(पं. तुलसी राम शर्मा, वृन्दावन)
यों तो संसार में धन, बल, योग्यता, चतुरता आदि शक्ति यों के आधार पर मनुष्यों का आदर-सम्मान होता है पर उसके त्याग, चरित्र, ज्ञान, उपकार, दृष्टिकोण, आदर्श एवं आत्म बल के आधार पर जो आदर होता है वास्तव में वही मनुष्य का परम सौभाग्य है। ऐसे गुणों से न केवल संसार में उसका सम्मान होता है वरन् ऋषि, महर्षि, महापुरुष ही नहीं परमात्मा तक उसकी वन्दना करते हैं। नीचे कुछ ऐसे ही प्रमाण देखिये :—
विप्रान स्वलाभ सन्तुष्टान् साधून्भूतसुहृत्तमान्।
निरहंकारिणः शान्तान् नमस्ते शिरसाऽकृत्॥
श्री. भा. 10। 52। 20
श्री कृष्ण भगवान कहते हैं कि अनायास प्राप्त हुए में सन्तोष करने वाले, साधु, (परकार्य को साधने वाले) सब प्राणियों के प्यारे, अहंकार रहित, और शान्त चित्त, ऐसे ब्रह्म परायण के लिए मैं बारम्बार प्रणाम करता हूँ॥ 20॥
नरपेक्षंमुनिं शान्तंनिर्वैरं समदर्शिनम्।
अनुव्रजाम्यहं नित्यंपूज्ये येत्यंघ्रिरेणुभिः॥
श्री. भा. 11। 14। 16
जिसको कुछ परवाह नहीं, मननशील, शान्त चित्त, वैर रहित, समदृष्टि (राग द्वेष रहित) ऐसे पुरुष के मैं (श्री कृष्णचन्द्र कहते हैं) पीछे-2 चलता हूँ कि ऐसे की चरण रेणु से मैं पवित्र हो जाऊँ।
इसी प्रकार नारद जी जैसे देवर्षि ने भी सत्पुरुषों के लिये अपनी श्रद्धा प्रकट करते हुए उन्हें अभिवन्दनीय ठहराया है।
हरिकीर्तन शीलोबा तद्भक्त नाँ प्रियोपिवा।
सुश्रूषुर्वापि महताँस वंद्योऽस्माभिरुत्तमः॥54॥
बृहन्नारदीय पुराण अ. 3
जो हरिनामोच्चारण करने वाला, भगवद्भक्तों का प्रिय, महत्पुरुषों का सेवक है ऐसे सुजन को हम (नारद जी कहते हैं) नमस्कार करते हैं।
गुरुभक्तः शिवध्यानी ह्याश्रमाचार तत्परः।
अनसूयः सदाशान्तः स वंद्योऽस्माभिरुत्तमः 55
गुरु भक्त, शिव का ध्यान करने वाला, निज आश्रम धर्म में रत, निन्दा रहित, शाँत, ऐसा श्रेष्ठजन हम से वन्दनीय है।
ब्राह्मणानाँ हितकरः श्रद्धावान् वर्ण धर्मसु।
वेद वादरतानित्यं स वंद्योऽस्माभि रुत्तमः॥56॥
ब्राह्मणों को हितकारी, वर्णाश्रम धर्म में श्रद्धावान्, और नित्य वेदपाठ करता ऐसा सुजन हमसे वन्दनीय है।
गोषुक्षान्तो ब्रह्मचारी पर निंदा विवर्जितः।
अपरिग्रहशीलश्च स वन्द्योऽस्माभि रुत्तमः॥58॥
जो गउओं में दयावान्, ब्रह्मचारी, पराई निंदा से रहित, संग्रह रहित ऐसे श्रेष्ठ जन की हम वंदना करते हैं।
स्तेयादि दोष विमुखः कृतज्ञः सत्यवाक् शुचिः।
परोपकार निरतः स वंद्योऽस्माभि रुत्तमः॥ 59॥
चोरी, व्यभिचार आदि दोषों से रहित, उपकार को मानने वाला, सत्यवादी, पवित्र, परोपकारी ऐसे श्रेष्ठ जन की हम वंदना करते हैं।
अभुवत्वा देवकार्याणि कुर्वतेयेऽविकत्थनाः।
संतुष्टाश्चक्षमा युक्त स्तान्न मस्या म्यहं विभो॥ 9॥
जो पुरुष भोजन से पूर्व देवकार्य करते हैं, अपनी प्रशंसा नहीं करते, संतोषी, क्षमाशील हैं, उनको मैं (नारद जी श्रीकृष्ण जी के प्रति कहते हैं) प्रणाम कहता हूँ॥ 9॥
ये वेदं प्राप्यदुर्धर्षांवाग्मिनो ब्रह्मचारिणः।
या जनाध्यापने युक्त नित्यंतान् पूजयाम्यहम्॥ 13॥
जो वेद का अध्ययन कर तेजस्वी हो जाते हैं, धर्मोपदेश में अच्छे वक्ता होते हैं ब्रह्मचर्य पालते हैं मैं उनकी पूजा करता हूँ॥ 13॥
प्रसन्नहृदयाश्चैव सर्व सत्वेषु नित्यशः।
आपृष्ठतापात्स्वाध्याये युक्त स्तान् पूजयाम्यहम् ॥14॥
जो सब जीवों पर प्रसन्न चित्त हैं और मध्याह्न काल तक धर्म ग्रंथों का स्वाध्याय करते हैं उनकी मैं सदा पूजा करता हूँ॥ 14॥
अहिंसानिरता येच येच सत्यव्रता नराः।
दान्ताः शमपरश्चैव ताम्नमस्यामि केशवः॥19॥
अहिंसाशील, सत्यवादी, इंद्रिय और मन को वश में करने वाले ऐसे पुरुषों को मैं प्रणाम करता हूँ॥19॥
येषाँ त्रिवर्गः कृत्येषुवर्तते नोपहीयते।
शिष्टाचार प्रवृत्ताश्चतान्नमम्यहं सदा॥ 21॥
जो पुरुष कर्त्तव्य कर्मों में धर्म अर्थ काम इस त्रिवर्ग का ध्यान रखते हैं अर्थात् किसी को नष्ट नहीं होने देते और शिष्ट पुरुषों का सा आचरण करते हैं उनको मैं सदा प्रणाम करता हूँ॥ 21॥
महाभारत अनुशासन पर्व के अध्याय 59 में भीष्म जी ने ऐसे ही विचार प्रकट किये हैं। देखिए—
य एवं नैवकुप्यन्ते नलुभ्यंति तृणेष्वपि।
त एव नः पूज्यतमाये चापि प्रिय वादिनः॥ 22॥
भीष्म जी कहते हैं कि हे राजन् युधिष्ठिर! जो ब्राह्मण क्रोध नहीं करते, लोभ रहित हैं प्रिय वादी हैं वे हमारे पूजने योग्य हैं॥ 22॥
भर्तृहरिजी ने भी सज्जनों का अभिवादन करते हुए अपने को धन्य माना है। भर्तृहरि नीति शतक का 62 वाँ श्लोक देखिए—
वाञ्छासज्जन संगमे परगुणे प्रीति गुरौ नम्रता।
विद्यायाँव्यसनं स्वयोषितिरतिर्लोका पवादाद्भयम्॥
भक्तिः शूलिनिशक्ति रात्मदमने संसर्ग मुक्तिः खले।
एतेयेषु वसन्ति निर्मल गुणास्तेभ्योनरेभ्योनमः॥
सज्जनों के संग की इच्छा, दूसरे के गुणों में प्रीति, बड़े लोगों से नम्रता, विद्या में व्यसन, अपनी ही स्त्री में प्रीति, लोक निंदा से भय, ईश्वर की भक्ति, अपने मन को वश में रखने की शक्ति और दुष्ट संग का त्याग ये निर्मल गुण जिनमें हैं उन पुरुषों के लिए नमस्कार है।