युग युगों से प्यार के हम, गीत गाते आ रहे हैं।
प्यार में ही हम सभी, जीवन बिताते आ रहे हैं॥
शुष्क जीवन वह कि जिसमें, प्यार का पानी नहीं है।
प्यार नादानी नहीं है।
प्यार में भगवान रहते, प्यार तो भगवान ही है।
प्यार से पूजा, यही भगवान का सम्मान भी है॥
प्यार से रहता विलग, तो भक्त वह प्राणी नहीं है।
प्यार नादानी नहीं है।
प्यार की दुनिया अनोखी, जानते हैं जन अनेकों।
है कठिन इसमें विचरना, मानते तन मन अनेकों॥
प्यार पा लेना किसी का, बात मनमानी नहीं है।
प्यार नादानी नहीं है।
प्यार यदि होता न जग में; हम न होते जग न होता।
व्यर्थ था अस्तित्व जग का, फिर यहाँ कुछ भी न होता।
प्यार में है शक्ति जो वह विश्व ने जानी नहीं है।
प्यार नादानी नहीं है।
(श्री भगवती प्रसाद सोनी “गुँजन”)