ट हो जावेंगी और सफलताओं की संख्या में अभिवृद्धि होगी।

किसी मनुष्य की विचार-धारा के अनुकूल ही उसके आस पास का वातावरण निर्माण होता है। वैसे ही मित्र मिलते हैं वैसी ही परिस्थितियाँ निर्माण होती हैं। अगर आप यह निरन्तर विचार किया करते हैं कि मैं सत्पुरुष बनूँगा तो आपके गुण, कर्म, स्वभाव वैसे ही बनने लगेंगे और एक दिन ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो जायेगी कि आप अपने लक्ष को प्राप्त करके रहेंगे। परन्तु इन विचारों के साथ साथ आत्म-विश्वास और क्रियाशीलता नितान्त आवश्यक है। इनके बिना अभीष्ट सफलता प्राप्त नहीं हो सकती।

भले और बुरे, विद्वान और मूर्ख, निर्धन और धनी व्यक्ति उनकी मुख-मुद्रा द्वारा आसानी से पहचान लिए जाते हैं क्योंकि उनके विचारों में उतनी ही भिन्नता होती है जितनी कि उनके बाह्य रूप में। अगर आप अपने विचारों का स्तर सुविकसित व्यक्तियों के बराबर ले आवेंगे तो आपकी मुखाकृति की भी वैसी ही झलक आवेगी। वह प्रस्फुटित होगी, प्रारम्भ होगी और फलतः कुछ ही दिनों में ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जावेंगी जो आपको श्रेष्ठ पुरुष बनाकर ही छोड़ेंगी। मनोवैज्ञानिकों का कथन है कि मनुष्य के विचारों में पदार्थ को खींचने की शक्ति विद्यमान रहती है। अतः आप जिस तरह के विचार रखेंगे उसी तरह के पदार्थ आपकी ओर अपने आप आकर्षित होते रहेंगे। वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में इतनी उन्नति की है कि उन्होंने विचारों के चित्र तक ले लिए हैं। विचारों की शक्ति महान है इसके द्वारा मनुष्य संसार में बहुत कुछ कर सकता है परन्तु स्मरण रखिए उसके साथ साथ कर्म की भी आवश्यकता है। विचार शक्ति उन्नति का सही मार्ग प्रदर्शन कर उसमें सफलता प्रदान करा सकती है परन्तु कर्म तो मनुष्य को करना ही पड़ेगा।

विचार-शक्ति विश्व की एक महान शक्ति है। इस शक्ति द्वारा मनुष्य बहुत कुछ कर सकता है। सिकन्दर ने आधा विश्व किस शक्ति से जीता? नेपोलियन वीर पुरुष क्यों कहलाया? चन्द्रगुप्त का साम्राज्य कैसे फैला? विचार शक्ति ने ही इन मनुष्यों को इतना कर गुजरने का अवसर किया। उनकी सफलता उनके आत्म विश्वास और पुरुषार्थ में सन्निहित थी। जिस सफलता को मनुष्य संसार में महान बनाना चाहते हैं उन्हें अपनी विचार शक्ति को सुन्दर व सुसंगठित बनाकर आत्म-विश्वास एवं पुरुषार्थ से संसार में उन्नति करने होंगे।

साधन, परिस्थितियाँ, सुविधाएँ तथा दूसरों की सहायताएँ बहुधा लोगों को ऊँचा उठाती हैं पर इनका उपलब्ध होना उसी के लिए सम्भव है जिसकी मनोभूमि अनुकूल हो। अविचारी व्यक्ति को उपरोक्त बातें यदि पैतृक परिस्थितियों के कारण सहज ही मिल जायं तो भी वह उनसे समुचित लाभ नहीं उठा सकता। अनेकों अमीरों के लड़के बाप दादों की कमाई हुई लक्ष्मी तथा प्रतिष्ठा का लाभ नहीं उठा पाते और अपनी मूर्खता से थोड़े ही दिनों में उसे बरबाद कर देते हैं। इसके विपरीत अनेकों ऐसे भी व्यक्ति होते हैं जो निर्धन एवं साधक हीन परिस्थितियों में जन्म लेकर भी अपनी मानसिक प्रतिभा के द्वारा अनुकूल वातावरण उत्पन्न करते हैं और उन्नति के उच्च शिखर पर जा पहुँचते हैं।

यह निश्चित है कि विचार शक्ति से सुसम्पन्न मनुष्य हीन परिस्थितियों में न रहेगा, वह अनेक कठिनाइयों और बाधाओं के होते हुए भी ऊपर उठेगा। प्रतिकूलताएँ अनुकूलता से बदलेंगी और उस दिशा में दिन दिन प्रगति होगी जो उसने अपने लिए चुनी है। दिशा चाहे अच्छी हो चाहे बुरी, प्रगति विचार शक्ति पर ही निर्भर है। यदि हम विचारों का महत्व भली प्रकार समझलें और आत्म विश्वास तथा पुरुषार्थ के साथ उसे कार्य रूप में परिणित करना आरम्भ कर दें तो निस्संदेह हमारी उन्नति के अवरुद्ध मार्ग स्वयं ही खुल सकते हैं।


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