रुकें कभी नहीं चरण (Kavita)

March 1952

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(1)

अपार तिमि-शिखर सदैव पंथ पर अड़ा रहे,

अथाह सिंधु मुक्त -राह रोक के खड़ा रहे,

बनी रहे परन्तु साधना पुनीत अमरण!

रुकें कभी नहीं चरण!

(2)

न फूल माँग, किंतु भय कभी न मान शूल से,

छिपा न तू भविष्य शून्य भाग्य के दुकूल से,

सदैव शक्ति मान ने किया है भूमि का वरण!

रुकें कभी नहीं चरण!

(3)

पुकार भानु कह रहा प्रभात है, प्रकाश है,

नवीन रात, प्रेरणा नयी, नया प्रयास है,

नवीन विश्व का, नवीन कुम्भकार कर सृजन!

रुकें कभी नहीं चरण!

(श्री विद्यावती मिश्र)


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