प्राप्त का आदर करना सीखिए।

March 1952

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(प्रो. रामचरण महेन्द्र, एम. ए.)

संसार में, दूरी में आकर्षण है। जो वस्तु समीप है, खुद हम उसके मालिक हैं, जिस पर हमारा स्वत्व है, हम उसके प्रति न दिलचस्पी लेते हैं, न उसकी सुन्दरता, महत्व, लाभ और उपयोगिता को ही समझते हैं। मानव जगत की अतृप्ति का यह एक बड़ा कारण है।

जो वस्तु हमारे पास रहती है, हम उससे इतना अधिक परिचित हो जाते हैं कि उसकी उपयोगिता हमारे लिये कुछ अर्थ नहीं रखती। घर में जो व्यक्ति हैं, उनसे हमारा काम आसानी से चलता है। हमारी वृद्धा माँ, वृद्ध पिता, बड़ा भाई, बहिन इत्यादि के निकट निरन्तर रहते रहने के कारण हम उनका महत्व दृष्टिगत नहीं करते। पुराने कुटुम्बों में जो नयी रोशनी के युवक-युवती हैं, वे वृद्ध पितामहों का आदर सत्कार सेवा इत्यादि में अपनी प्रतिष्ठा की हानि समझते हैं। इसका कारण यही है कि हम प्राप्त का अनादर करते हैं।

महाजन रुपया देता है, उसकी दृष्टि में मूलधन का इतना महत्व नहीं है जितना कि सूद का है। उसके पास रुपये की कमी नहीं है। यदि वह चाहे तो उसी रुपये का आदर कर (अर्थात् सदुपयोग कर) जीवन पर्यन्त सुखी रह सकता है। किन्तु उसका लोभ उसके मार्ग में बाधा उपस्थित करता है। वह सूद को वसूल करने के लिए जमीन-आसमान सिर पर उठा लेता है, मुकदमेबाजी में फँसता है, वर्षों अदालत में खड़ा रह कर समय व्यर्थ नष्ट करता है, यदि मुकदमा सफल रहा तो उसे कुर्की द्वारा मूलधन सूद सहित प्राप्त होता है। अनेक बार कर्ज लेने वाले का दिवाला निकल जाता है और सूद के प्रलोभन में मूलधन भी जाता रहता है। यदि वह व्यक्ति जो प्राप्त है, उसी का समुचित आदर करता, तो क्यों अपना मूलधन भी व्यर्थ गँवाता।

लोग स्वयं यह नहीं देखते कि वास्तव में उन्हें कितनी सौभाग्यशील प्रसन्नता प्रदान करने वाली सुख, समृद्धि, मोददायी वस्तु प्राप्त है? यदि विवेक पूर्ण नेत्रों से देखा जाय, तो आपको विदित होगा कि आपके गरीब घर में, निर्धनता, प्रतिकूलता और संघर्ष के वातावरण में भी महा कृपालु प्रभु ने आनन्द प्रदान करने वाली अनेक वस्तुओं की सृष्टि की है। अन्तर केवल यह है कि आपके स्थूल नेत्र उनके सौंदर्य और उपयोगिता का अवलोकन नहीं करते।

आपको कौन-कौन वस्तुएँ प्राप्त हैं? क्या आपके पास उत्तम स्वास्थ्य है? यदि अच्छा स्वास्थ्य है तो आपको संसार का समस्त स्वर्ण, बेशकीमती मूँगे मोती, हीरे, जवाहरात दौलत इत्यादि फीके हैं। वास्तव में संसार का अस्तित्व ही आपके स्वास्थ्य पर है। आपको जो स्वास्थ्य रूपी सम्पदा प्राप्त है, उसका आदर कीजिये। अपनी पाँचों इंद्रियों—स्वाद, घ्राण, श्रवण, स्पर्श, दर्शन इत्यादि के अनेक आनन्दों का सुख लूटिये। विश्व में ऐसे सैकड़ों सुख एवं आनन्द हैं, जिनका आधार उत्तम स्वास्थ्य है। जब यह आपको प्राप्त है, तो इसके द्वारा रस-पान करना जीवन में आनन्द उठाना आपकी बुद्धि पर निर्भर है। बुद्धि के सदुपयोग से स्वास्थ्य के आधार पर रहने वाले अनेक सुखों को प्राप्त कर जीवन को सुख शाँतिमय बनाया जा सकता है। लम्बी सैर को जाइये फूलों से परिपूर्ण उद्यान में टहलिये, नदियों में स्वच्छन्दता से तैरिये, खेलिये-कूदिये, आप बिना किसी रुपये पैसे के आनंद प्राप्त कर सकते हैं। स्वास्थ, बल, शक्ति, स्वाभाविक सौंदर्य जो आपको प्राप्त है, उसके आनंद की पहुँच के भीतर जो हैं उन्हें प्राप्त कीजिये।

यदि आप के पास बहुमूल्य कीमती वस्त्र, आभूषण, सुसज्जित मकान इत्यादि नहीं हैं, तो दुःखी होने की आवश्यकता नहीं है। जैसे वस्त्र हैं, उन्हीं को स्वच्छ निर्मल रख कर सादगी से आप अपनी विशेषताएँ प्रदर्शित कर सकते हैं। वस्त्रों के विषय में अपनी रुचि सरल बना लीजिये। इस बात के लिए व्यर्थ क्यों दुःखी होते हैं कि आप छैल-छबीलों की तरह क्यों सजे-धजे नहीं हैं? जो व्यक्ति अत्यधिक बनाव शृंगार में निमग्न रहते हैं वे मिथ्याभिमानी, छिछोरे अल्पबुद्धि हैं, कपड़ों के माया जाल में झूँठा सौंदर्य लाने की चेष्टा करते हैं। केवल कुरूप व्यक्तियों को यह विश्वास होता है कि वस्त्रों द्वारा उनकी कुरूपता छिप जायगी। बहुव्यय, कृत्रिमता और अत्यंत बनाव शृंगार की बातों के लिये अशाँत रहने की कोई आवश्यकता नहीं है। आप के पास जो, जैसा अच्छा-बुरा है, उसी का सदुपयोग करना प्रारम्भ कर कीजिये। अपने साधारण वस्त्रों को ब्रुश से स्वच्छ कीजिये, यदि मैले हो गये हैं, तो साबुन मोल लेकर उन्हीं को धो डालिये, इस्तरी कर लीजिए। यदि बाल कटाने के लिये पैसे नहीं हैं, उन्हीं को धोकर ठीक तरह सम्हाल लीजिए। खद्दर के सस्ते, स्वच्छ, चलाऊ वस्त्रों में व्यक्ति बड़ा आकर्षण प्रतीत होता है। आवश्यकता है शऊर और शिष्टाचार की। स्त्रियाँ प्रायः दुकानों पर नई-नई साड़ियाँ, जम्पर, के कपड़े, नये डिजाइन के आभूषण देखकर अतृप्त, अशाँत हो जाती हैं घर में कलह उत्पन्न हो जाती है। पति के पास आर्थिक संकट होता है तो वह इस गृह कलह को दूर करने के निमित्त ऋण लेता है। यह महा-मूर्खता है। स्त्रियों को यह देखना चाहिए कि उन्हें प्राप्त कितना है? कितने कपड़े उनके ट्रंकों में भरे पड़े हैं? फैशन कितनी द्रुतगति से परिवर्तित होते हैं? यदि हर वर्ष पुराने स्वर्ण आभूषणों को तुड़वाकर नवीन रूप से उनका पुनः निर्माण किया कराया जावेगा, तो असली सोना क्या खाक अवशेष बचेगा? यदि वे प्राप्त समुचित आदर करना सीख जायं और अपनी जो साधारण-सी वस्तु हैं, उन्हीं की सहायता से अपनी प्रतिभा, योग्यता और विशेषताएँ प्रदर्शित करना प्रारम्भ कर दें, तो सुख शाँतिमय जीवन व्यतीत कर सकती हैं।


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