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February 1952

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—क्षत्रियता सीखने के लिये पुष्ट शरीर की (उतनी) जरूरत नहीं पर मजबूत निडर दिल की जरूरत है। क्रूरता, कठोरता, क्षत्रियता का गुण नहीं परन्तु सहन शीलता, क्षमा, दया, उदारता, अ-पलायन और घोर अशक्ति में भी स्थिर होकर निर्भयता से खड़े रहने की शक्ति में क्षत्रियता है।

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—केवल शान्ति और अटल निश्चय का मिलाप जब न्याय पूर्ण कारण के साथ होता है तब उसके परिणाम में सदा विजय ही होती रही है। न्याय के लिये मरना—मनुष्य का नियम है, मारना—जानवर का है।

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—ब्रह्मचर्य का अर्थ कान, आँख, नाक, जीभ और चर्म-इन सब इन्द्रियों का संयम है। यह धर्म केवल संन्यासी के लिए नहीं, सद्गृहस्थों के लिए है। जो इस सादा नियम का पालन न करता हो यह सद्गृहस्थ नहीं।


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