नागरिकता की जिम्मेदारी

December 1953

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(श्री. श्रीप्रकाश जी)

संगठित समाज में रहने वाले हर एक व्यक्ति के लिए जिम्मेदार रहना, अर्थात् हर काम में अपनी जिम्मेदारी अनुभव कर इस प्रकार से आचरण करना जिससे किसी को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से धोखा न हो, अत्यावश्यक है। बिना जिम्मेदारी के साथ प्रत्येक व्यक्ति का आचरण हुए कोई भी संगठित समाज कायम नहीं रह सकता। जिस प्रकार एक पेंच के ढीला पड़ जाने से सारी मशीन का कार्य रुक जाने का भय उपस्थित हो जाता है, उसी प्रकार कोई एक गैर जिम्मेदार आदमी सारे समाज में तहलका मचा सकता है। यदि हर आदमी को हर दूसरे की तरफ से यह विश्वास रहे कि वह अपने काम को ठीक तौर से करता रहेगा, तो समाज में कोई गड़बड़ी पैदा नहीं हो सकती। तभी समाज भी सुचारु रूप से चल सकता है। पर जब गैर जिम्मेदारी का भाव उत्पन्न हो जाता है, जब एक दूसरे की तरफ से विश्वास उठ जाता है, तब समाज का ढाँचा टूटने लगता है। ऐसी अवस्था में यदि हमें संगठित समाज में रहना मंजूर हैं, तो हमें जिम्मेदार बनना पड़ेगा- अपनी जिम्मेदारी को हर क्षण अनुभव करते रहना पड़ेगा और उसके अनुरूप आचरण करना पड़ेगा।

बात हमें छोटी-सी मालूम पड़ती है और छोटी है भी, पर अन्य बहुत-सी छोटी छोटी बातों की तरह इसका पालन कठिन है और अधिकतर लोग चूकते ही रहते हैं। जिम्मेदारी शब्द की विवेचना करने से दो-तीन बातें स्पष्ट होती हैं। जो पुरुष जिम्मेदार कहा जा सकता है अर्थात् जो जिम्मेदारी के भाव से पूर्ण समझा जा सकता है, वह ऐसा पुरुष है जो अपना काम अच्छी तरह से जानता है। हर आदमी को इस संसार में कोई न कोई काम, समाज का उपयुक्त अंग बने रहने के लिए उठाना ही पड़ता है। जब तक कोई व्यक्ति अपना काम अच्छी तरह न जानेगा, तब तक वह जिम्मेदारी नहीं उठा सकता। हर व्यक्ति को अपने कार्य विशेष की तफसील अच्छी तरह जाननी चाहिए। तब वह उस कार्य के सम्बन्ध में जिम्मेदारी ले सकता है। अर्थात् वह समाज को यह विश्वास दिला सकता है कि यदि यह काम मेरे सुपुर्द किया जाय तो मैं इसे अच्छी तरह कर दूँगा। जब किसी को अपने काम का ज्ञान नहीं हो तब वह उसे कर ही कैसे सकता है।

जिम्मेदार आदमी के लिए दूसरी बात यह है कि जो कुछ वादा, छोटा या बड़ा वह करता है उसे वह पूरा करता है अर्थात् समाज को यह विश्वास दिलाता है कि मेरे ऊपर पूरा भरोसा किया जा सकता है। वह अपनी बात का सदा पालन करता है। अगर ऐसा विश्वास समाज के विभिन्न अंगों को एक-दूसरे के प्रति न रहे तो समाज विघटित हो जायगा। समाज के संगठन की दृढ़ता इसी पर निर्भर करती है कि उसके भिन्न भिन्न अंग जितने ही अधिक विश्वसनीय होते हैं उतना ही वह समाज अधिक सुसंगठित और सुदृढ़ रहता है। जिम्मेदारी का यह भी एक अंग है कि जो आदमी जिम्मेदारी उठाकर उसे पूरा न करे वह किसी न किसी प्रकार के दण्ड का भागी हो। यदि जिम्मेदारी पूरी न करने से भी अपनी कोई हानि न हो अर्थात् किसी न किसी रूप से अपने को दण्ड न मिले, तो व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी भूल जाता है और एक प्रकार से समाज का द्रोही बन जाता है। जिम्मेदारी का गुण केवल तथाकथित बड़े लोगों के लिए ही आवश्यक नहीं है। वह तो सभी के लिए बहुत जरूरी है। यदि आज भारतीय समाज में इतनी अव्यवस्था देख पड़ती है, तो इसका यही कारण है कि हम लोगों का आचरण ऐसा है कि कोई किसी पर विश्वास नहीं कर सकता। हम वायदे बहुत जल्द कर देते हैं, पर उन्हें जल्द ही भूल जाते हैं। इसका यह अर्थ नहीं है कि हम एक दूसरे के प्रति जानबूझकर बेईमानी करना चाहते हैं या किसी को धोखा देना चाहते हैं। पर तुम जिम्मेदारी की बारीकी को न समझकर उसे महत्व ही नहीं देते। इसका परिणाम बड़ा भीषण होता है। पर इसकी उपेक्षा कर हम अपने समाज का कुछ भी सुधार नहीं कर पा रहे हैं और जिस प्रकार के बन्धन में एक-दूसरे से बँधे रहना चाहिए वह ढीला होता जा रहा है।

हम प्रायः नित्य ही देखते हैं कि लोग जिम्मेदारी बहुत जल्द उठा लेते हैं। कितने ही लोग राह चलते फिरते हैं। उनसे कुछ बात होती है। वह झट कह देते हैं कि अमुक चीज भेज दूँगा, या अमुक सूचना दे दूँगा, या अमुक काम कर दूँगा। ऐसे अवसर पर जिससे यह बात कही जाती है उसको यह विश्वास करने का अधिकार है कि कहने वाला अपनी बात पूरी करेगा। पर हम सबको ही यह अनुभव है कि वह तात्कालिक सन्तोष देने मात्र के लिए ऐसी बातें कहता हैं। सम्भवतः उसे पूरा करने की उसकी भावना नहीं होती। कम से कम वह पूरा तो करता ही नहीं। जब यह स्थिति साधारण सी हो गई है तो सुनने वालों को भी कोई विश्वास नहीं रहता कि कहने वाला अपने वचन के अनुसार काम पूरा करेगा। और यदि वह कर देता है तो वास्तव में हमें आश्चर्य होता है। जिस पर भी ऐसे पुरुष के लिए हमारे मन में कोई आदर का भाव नहीं पैदा होता और अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने वाला आदमी साधारणतः ‘सनकी’ समझा जाता है। राह चलते की बात को छोड़कर यदि हम पेशेवर लोगों का व्यवहार देखें तो स्थिति अधिक स्पष्ट हो जायगी। वकील, डॉक्टर, शिक्षक, राजकर्मचारी, व्यापारी, मजदूर, धोबी, भंगी, दर्जी आदि कोई काम उठाकर जिम्मेदारी के साथ उसका पालन न करें तो अवश्य आफत मच जाय, जैसी कि हमारे समाज में मची ही रहती है। क्योंकि पेशे वाले लोग भी अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं करते, अर्थात् वे अपना-अपना काम ठीक तौर से नहीं जानते और साथ ही यथासमय उसे उचित प्रकार से पूरा भी नहीं करते। हम सब एक दूसरे को दोष देते रहते हैं पर अपना दोष नहीं देखते और इस कारण अपना काम ठीक तौर से नहीं करते। इस प्रकार सारे समाज को हम खराब किये हुए हैं।

हमारी कुछ ऐसी मनोवृत्ति हो गई है कि हम जिम्मेदार होना कोई आवश्यक गुण नहीं मानते जिसके कारण हम बहुत सी बातें ऐसी बर्दास्त करते हैं जो समाज के लिए घातक होता है और जिन्हें दूसरे देशों में कोई भी व्यक्ति बर्दास्त करने के लिए तैयार नहीं होगा। यही कारण है कि हमारे यहाँ जो जिम्मेदारी पूरी नहीं करता उसके लिए कोई दण्ड व्यवस्था नहीं है। जो अपना वादा पूरा नहीं करता उसके कारण उसकी कोई हानि हो तो वह अपनी चाल छोड़ देगा। पेशेवर आदमी कहने को तो कहता है कि मेरे ऊपर विश्वास करो, मेरी जिम्मेदारी पर काम छोड़ दो, पर ऐसे बहुत कम लोग होते हैं जो वास्तव में अपनी जिम्मेदारी ठीक तौर से समझकर पूरी करते हैं। जब जिम्मेदारी पूरी न करने से उन्हें सजा नहीं मिलती और सजा उलटे उसको मिल जाती है जो उनकी बात में आ जाता है, तो स्थिति वास्तव में भयानक होती है। शिक्षक पढ़ाने की जिम्मेदारी लेकर, डॉक्टर दवा देने की जिम्मेदारी लेकर, वकील मुकदमा लड़ने की जिम्मेदारी लेकर अगर उसे पूरा नहीं करता तो जैसी स्थिति है उसमें उसकी कोई हानि नहीं होती- विद्यार्थी, मुवक्किल अथवा गरीब ही मारा जाता है। शिक्षक, वकील और डॉ. अपना पुरस्कार पा ही जाते हैं, चाहे विद्यार्थी, मुवक्किल और गरीब का कुछ काम हो या न हो। सरकारी कर्मचारियों के सम्बन्ध में तो यह बात और भी जोरों से लागू होती है। दर्जी, धोबी, भंगी आदि की शिकायत तो सबको ही रहती है। इसको क्या दोहराया जाय।


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