VigyapanSuchana

February 1952

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आध्यात्मिक दृष्टि से हमारे देश को तभी वस्तुतः प्राधान्य मिलेगा जब उसमें सुवर्ण की अपेक्षा सत्य की, ऐश्वर्य की अपेक्षा निर्भयता की, देहासक्ति की अपेक्षा परोपकार की समृद्धि दिख पड़ेगी।

प्रेम आत्मा का रूप है। उसका गुण आत्मिक है। यदि हमारा प्रेम में विश्वास होगा तो प्रेम-शक्ति के द्वारा हम सारे संसार को हिला दे सकते हैं।


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